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कुरआन की आयत 4:33 की पूर्ण व्याख्या

 

1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Text)

وَلِكُلٍّ جَعَلْنَا مَوَالِيَ مِمَّا تَرَكَ الْوَالِدَانِ وَالْأَقْرَبُونَ ۚ وَالَّذِينَ عَقَدَتْ أَيْمَانُكُمْ فَآتُوهُمْ نَصِيبَهُمْ ۗ إِنَّ اللَّهَ كَانَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ شَهِيدًا


2. आयत का हिंदी अर्थ (Meaning in Hindi)

"और हमने हर एक के लिए (विरासत के) वारिस बनाए हैं, उस (माल) में से जो माता-पिता और निकटतम रिश्तेदार छोड़ें। और (हे मुसलमानो!) जिन (गैर-रिश्तेदारों) से तुमने (दोस्ती या सहायता का) वचन बाँधा है, उन्हें भी उनका हिस्सा दो। निश्चित रूप से अल्लाह हर चीज़ पर गवाह है।"


3. आयत से मिलने वाला सबक (Lesson from the Verse)

  1. विरासत में न्याय का सिद्धांत: यह आयत विरासत के नियमों को जारी रखते हुए एक मौलिक सिद्धांत स्थापित करती है कि अल्लाह ने हर व्यक्ति के लिए विरासत के वारिस निर्धारित कर दिए हैं। इससे पता चलता है कि विरासत कोई मनमाना नियम नहीं, बल्कि एक दैवीय व्यवस्था है।

  2. वचनबद्धता का महत्व: आयत में एक नया और महत्वपूर्ण सिद्धांत जोड़ा गया है - "अकदत ऐमानुकुम" (जिनसे तुमने वचन बाँधा है)। इसका अर्थ है कि अगर किसी ने किसी गैर-रिश्तेदार से दोस्ती, सहायता या गठबंधन का वचन दिया है, तो उसे भी विरासत में एक निश्चित हिस्सा देने का निर्देश है।

  3. व्यापक सामाजिक सुरक्षा: यह प्रावधान इस्लामी समाज में एक व्यापक सामाजिक सुरक्षा जाल का काम करता था। इससे अनाथ, यतीम और वे लोग भी सुरक्षित हो जाते थे जिनका कोई रक्त संबंधी वारिस नहीं था।

  4. अल्लाह की निगरानी: आयत का अंत इस बात पर जोर देता है कि अल्लाह हर वादे और हर विरासत के बँटवारे का गवाह है। यह लोगों को वचन तोड़ने या विरासत में हेराफेरी करने से रोकता है।


4. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevance: Past, Present & Future)

अतीत में प्रासंगिकता (Past Relevance):

  • सामाजिक सुरक्षा का ढाँचा: इस्लाम से पहले, केवल रक्त संबंधी ही विरासत पाते थे। इस आयत ने समाज के कमजोर वर्गों और वचनबद्ध रिश्तों को सुरक्षा प्रदान की। यह इस्लामी समाज में "भाईचारे" की अवधारणा को मजबूत करती थी।

  • वचन की पवित्रता: अरब समाज में वचनबद्धता (वफ़ादारी) को बहुत महत्व दिया जाता था। इस आयत ने इस सामाजिक मूल्य को एक धार्मिक और कानूनी दर्जा दे दिया।

वर्तमान में प्रासंगिकता (Present Relevance):

  • वसीयत (Will) का इस्लामी आधार: आज के युग में, यह आयत इस्लामी वसीयत (वसीयतनामा) का आधार बनती है। कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति का एक तिहाई हिस्सा किसी गैर-वारिस को दे सकता है, जो इसी सिद्धांत का विस्तार है। यह उन लोगों की देखभाल का रास्ता खोलती है जिनसे हमारा भावनात्मक लगाव है।

  • सामाजिक जिम्मेदारी की याद: आज का समाज व्यक्तिवादी होता जा रहा है। यह आयत हमें याद दिलाती है कि हमारी जिम्मेदारी सिर्फ अपने खून के रिश्तेदारों तक ही सीमित नहीं है। पड़ोसी, दोस्त, या कोई और जिससे हमने किसी प्रकार का वचन बाँधा है, उसके प्रति भी हमारी जिम्मेदारी है।

  • विरासत के झगड़ों से बचाव: "अल्लाह हर चीज़ पर गवाह है" - यह भावना विरासत के झगड़ों को रोकने में मदद कर सकती है। अगर लोग ईमानदारी से अल्लाह की निगरानी का एहसास करें, तो वे विरासत में गड़बड़ी करने से डरेंगे।

  • दत्तक ग्रहण और देखभाल: आधुनिक समय में, यह आयत उन लोगों के लिए मार्गदर्शन प्रदान करती है जो बच्चों को गोद लेते हैं या बुजुर्गों की देखभाल करते हैं, भले ही वे रक्त संबंधी न हों।

भविष्य में प्रासंगिकता (Future Relevance):

  • बदलते परिवारिक ढाँचे के लिए मार्गदर्शन: भविष्य में परिवार के पारंपरिक ढाँचे और बदलती सामाजिक वास्तविकताओं (जैसे दोस्तों के समुदाय, सामाजिक नेटवर्क) के साथ, यह आयत यह सिद्धांत देती रहेगी कि जिम्मेदारियाँ सिर्फ रक्त संबंधों तक ही सीमित नहीं हैं।

  • वैश्विक नागरिकता की भावना: एक वैश्विक समाज में, "वचनबद्धता" की यह अवधारणा हमें मानवता के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का एहसास करा सकती है।

  • नैतिक आधार: तकनीकी रूप से उन्नत समाज में भी, वचन की पवित्रता और दूसरों के अधिकारों का सम्मान एक स्थायी नैतिक मूल्य बना रहेगा, जिसकी याद यह आयत दिलाती रहेगी।

निष्कर्ष:
कुरआन की आयत 4:33 विरासत के नियम को एक व्यापक सामाजिक और नैतिक दर्शन में बदल देती है। यह अतीत में एक क्रांतिकारी सामाजिक सुरक्षा उपाय थी, वर्तमान में वसीयत और सामाजिक जिम्मेदारी का मार्गदर्शक है और भविष्य के बदलते सामाजिक ढाँचे के लिए एक लचीला नैतिक आधार प्रस्तुत करती है। यह आयत दर्शाती है कि इस्लामी कानून मानवीय रिश्तों की जटिलताओं को समझता है और उनके लिए दयालु तथा न्यायसंगत समाधान प्रदान करता है।