1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Text)
وَلَا تَنكِحُوا مَا نَكَحَ آبَاؤُكُم مِّنَ النِّسَاءِ إِلَّا مَا قَدْ سَلَفَ ۚ إِنَّهُ كَانَ فَاحِشَةً وَمَقْتًا وَسَاءَ سَبِيلًا
2. आयत का हिंदी अर्थ (Meaning in Hindi)
"और उन स्त्रियों से विवाह न करो, जिनसे तुम्हारे बाप-दादा ने विवाह किया था, सिवाय उस (व्यवहार) के जो पहले बीत चुका है। निस्संदेह, यह (काम) बड़ी अश्लीलता (फाहिशा) है और (अल्लाह की) नाराज़गी का कारण है और बहुत ही बुरा मार्ग है।"
3. आयत से मिलने वाला सबक (Lesson from the Verse)
पारिवारिक शुद्धता और सम्मान: यह आयत पारिवारिक रिश्तों की पवित्रता को स्थापित करती है। पिता की पत्नी (सौतेली माँ) से विवाह करना एक गंभीर नैतिक पतन और पारिवारिक संबंधों का उल्लंघन है।
सामाजिक सीमाओं का निर्धारण: इस्लाम समाज में शालीनता और नैतिकता की सीमाएँ निर्धारित करता है। यह आयत एक स्पष्ट सीमा रेखा खींचती है कि किन रिश्तों में विवाह वर्जित है, ताकि पारिवारिक ढाँचा मजबूत और शुद्ध बना रहे।
अतीत के लिए दया का दृष्टिकोण: "सिवाय उसके जो पहले बीत चुका है" इस वाक्यांश से अल्लाह की दया झलकती है। इस्लाम से पहले जो लोग इस प्रथा में लिप्त थे, उन्हें इस आयत के उतरने के बाद माफ कर दिया गया, लेकिन भविष्य के लिए इसे पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया गया।
पाप की गंभीरता: आयत में इस कार्य को तीन शब्दों में परिभाषित किया गया है:
फाहिशा: घृणित अश्लीलता
मक़्त: अल्लाह की नाराजगी और घृणा
साए सबीला: बहुत बुरा रास्ता
यह इस कार्य की गंभीरता को दर्शाता है।
4. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevance: Past, Present & Future)
अतीत में प्रासंगिकता (Past Relevance):
सामाजिक क्रांति: इस्लाम से पहले अरब समाज में सौतेली माँ से विवाह की प्रथा प्रचलित थी। इस आयत ने उस बर्बर और अनैतिक प्रथा को समाप्त कर दिया और समाज को एक नैतिक आधार प्रदान किया।
महिलाओं की गरिमा की स्थापना: इस आयत ने महिलाओं को पुरुषों की वासना की वस्तु बनने से बचाया और उन्हें समाज में सम्मानजनक स्थान दिलाया।
वर्तमान में प्रासंगिकता (Present Relevance):
सामाजिक नैतिकता का मानदंड: आज के आधुनिक समाज में भी यह आयत पारिवारिक नैतिकता के एक मौलिक सिद्धांत की याद दिलाती है। यह स्पष्ट करती है कि पारिवारिक संबंधों की सीमाओं का उल्लंघन सभ्य समाज में स्वीकार्य नहीं है।
मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य: आधुनिक मनोविज्ञान भी मानता है कि ऐसे संबंध पारिवारिक जीवन में गंभीर मनोवैज्ञानिक समस्याएँ पैदा कर सकते हैं। यह आयत इन समस्याओं से बचाव का मार्ग दिखाती है।
कानूनी आधार: आज के अधिकांश देशों के कानूनों में भी ऐसे विवाहों पर प्रतिबंध है। इस्लाम ने 1400 साल पहले ही इसकी मनाही कर दी थी, जो इसकी सार्वभौमिक प्रासंगिकता को दर्शाता है।
पारिवारिक सद्भाव: यह आयत पारिवारिक जीवन में सद्भाव और सम्मानपूर्ण संबंधों को बनाए रखने में मदद करती है।
भविष्य में प्रासंगिकता (Future Relevance):
शाश्वत नैतिक मूल्य: मानव सभ्यता चाहे कितनी भी उन्नत क्यों न हो जाए, पारिवारिक शुद्धता और नैतिकता के ये मूल्य सदैव प्रासंगिक रहेंगे।
सामाजिक स्थिरता का आधार: भविष्य के समाजों के लिए यह आयत एक स्थिर और स्वस्थ पारिवारिक ढाँचे की नींव प्रदान करती रहेगी।
मानवीय गरिमा की रक्षा: यह आयत भविष्य की पीढ़ियों को मानवीय गरिमा और पारिवारिक सम्मान के महत्व का बोध कराती रहेगी।
निष्कर्ष:
कुरआन की आयत 4:22 पारिवारिक नैतिकता और सामाजिक शुद्धता का एक मौलिक सिद्धांत स्थापित करती है। यह अतीत में एक क्रांतिकारी सामाजिक सुधार थी, वर्तमान में पारिवारिक मूल्यों की रक्षा करने वाली आयत है और भविष्य के लिए एक शाश्वत नैतिक मार्गदर्शक है। यह आयत इस्लाम के संतुलित और शुद्ध समाज के निर्माण के दृष्टिकोण को प्रतिबिंबित करती है।