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कुरआन की आयत 4:123 की पूरी व्याख्या

 आयत का अरबी पाठ:

لَّيْسَ بِأَمَانِيِّكُمْ وَلَا أَمَانِيِّ أَهْلِ الْكِتَابِ ۚ مَن يَعْمَلْ سُوءًا يُجْزَ بِهِ وَلَا يَجِدْ لَهُ مِن دُونِ اللَّهِ وَلِيًّا وَلَا نَصِيرًا

हिंदी अनुवाद:
"(सफलता) न तो तुम्हारी इच्छाओं से है और न अहले-किताब की इच्छाओं से। जो कोई बुरा काम करेगा, उसका बदला उसे दिया जाएगा और वह अल्लाह के सिवा न कोई रक्षक पाएगा और न कोई सहायक।"


📖 आयत का सार और सीख:

इस आयत का मुख्य संदेश केवल इच्छाओं और दावों से सफलता न मिलने के बारे में है। यह हमें सिखाती है:

  1. खोखले दावों की निरर्थकता: सिर्फ इच्छाएँ और दावे काम नहीं आते

  2. कर्म का महत्व: हर कर्म का परिणाम मिलेगा

  3. अल्लाह की न्यायप्रियता: अल्लाह के सिवा कोई सहायक नहीं


🕰️ ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य (Past Relevance):

  • मुसलमानों और यहूदियों के दावे: यह आयत उन लोगों के लिए उतरी जो सिर्फ दावों के आधार पर जन्नत की उम्मीद करते थे।

  • यहूदियों का गर्व: यहूदी कहते थे कि वे अल्लाह के बेटे और चहेते हैं।

  • मुसलमानों का विश्वास: कुछ मुसलमान सोचते थे कि सिर्फ मुसलमान होने से जन्नत मिल जाएगी।


💡 वर्तमान और भविष्य के लिए प्रासंगिकता (Contemporary & Future Relevance):

1. धार्मिक और आध्यात्मिक जीवन:

  • खोखले दावों से सावधानी: सिर्फ मुसलमान होने का दावा काफी नहीं

  • कर्म की महत्ता: ईमान के साथ अमल की जरूरत

  • धार्मिक अभिमान: "हम बेहतर हैं" के गलत दावों से बचना

2. सामाजिक जीवन:

  • पारिवारिक दावे: "हम अच्छे परिवार से हैं" का गर्व न करना

  • जातीय अभिमान: जाति और खानदान के दावे बेकार

  • सामाजिक हैसियत: ऊँचे पद और हैसियत का घमंड न करना

3. युवाओं के लिए मार्गदर्शन:

  • ख्वाबों की सीमा: सिर्फ सपने देखने से कुछ नहीं मिलता

  • मेहनत का महत्व: कड़ी मेहनत और ईमानदारी जरूरी

  • जिम्मेदारी का एहसास: हर कर्म का हिसाब होगा

4. पेशेवर जीवन:

  • डिग्रियों की सीमा: सिर्फ डिग्री होने से काम नहीं चलेगा

  • कर्म की जिम्मेदारी: ऑफिस में किए काम का हिसाब

  • ईमानदारी: बेईमानी से कमाई का परिणाम

5. डिजिटल युग में प्रासंगिकता:

  • वर्चुअल दावे: सोशल मीडिया पर दिखावे की सीमा

  • ऑनलाइन कर्म: इंटरनेट पर किए गए काम का हिसाब

  • डिजिटल ईमानदारी: ऑनलाइन धोखाधड़ी का परिणाम

6. भविष्य के लिए मार्गदर्शन:

  • तकनीकी क्षमता: टेक्नोलॉजी का सही इस्तेमाल

  • नैतिक जिम्मेदारी: नई चुनौतियों में ईमान की हिफाज़त

  • वैश्विक नागरिकता: दुनिया में अच्छे कर्मों का प्रभाव


निष्कर्ष:

कुरआन की यह आयत खोखले दावों और इच्छाओं की निरर्थकता को उजागर करती है। यह सिखाती है कि सफलता सिर्फ इच्छाओं और दावों से नहीं, बल्कि ईमान और नेक अमल से मिलती है। आधुनिक युग में जहाँ लोग बिना मेहनत के सफलता चाहते हैं और दिखावे को वास्तविकता समझते हैं, यह आयत हमें वास्तविकता और जिम्मेदारी का संदेश देती है। हर इंसान को अपने कर्मों का हिसाब देना होगा और उस दिन अल्लाह के सिवा कोई सहायक नहीं होगा।

वालहमदु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन
(और सारी प्रशंसा अल्लाह के लिए है, जो सारे जहानों का पालनहार है)