कुरआन की आयत 4:146 की पूर्ण व्याख्या

 (1) पूरी आयत अरबी में:

"إِلَّا الَّذِينَ تَابُوا وَأَصْلَحُوا وَاعْتَصَمُوا بِاللَّهِ وَأَخْلَصُوا دِينَهُمْ لِلَّهِ فَأُولَٰئِكَ مَعَ الْمُؤْمِنِينَ ۖ وَسَوْفَ يُؤْتِ اللَّهُ الْمُؤْمِنِينَ أَجْرًا عَظِيمًا"

(2) आयत के शब्दों के अर्थ (Word-by-Word Meaning):

  • إِلَّا (Illā): सिवाय, बजाय।

  • الَّذِينَ (Alladhīna): जो लोग।

  • تَابُوا (Tābū): तौबा की (पश्चाताप किया)।

  • وَأَصْلَحُوا (Wa Aṣlaḥū): और उन्होंने सुधार किया (अपने कर्मों को)।

  • وَاعْتَصَمُوا (Wa I'taṣamū): और उन्होंने मजबूती से पकड़ लिया।

  • بِاللَّهِ (Billāhi): अल्लाह (के धर्म/सहारे) को।

  • وَأَخْلَصُوا (Wa Akhlaṣū): और उन्होंने शुद्ध किया।

  • دِينَهُمْ (Dīnahum): उनका दीन (आस्था, इबादत)।

  • لِلَّهِ (Lillāhi): अल्लाह के लिए (खालिस)।

  • فَأُولَٰئِكَ (Fa ulā'ika): तो ऐसे लोग।

  • مَعَ (Ma'a): के साथ।

  • الْمُؤْمِنِينَ (Al-Mu'minīna): ईमान वालों के।

  • وَسَوْفَ (Wa Sawfa): और जल्द ही (भविष्य में)।

  • يُؤْتِ (Yu'ti): देगा।

  • اللَّهُ (Allāhu): अल्लाह।

  • الْمُؤْمِنِينَ (Al-Mu'minīna): ईमान वालों को।

  • أَجْرًا (Ajran): बदला, प्रतिफल।

  • عَظِيمًا (Aẓīman): अत्यंत बड़ा।

(3) आयत का पूरा अर्थ और संदर्भ:

यह आयत पिछली आयत (4:145) से सीधे जुड़ी हुई है, जिसमें मुनाफिकीन (पाखंडियों) के लिए नर्क के सबसे निचले स्तर की सजा का वर्णन था। यह आयत उस चर्चा पर एक राहत और आशा का द्वार खोलती है।

आयत का भावार्थ: "सिवाय उन लोगों के जिन्होंने तौबा कर ली और अपना सुधार कर लिया तथा अल्लाह (के धर्म) को मजबूती से पकड़ लिया और अपने दीन को अल्लाह के लिए खालिस कर लिया। तो ऐसे लोग ईमान वालों के साथ होंगे, और जल्द ही अल्लाह ईमान वालों को बहुत बड़ा प्रतिफल देगा।"

(4) विस्तृत व्याख्या और शिक्षा (Tafseer):

यह आयत अल्लाह की दया और रहमत की विशालता को दर्शाती है। यह बताती है कि नफाक (पाखंड) जैसे घोर पाप से भी बाहर निकलने का रास्ता है।

तौबा के लिए चार शर्तें बताई गई हैं:

  1. ताबू (तौबा करना): अतीत के पाखंड और गुनाहों पर सच्चे दिल से पश्चाताप करना और उन्हें छोड़ने का दृढ़ संकल्प लेना।

  2. अस्लहू (सुधार करना): सिर्फ पछतावा ही काफी नहीं है। भविष्य के कर्मों और आचरण को सही करना जरूरी है। जो बुराइयां की थीं, उन्हें छोड़कर अच्छे कर्म शुरू करना।

  3. इ'तसमू बिल्लाह (अल्लाह से मजबूती से चिपक जाना): अपने आप को केवल और केवल अल्लाह के धर्म और मार्गदर्शन से जोड़ लेना। उसकी किताब और उसके रसूल के मार्ग को अपना एकमात्र आधार बना लेना।

  4. अख्लसू दीनाHum लिल्लाह (अपने दीन को अल्लाह के लिए खालिस करना): यह सबसे महत्वपूर्ण शर्त है। हर इबादत, हर अच्छा काम सिर्फ और सिर्फ अल्लाह की रज़ा और उसकी खुशी के लिए करना। दिखावे, शोहरत, या किसी और की प्रशंसा का कोई लालच दिल में न रखना।

परिणाम: जो व्यक्ति इन चार शर्तों पर पूरा उतरता है:

  • फा उलाइका म'al-मु'मिनीन (तो ऐसे लोग ईमान वालों के साथ होंगे): उसका नाम मुनाफिकीन की सूची से हटकर सच्चे मोमिनीन की सूची में दर्ज हो जाता है। उसे कयामत के दिन ईमान वालों के साथ उठाया जाएगा और जन्नत में उनके साथ रखा जाएगा।

  • वसौफा युतिल्लाहुल-मु'मिनीना अज्रन अजीमा (और अल्लाह ईमान वालों को जल्द ही बहुत बड़ा प्रतिफल देगा): यह अंतिम वादा सभी सच्चे मोमिनीन के लिए है, जिनमें वे लोग भी शामिल हैं जिन्होंने तौबा करके अपने आप को सुधार लिया।

(5) शिक्षा और सबक (Lesson):

  1. तौबा का दरवाजा खुला है: कोई भी इंसान कितना भी बड़ा गुनाहगार क्यों न हो, अगर वह सच्चे दिल से तौबा करे तो अल्लाह की रहमत उसके लिए तैयार है।

  2. ईमान की शुद्धता सर्वोपरि: इस्लाम में "इख्लास" (शुद्धता/ईमान की पवित्रता) का स्थान सबसे ऊंचा है। अल्लाह केवल वही अमल स्वीकार करता है जो खालिस उसी के लिए किया गया हो।

  3. आशा और प्रयास: यह आयत हमें निराश नहीं होने देती। यह सिखाती है कि गलती हो जाने पर हताश होने के बजाय, सुधार के रास्ते पर चलना चाहिए।

(6) अतीत, वर्तमान और भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy):

  • अतीत (Past) में: यह आयत उन लोगों के लिए एक जीवन रेखा थी जो मुनाफिकीन के समूह में शामिल हो गए थे या जिनके अंदर नफाक के लक्षण थे। इसने उन्हें समय रहते सच्ची तौबा करके अपने आप को बचाने का मौका दिया।

  • समकालीन वर्तमान (Contemporary Present) में: आज के दौर में यह आयत बेहद प्रासंगिक है।

    • आध्यात्मिक सुधार: आज बहुत से लोग धार्मिक दिखावे के शिकार हैं। यह आयत उन्हें अपनी नीयत को शुद्ध करने और अल्लाह के लिए अपने धर्म को खालिस करने का आह्वान करती है।

    • सोशल मीडिया और दिखावा: सोशल मीडिया ने दिखावे की संस्कृति को बढ़ावा दिया है। लोग 'लाइक्स' और प्रशंसा पाने के लिए अच्छे काम करते हैं। यह आयत हमें याद दिलाती है कि हमारा उद्देश्य केवल अल्लाह की प्रसन्नता होना चाहिए।

    • गुनाहों से उबरने की उम्मीद: आज का युवा वर्ग तरह-तरह के गुनाहों में लिप्त है और अक्सर सोचता है कि अब पलटने का रास्ता नहीं है। यह आयत उन्हें बताती है कि सच्ची तौबा और सुधार का रास्ता हमेशा खुला है।

  • भविष्य (Future) में: जब तक इंसान रहेगा, गलतियां और पाप होते रहेंगे। लोग दिखावे और पाखंड के शिकार होते रहेंगे। यह आयत भविष्य के सभी लोगों के लिए एक स्थायी मार्गदर्शन और आशा का स्रोत बनी रहेगी। यह हमेशा यह संदेश देती रहेगी कि अल्लाह की रहमत से कभी निराश नहीं होना चाहिए और सच्चे हृदय से सुधार की ओर बढ़ते रहना चाहिए।

निष्कर्ष: कुरआन की यह आयत निराशा में आशा की किरण है। यह अल्लाह की असीम दया को दर्शाती है और हर इंसान को, चाहे उसका अतीत कितना भी अंधकारमय क्यों न हो, सुधार और माफी का अवसर प्रदान करती है। यह हमें सिखाती है कि असली सफलता सच्चे ईमान और अपने कर्मों की शुद्धता में है।