Read Quran translation in Hindi with verse-by-verse meaning and time-relevant explanations for deeper understanding.

कुरआन की आयत 4:20 की पूर्ण व्याख्या

 

1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Text)

وَإِنْ أَرَدتُّمُ اسْتِبْدَالَ زَوْجٍ مَّكَانَ زَوْجٍ وَآتَيْتُمْ إِحْدَاهُنَّ قِنطَارًا فَلَا تَأْخُذُوا مِنْهُ شَيْئًا ۚ أَتَأْخُذُونَهُ بُهْتَانًا وَإِثْمًا مُّبِينًا


2. आयत का हिंदी अर्थ (Meaning in Hindi)

"और यदि तुम एक पत्नी के बदले दूसरी पत्नी लाना चाहो और तुमने उनमें से किसी एक को ढेर सारा धन (महर) दिया हो, तो उसमें से कुछ भी वापस न लो। क्या तुम उसे झूठे आरोप लगाकर और खुला पाप करके वापस लोगे?"


3. आयत से मिलने वाला सबक (Lesson from the Verse)

  1. महर (दहेज नहीं) की पवित्रता: यह आयत स्पष्ट करती है कि महर (वह धन या संपत्ति जो पति शादी के समय पत्नी को देता है) पत्नी का पूर्ण और निर्विवाद अधिकार है। तलाक की स्थिति में भी पति को उसे वापस लेने का कोई अधिकार नहीं है।

  2. स्त्री के आर्थिक अधिकारों की सुरक्षा: इस आयत ने स्त्री के आर्थिक अधिकारों को एक मजबूत गारंटी दी। यह सुनिश्चित करती है कि विवाह टूटने की स्थिति में भी महिला आर्थिक रूप से असुरक्षित न रहे।

  3. नैतिक आचरण का निर्देश: आयत पुरुषों को सचेत करती है कि महर वापस लेने के लिए झूठे आरोप लगाना ("बुह्तान") एक स्पष्ट पाप ("इसमुन मुबीना") है। यह ईमानदारी और नैतिकता पर जोर देती है।

  4. वैवाहिक संबंधों में ईमानदारी: यह आयत पति-पत्नी के बीच के रिश्ते को एक पवित्र अनुबंध के रूप में स्थापित करती है, न कि एक लेन-देन का सौदा, जिसे तोड़ते समय धन वापस लिया जा सके।


4. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevance: Past, Present & Future)

अतीत में प्रासंगिकता (Past Relevance):

  • सामाजिक क्रांति: इस्लाम से पहले के अरब समाज में महिलाओं को संपत्ति का अधिकार नहीं था। तलाक या पति की मृत्यु के बाद उन्हें उनके दिए गए धन से वंचित कर दिया जाता था। इस आयत ने उस अन्यायपूर्ण प्रथा का अंत किया।

  • महिला सशक्तिकरण का आधार: इस आयत ने महिलाओं को आर्थिक स्वायत्तता प्रदान की, जो उस जमाने में एक क्रांतिकारी कदम था। इसने उन्हें समाज में एक सम्मानजनक स्थान दिलाने में मदद की।

वर्तमान में प्रासंगिकता (Present Relevance):

  • दहेज की बुराई के खिलाफ खड़ा होना: आज भी दहेज का चलन एक सामाजिक अभिशाप है। यह आयत स्पष्ट रूप से बताती है कि पत्नी को दिया गया धन (महर) उसका अधिकार है और उसे वापस लेना "खुला पाप" है। यह मुसलमानों को दहेज की प्रथा का विरोध करने की प्रेरणा देती है।

  • तलाक के दौरान महिला अधिकार: आज तलाक के मामलों में अक्सर महिलाओं को उनके हक से वंचित कर दिया जाता है। यह आयत एक स्पष्ट निर्देश है कि तलाक की स्थिति में भी महर वापस नहीं लिया जा सकता। यह महिलाओं को कानूनी तौर पर उनका हक दिलवाने में मददगार साबित हो सकती है।

  • वैवाहिक जीवन में पारदर्शिता: यह आयत पति-पत्नी के रिश्ते में ईमानदारी और पारदर्शिता पर जोर देती है। यह सिखाती है कि रिश्ते टूटने पर भी एक-दूसरे के अधिकारों का सम्मान करना चाहिए, न कि झूठे आरोप लगाकर धन हड़पना चाहिए।

  • आर्थिक न्याय: समकालीन समाज में जहाँ महिला सशक्तिकरण पर बल दिया जा रहा है, यह आयत आर्थिक न्याय का एक मजबूत आधार प्रस्तुत करती है, जो महिलाओं को वित्तीय सुरक्षा प्रदान करता है।

भविष्य में प्रासंगिकता (Future Relevance):

  • शाश्वत न्याय का सिद्धांत: जब तक विवाह और तलाक जैसी सामाजिक संस्थाएँ अस्तित्व में रहेंगी, यह आयत न्याय और नैतिकता का एक स्थायी मानदंड प्रस्तुत करती रहेगी।

  • मानवाधिकारों की रक्षा: भविष्य के समाज में मानवाधिकारों के प्रति जागरूकता और बढ़ेगी। यह आयत महिलाओं के आर्थिक अधिकारों की रक्षा के लिए एक दिव्य समर्थन के रूप में कार्य करेगी।

  • सामाजिक नैतिकता का आधार: यह आयत भविष्य की पीढ़ियों को यह याद दिलाती रहेगी कि वैवाहिक संबंधों में ईमानदारी और न्यायपूर्ण व्यवहार ही स्थायी और स्वस्थ समाज की नींव है।

निष्कर्ष:
कुरआन की आयत 4:20 महिलाओं के आर्थिक अधिकारों की एक मजबूत गारंटी है। यह अतीत में एक क्रांतिकारी सुधार थी, वर्तमान में दहेज और महिला उत्पीड़न के खिलाफ एक शक्तिशाली हथियार है और भविष्य के लिए एक शाश्वत नैतिक दिशानिर्देश है। यह आयत इस्लाम के न्यायपूर्ण और संतुलित दृष्टिकोण को प्रदर्शित करती है, जो महिलाओं को उनका सम्मान और अधिकार देता है।