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कुरआन की आयत 4:116 की पूरी व्याख्या

 आयत का अरबी पाठ:

إِنَّ اللَّهَ لَا يَغْفِرُ أَن يُشْرَكَ بِهِ وَيَغْفِرُ مَا دُونَ ذَٰلِكَ لِمَن يَشَاءُ ۚ وَمَن يُشْرِكْ بِاللَّهِ فَقَدْ ضَلَّ ضَلَالًا مُّبِينًا

हिंदी अनुवाद:
"निश्चय ही अल्लाह इस बात को कभी माफ़ नहीं करेगा कि उसके साथ शिर्क (साझीदार ठहराया जाए), और इसके अलावा (दूसरे गुनाह) जिसके लिए चाहेगा, माफ़ कर देगा। और जो कोई अल्लाह के साथ शिर्क करे, तो उसने बहुत दूर की गुमराही अपनाई।"


📖 आयत का सार और सीख:

इस आयत का मुख्य संदेश शिर्क (अल्लाह के साथ साझीदार ठहराने) की गंभीरता और अल्लाह की दया की सीमाओं के बारे में है। यह हमें सिखाती है:

  1. शिर्क - अक्षम्य पाप: अल्लाह के साथ किसी को साझीदार ठहराना एकमात्र ऐसा पाप है जो माफ़ नहीं किया जाएगा।

  2. अल्लाह की दया: शिर्क के अलावा अन्य सभी पाप अल्लाह की इच्छा पर माफ़ किए जा सकते हैं।

  3. सर्वोच्च गुमराही: शिर्क करना सबसे बड़ी गुमराही है जो इंसान को अल्लाह से सदैव के लिए अलग कर सकती है।


🕰️ ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य (Past Relevance):

  • मक्का के मुशरिकीन के लिए चेतावनी: यह आयत मक्का के उन लोगों के लिए उतरी जो मूर्तियों को अल्लाह का साझीदार मानते थे।

  • तौहीद का महत्व: प्रारंभिक इस्लामी दौर में एकेश्वरवाद (तौहीद) की अवधारणा को स्थापित करना।

  • अन्य धर्मों के अनुयायियों के लिए मार्गदर्शन: यहूदियों और ईसाइयों सहित सभी के लिए शिर्क से बचने की चेतावनी।


💡 वर्तमान और भविष्य के लिए प्रासंगिकता (Contemporary & Future Relevance):

1. आध्यात्मिक और धार्मिक जीवन:

  • शिर्क के आधुनिक रूप: धन, शक्ति, प्रसिद्धि, या किसी व्यक्ति को अल्लाह के बराबर रखना।

  • तौहीद की सही समझ: अल्लाह की एकता और विशेषताओं में किसी को साझीदार न ठहराना।

2. सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भ:

  • अंधविश्वासों से बचाव: तावीज़, जादू-टोना, और अन्य अंधविश्वासों में शिर्क के तत्वों से सावधान रहना।

  • सूफीवाद में चरमपंथ: कुछ सूफी परंपराओं में पीर-फकीरों को अल्लाह का दर्जा देने से बचना।

3. युवाओं के लिए मार्गदर्शन:

  • सेलेब्रिटी कल्चर: अभिनेताओं, गायकों या खिलाड़ियों को अत्यधिक महत्व देकर उनकी पूजा न करना।

  • Materialism से सावधानी: धन और भौतिक वस्तुओं को जीवन का उद्देश्य न बनाना।

4. आधुनिक विचारधाराएँ:

  • विज्ञान की पूजा: विज्ञान को ईश्वर के स्थान पर रखने से बचना।

  • राष्ट्रवाद की चरम सीमा: राष्ट्र या जाति को ईश्वर से ऊपर न रखना।

5. डिजिटल युग में प्रासंगिकता:

  • टेक्नोलॉजी की पूजा: AI और टेक्नोलॉजी को सर्वशक्तिमान न मानना।

  • सोशल मीडिया का देवता बनना: लाइक्स और फॉलोअर्स के पीछे भागकर उन्हें जीवन का लक्ष्य न बनाना।

6. भविष्य के लिए मार्गदर्शन:

  • नैनो टेक्नोलॉजी और शिर्क: भविष्य की तकनीकों में अल्लाह की भूमिका को न भूलना।

  • वैश्विक नागरिकता: मानवता की सेवा करते हुए भी अल्लाह की इबादत को प्राथमिकता देना।


निष्कर्ष:

कुरआन की यह आयत तौहीद (एकेश्वरवाद) के मूल सिद्धांत को दोहराती है। यह स्पष्ट करती है कि शिर्क एक ऐसा गंभीर पाप है जो इंसान को अल्लाह की रहमत से सदैव के लिए वंचित कर सकता है। आधुनिक युग में जहाँ शिर्क के नए-नए रूप सामने आ रहे हैं, यह आयत हमें चेतावनी देती है कि अल्लाह की एकता और उसकी इबादत में किसी प्रकार की साझेदारी माफ़ी के दायरे से बाहर है। हमें हमेशा इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हमारी आस्था और भक्ति केवल अल्लाह के लिए हो।

वालहमदु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन
(और सारी प्रशंसा अल्लाह के लिए है, जो सारे जहानों का पालनहार है)