Read Quran translation in Hindi with verse-by-verse meaning and time-relevant explanations for deeper understanding.

कुरआन की आयत 4:21 की पूर्ण व्याख्या

 

1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Text)

وَكَيْفَ تَأْخُذُونَهُ وَقَدْ أَفْضَىٰ بَعْضُكُمْ إِلَىٰ بَعْضٍ وَأَخَذْنَ مِنكُم مِّيثَاقًا غَلِيظًا


2. आयत का हिंदी अर्थ (Meaning in Hindi)

"और तुम उसे (महर) कैसे वापस ले सकते हो, जबकि तुम एक-दूसरे के पास आ चुके हो (पति-पत्नी के रूप में घनिष्ठ संबंध स्थापित कर चुके हो) और उन्होंने (पत्नियों ने) तुमसे एक मजबूत वचन (वैवाहिक अनुबंध) लिया है।"


3. आयत से मिलने वाला सबक (Lesson from the Verse)

  1. वैवाहिक बंधन की पवित्रता: यह आयत विवाह को केवल एक शारीरिक संबंध नहीं, बल्कि एक पवित्र और मजबूत अनुबंध (मीथाक़-ए-ग़लीज़) बताती है। यह रिश्ता इतना गहरा और सम्मानजनक है कि इसे तोड़ते समय भी नैतिकता का पालन करना जरूरी है।

  2. महर पत्नी का निर्विवाद अधिकार: पिछली आयतों के संदर्भ में, यह आयत फिर से जोर देती है कि एक बार वैवाहिक जीवन शुरू हो जाने के बाद महर वापस लेना पूरी तरह से नैतिकता और इंसाफ के खिलाफ है।

  3. वैवाहिक संबंधों की गरिमा: आयत में "अफज़ा" शब्द का प्रयोग हुआ है, जिसका अर्थ है घनिष्ठता प्राप्त करना। यह दर्शाता है कि पति-पत्नी का रिश्ता अत्यंत निजी, विश्वासपूर्ण और पवित्र है। ऐसे पवित्र रिश्ते के बाद धन वापस लेना इसकी गरिमा के खिलाफ है।

  4. अनुबंध की पवित्रता: इस्लाम विवाह को एक पवित्र अनुबंध मानता है, न कि एक व्यावसायिक लेन-देन। इस आयत में "मीथाक़-ए-ग़लीज़" (मजबूत वचन) कहकर इस अनुबंध की गंभीरता को समझाया गया है।


4. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevance: Past, Present & Future)

अतीत में प्रासंगिकता (Past Relevance):

  • सामाजिक सुधार: इस्लाम से पहले के अरब समाज में महिलाओं के साथ संबंध बनाकर उन्हें धन या संपत्ति देने के बाद वापस ले लेना एक आम बात थी। इस आयत ने उस अनैतिक प्रथा का अंत किया।

  • महिलाओं का सम्मान: इस आयत ने महिलाओं को समाज में एक सम्मानजनक स्थान दिलाया और उनके अधिकारों की रक्षा की।

वर्तमान में प्रासंगिकता (Present Relevance):

  • दहेज प्रथा के खिलाफ: आज भी समाज में दहेज के लेन-देन और तलाक के समय इसे वापस लेने की कोशिशें होती हैं। यह आयत स्पष्ट रूप से बताती है कि यह प्रथा अल्लाह को नापसंद है।

  • वैवाहिक संबंधों की गरिमा: आज के समय में जहाँ विवाह संबंधों में अनबन और तलाक की दर बढ़ रही है, यह आयत पति-पत्नी को उनके रिश्ते की पवित्रता और गंभीरता का एहसास कराती है।

  • महिला सशक्तिकरण: यह आयत महिलाओं को उनके वैध अधिकारों के प्रति जागरूक करती है और उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाती है।

  • नैतिक मूल्यों का पालन: यह आयत समाज में नैतिक मूल्यों की स्थापना करती है और लोगों को सिखाती है कि रिश्ते टूटने पर भी इंसाफ और ईमानदारी से काम लेना चाहिए।

भविष्य में प्रासंगिकता (Future Relevance):

  • शाश्वत मार्गदर्शन: जब तक विवाह संस्था अस्तित्व में रहेगी, यह आयत मानवता के लिए मार्गदर्शन का स्रोत बनी रहेगी।

  • सामाजिक न्याय: भविष्य के समाज में यह आयत लैंगिक न्याय और समानता की बुनियाद को मजबूत करेगी।

  • मानवीय संबंधों की पवित्रता: यह आयत भविष्य की पीढ़ियों को मानवीय संबंधों की पवित्रता और उनमें निहित जिम्मेदारियों का एहसास कराती रहेगी।

निष्कर्ष:
कुरआन की आयत 4:21 वैवाहिक जीवन की पवित्रता और गरिमा को प्रतिपादित करती है। यह अतीत में एक सामाजिक क्रांति लाने वाली आयत थी, वर्तमान में दहेज प्रथा और महिला अधिकारों का संरक्षण करने वाली आयत है और भविष्य के लिए मानवीय संबंधों में नैतिकता बनाए रखने का मार्गदर्शन करने वाली आयत है। यह आयत इस्लाम के संतुलित दृष्टिकोण को दर्शाती है जो न सिर्फ महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करता है बल्कि पारिवारिक जीवन की पवित्रता को भी स्थापित करता है।