Read Quran translation in Hindi with verse-by-verse meaning and time-relevant explanations for deeper understanding.

कुरआन की आयत 4:115 की पूरी व्याख्या

 आयत का अरबी पाठ:

وَمَن يُشَاقِقِ الرَّسُولَ مِن بَعْدِ مَا تَبَيَّنَ لَهُ الْهُدَىٰ وَيَتَّبِعْ غَيْرَ سَبِيلِ الْمُؤْمِنِينَ نُوَلِّهِ مَا تَوَلَّىٰ وَنُصْلِهِ جَهَنَّمَ ۖ وَسَاءَتْ مَصِيرًا

हिंदी अनुवाद:
"और जो कोई हिदायत स्पष्ट हो जाने के बाद भी रसूल की मुख़ालफ़त करे और मोमिनीन के रास्ते के अलावा किसी और रास्ते पर चले, तो हम उसे उसी रास्ते पर चलने देंगे जिस पर वह चल रहा है और उसे जहन्नम में डाल देंगे, और वह बहुत ही बुरा ठिकाना है।"


📖 आयत का सार और सीख:

इस आयत का मुख्य संदेश सच्चे मार्गदर्शन को स्वीकार करने और सामूहिक मुस्लिम समुदाय से जुड़े रहने के महत्व के बारे में है। यह हमें सिखाती है:

  1. पैगंबर का अनुसरण: हिदायत मिल जाने के बाद पैगंबर के मार्ग का विरोध करना सबसे बड़ी गलती है।

  2. सामूहिकता का महत्व: मोमिनीन के सामूहिक रास्ते से अलग होना खतरनाक है।

  3. परिणाम की गंभीरता: ऐसा करने वाले के लिए जहन्नम की सजा है।


🕰️ ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य (Past Relevance):

  • मुनाफिकों और विरोधियों के लिए चेतावनी: यह आयत उन लोगों के लिए उतरी जो इस्लाम स्पष्ट हो जाने के बाद भी पैगंबर मुहम्मद (सल्ल0) का विरोध करते थे।

  • सामूहिक एकता का संदेश: प्रारंभिक मुस्लिम समुदाय को एकजुट रहने की शिक्षा देना।

  • गुमराह समूहों से सावधानी: उन लोगों से दूरी बनाना जो मुस्लिम समुदाय से अलग अपने रास्ते बना रहे थे।


💡 वर्तमान और भविष्य के लिए प्रासंगिकता (Contemporary & Future Relevance):

1. धार्मिक एकता और पहचान:

  • सुन्नत का पालन: पैगंबर के तरीके को अपनाना और उनकी शिक्षाओं पर चलना।

  • मुस्लिम उम्माह से जुड़ाव: वैश्विक मुस्लिम समुदाय से जुड़े रहना और उससे अलग न होना।

2. आधुनिक चुनौतियाँ:

  • गुमराह संप्रदायों से सतर्कता: ऐसे समूहों से दूरी बनाना जो मुख्यधारा के इस्लाम से अलग शिक्षाएं देते हैं।

  • धार्मिक अतिवाद: इस्लाम के नाम पर हिंसा और अतिवाद का रास्ता अपनाने से बचना।

3. सामाजिक और पारिवारिक जीवन:

  • पारिवारिक एकता: परिवार में इस्लामी शिक्षाओं के अनुसार एकता बनाए रखना।

  • सामुदायिक सद्भाव: मस्जिद और इस्लामी केंद्रों से जुड़े रहना।

4. युवाओं के लिए मार्गदर्शन:

  • सही राह का चयन: पश्चिमी संस्कृति के अंधानुकरण से बचते हुए इस्लामी पहचान बनाए रखना।

  • धार्मिक शिक्षा: इस्लाम की सही समझ हासिल करना और उस पर अमल करना।

5. डिजिटल युग में प्रासंगिकता:

  • ऑनलाइन धार्मिक मार्गदर्शन: इंटरनेट पर फैली गलत धार्मिक जानकारियों से सतर्क रहना।

  • वर्चुअल मुस्लिम समुदाय: ऑनलाइन इस्लामिक समुदायों से सही ज्ञान हासिल करना।

6. भविष्य के लिए मार्गदर्शन:

  • इस्लामी पहचान की सुरक्षा: भविष्य में इस्लामी पहचान और एकता को बनाए रखना।

  • आधुनिकता और धर्म का संतुलन: आधुनिकता के साथ इस्लामी शिक्षाओं का सामंजस्य बनाना।


निष्कर्ष:

कुरआन की यह आयत इस्लामी एकता और पैगंबर के मार्गदर्शन के महत्व पर प्रकाश डालती है। यह सिखाती है कि हिदायत मिल जाने के बाद भी जो व्यक्ति पैगंबर के रास्ते का विरोध करता है और मुस्लिम समुदाय से अलग हो जाता है, उसके लिए गंभीर परिणाम हैं। आधुनिक युग में जहाँ मुसलमान विभिन्न प्रकार के भ्रम और गुमराही का शिकार हो रहे हैं, यह आयत हमें याद दिलाती है कि सच्ची सफलता पैगंबर के मार्ग और मुस्लिम समुदाय की सामूहिकता में ही है

वालहमदु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन
(और सारी प्रशंसा अल्लाह के लिए है, जो सारे जहानों का पालनहार है)