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कुरआन की आयत 4:128 की पूरी व्याख्या

 आयत का अरबी पाठ:

وَإِنِ امْرَأَةٌ خَافَتْ مِن بَعْلِهَا نُشُوزًا أَوْ إِعْرَاضًا فَلَا جُنَاحَ عَلَيْهِمَا أَن يُصْلِحَا بَيْنَهُمَا صُلْحًا ۚ وَالصُّلْحُ خَيْرٌ ۗ وَأُحْضِرَتِ الْأَنفُسُ الشُّحَّ ۚ وَإِن تُحْسِنُوا وَتَتَّقُوا فَإِنَّ اللَّهَ كَانَ بِمَا تَعْمَلُونَ خَبِيرًا

हिंदी अनुवाद:
"और अगर कोई स्त्री अपने पति से नाफरमानी या उपेक्षा का डर रखती हो, तो उन दोनों पर कोई गुनाह नहीं कि आपस में सुलह कर लें, और सुलह बेहतर है। और (आदतन) लोगों के दिलों में कंजूसी रख दी गई है। और अगर तुम अच्छा व्यवहार करो और परहेज़गारी बरतो, तो निश्चय ही अल्लाह तुम्हारे कर्मों से भली-भाँति अवगत है।"


📖 आयत का सार और सीख:

इस आयत का मुख्य संदेश वैवाहिक संबंधों में सुलह और समझौते के महत्व के बारे में है। यह हमें सिखाती है:

  1. वैवाहिक समस्याओं का समाधान: पति-पत्नी के बीच सुलह की अनुमति

  2. सुलह का महत्व: आपसी समझौता सबसे बेहतर तरीका

  3. मानवीय कमजोरी: लोगों में कंजूसी और स्वार्थ की प्रवृत्ति

  4. अच्छे व्यवहार का महत्व: अच्छा बर्ताव और परहेज़गारी


🕰️ ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य (Past Relevance):

  • वैवाहिक संबंधों का मार्गदर्शन: प्रारंभिक इस्लामी समाज में पति-पत्नी के झगड़ों का समाधान

  • औरतों के अधिकारों की रक्षा: औरतों को वैवाहिक समस्याओं में सुलह का अधिकार

  • समाज सुधार: जाहिलियत के दौर में औरतों के साथ हो रहे अन्याय को रोकना


💡 वर्तमान और भविष्य के लिए प्रासंगिकता (Contemporary & Future Relevance):

1. पारिवारिक जीवन:

  • वैवाहिक सुलह: पति-पत्नी के झगड़ों का शांतिपूर्ण समाधान

  • पारिवारिक शांति: परिवार में सद्भाव बनाए रखना

  • समझौते का महत्व: रिश्तों में लचीलापन और समझ

2. सामाजिक जीवन:

  • तलाक की रोकथाम: सुलह के द्वारा तलाक को रोकना

  • पारिवारिक स्थिरता: समाज में पारिवारिक स्थिरता बनाए रखना

  • सामाजिक सद्भाव: परिवारों के बीच अच्छे संबंध

3. मानसिक स्वास्थ्य:

  • तनाव प्रबंधन: वैवाहिक तनाव को कम करना

  • भावनात्मक संतुलन: पारिवारिक जीवन में भावनात्मक स्थिरता

  • संबंधों की सेहत: रिश्तों को मजबूत बनाना

4. युवाओं के लिए मार्गदर्शन:

  • वैवाहिक शिक्षा: शादी से पहले और बाद में मार्गदर्शन

  • संबंध प्रबंधन: रिश्तों को सही तरीके से manage करना

  • जिम्मेदारी का एहसास: वैवाहिक जीवन की जिम्मेदारी

5. आधुनिक चुनौतियाँ:

  • ड्यूल करियर: दोनों पार्टनर्स के काम करने की स्थिति

  • वित्तीय मामले: आर्थिक मुद्दों पर सहमति

  • पारिवारिक निर्णय: साझा निर्णय लेने की क्षमता

6. भविष्य के लिए मार्गदर्शन:

  • डिजिटल युग में रिश्ते: टेक्नोलॉजी के प्रभाव में रिश्ते

  • बदलती सामाजिक परिस्थितियाँ: नए सामाजिक दबाव

  • पारिवारिक मूल्यों का संरक्षण: बदलते समय में मूल्य बनाए रखना


निष्कर्ष:

कुरआन की यह आयत वैवाहिक जीवन में सुलह और समझौते के महत्व को रेखांकित करती है। यह सिखाती है कि पति-पत्नी के बीच होने वाले मतभेदों को सुलह के द्वारा सुलझाना सबसे बेहतर तरीका है। आधुनिक युग में जहाँ तलाक की दरें बढ़ रही हैं और पारिवारिक संबंध तनावपूर्ण हो रहे हैं, यह आयत वैवाहिक स्थिरता और पारिवारिक सद्भाव का मार्ग दिखाती है। अच्छे व्यवहार और परहेज़गारी के साथ रिश्तों को निभाना ही सच्ची सफलता है, और अल्लाह हमारे हर कर्म को जानता है।

वालहमदु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन
(और सारी प्रशंसा अल्लाह के लिए है, जो सारे जहानों का पालनहार है)