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कुरआन की आयत 4:127 की पूरी व्याख्या

 आयत का अरबी पाठ:

وَيَسْتَفْتُونَكَ فِي النِّسَاءِ ۖ قُلِ اللَّهُ يُفْتِيكُمْ فِيهِنَّ وَمَا يُتْلَىٰ عَلَيْكُمْ فِي الْكِتَابِ فِي يَتَامَى النِّسَاءِ اللَّاتِي لَا تُؤْتُونَهُنَّ مَا كُتِبَ لَهُنَّ وَتَرْغَبُونَ أَن تَنكِحُوهُنَّ وَالْمُسْتَضْعَفِينَ مِنَ الْوِلْدَانِ وَأَن تَقُومُوا لِلْيَتَامَىٰ بِالْقِسْطِ ۚ وَمَا تَفْعَلُوا مِنْ خَيْرٍ فَإِنَّ اللَّهَ كَانَ بِهِ عَلِيمًا

हिंदी अनुवाद:
"और (ऐ रसूल) लोग तुमसे औरतों के (मामलात) के बारे में फतवा पूछते हैं। कह दो कि अल्लाह तुम्हें उनके बारे में फतवा देता है और (खास तौर पर) उन यतीम औरतों के बारे में जिन्हें तुम उनका हक नहीं देते और (इसके बावजूद) तुम उनसे निकाह करना चाहते हो, और (इसी तरह) कमजोर बच्चों के बारे में और (यह भी) कि तुम यतीमों के साथ न्याय करो। और तुम जो भी भलाई करोगे, अल्लाह उसे जानने वाला है।"


📖 आयत का सार और सीख:

इस आयत का मुख्य संदेश यतीमों और कमजोर वर्गों के अधिकारों की रक्षा के बारे में है। यह हमें सिखाती है:

  1. यतीम औरतों के अधिकार: उनके हक की रक्षा और उनके साथ न्याय

  2. कमजोर बच्चों की सुरक्षा: बच्चों के अधिकारों का संरक्षण

  3. न्याय का आदेश: यतीमों के साथ इंसाफ करना

  4. अल्लाह की जानकारी: हर अच्छे काम का रिकॉर्ड


🕰️ ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य (Past Relevance):

  • यतीमों के साथ अन्याय: जाहिलियत के दौर में यतीम लड़कियों के साथ अन्याय होता था - उनकी संपत्ति हड़प ली जाती थी और उनसे निकाह करके उनके हक मारे जाते थे।

  • समाज सुधार: इस्लाम ने यतीमों के अधिकार स्थापित किए और उनके साथ हो रहे अन्याय को रोका।

  • मार्गदर्शन की आवश्यकता: लोगों को यतीमों के बारे में सही मार्गदर्शन की जरूरत थी।


💡 वर्तमान और भविष्य के लिए प्रासंगिकता (Contemporary & Future Relevance):

1. सामाजिक न्याय:

  • यतीमों की देखभाल: अनाथ बच्चों और औरतों की सुरक्षा और देखभाल

  • कमजोर वर्गों के अधिकार: समाज के कमजोर तबकों की मदद

  • संपत्ति के अधिकार: यतीमों की संपत्ति की हिफाज़त

2. पारिवारिक जीवन:

  • यतीम लड़कियों की शादी: उनके साथ न्याय और उचित व्यवहार

  • बच्चों के अधिकार: कमजोर बच्चों की शिक्षा और परवरिश

  • पारिवारिक जिम्मेदारी: यतीम रिश्तेदारों की जिम्मेदारी

3. आर्थिक न्याय:

  • वित्तीय सुरक्षा: यतीमों की आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करना

  • उचित विरासत: यतीमों को उनकी विरासत का पूरा हक देना

  • आर्थिक शोषण से बचाव: यतीमों के आर्थिक शोषण को रोकना

4. कानूनी और नैतिक दायित्व:

  • कानूनी संरक्षण: यतीमों के लिए कानूनी सुरक्षा

  • नैतिक जिम्मेदारी: समाज की नैतिक जिम्मेदारी

  • धार्मिक कर्तव्य: यतीमों की देखभाल धार्मिक कर्तव्य

5. आधुनिक चुनौतियाँ:

  • अनाथालयों की जिम्मेदारी: अनाथालयों में रहने वाले बच्चों के अधिकार

  • शरणार्थी बच्चे: संघर्ष क्षेत्रों के यतीम बच्चे

  • गरीबी और अनाथपन: गरीबी के कारण अनाथ हुए बच्चे

6. भविष्य के लिए मार्गदर्शन:

  • शैक्षिक अवसर: यतीम बच्चों को शिक्षा के अवसर

  • व्यावसायिक प्रशिक्षण: यतीमों के लिए रोजगार के अवसर

  • सामाजिक एकीकरण: यतीमों का समाज में सम्मानजनक स्थान


निष्कर्ष:

कुरआन की यह आयत यतीमों और कमजोर वर्गों के अधिकारों की रक्षा पर जोर देती है। यह सिखाती है कि यतीम औरतों और बच्चों के साथ न्याय करना और उनके अधिकारों की रक्षा करना अल्लाह का आदेश है। आधुनिक युग में जहाँ यतीमों और कमजोर वर्गों का शोषण जारी है, यह आयत सामाजिक न्याय और मानवीय करुणा का संदेश देती है। हर मुसलमान का फर्ज है कि वह यतीमों की देखभाल करे और उनके साथ न्याय करे, क्योंकि अल्लाह हर अच्छे काम को जानता है और उसका बदला देगा।

वालहमदु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन
(और सारी प्रशंसा अल्लाह के लिए है, जो सारे जहानों का पालनहार है)