Read Quran translation in Hindi with verse-by-verse meaning and time-relevant explanations for deeper understanding.

कुरआन की आयत 4:36 की पूर्ण व्याख्या

 

1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Text)

۞ وَاعْبُدُوا اللَّهَ وَلَا تُشْرِكُوا بِهِ شَيْئًا ۖ وَبِالْوَالِدَيْنِ إِحْسَانًا وَبِذِي الْقُرْبَىٰ وَالْيَتَامَىٰ وَالْمَسَاكِينِ وَالْجَارِ ذِي الْقُرْبَىٰ وَالْجَارِ الْجُنُبِ وَالصَّاحِبِ بِالْجَنبِ وَابْنِ السَّبِيلِ وَمَا مَلَكَتْ أَيْمَانُكُمْ ۗ إِنَّ اللَّهَ لَا يُحِبُّ مَن كَانَ مُخْتَالًا فَخُورًا


2. आयत का हिंदी अर्थ (Meaning in Hindi)

"और अल्लाह की इबादत (बन्दगी) करो और उसके साथ किसी को साझी न ठहराओ, और माता-पिता के साथ अच्छा व्यवहार करो, और (साथ ही) रिश्तेदारों, अनाथों, मिस्कीनों (गरीबों), नज़दीकी पड़ोसी और अजनबी पड़ोसी, और (हर) साथी के साथ (अच्छा व्यवहार करो), और मुसाफिर के साथ और उन (सेवकों) के साथ (अच्छा व्यवहार करो) जो तुम्हारे अधिकार में हों। निश्चित रूप से अल्लाह उस व्यक्ति को पसंद नहीं करता जो अहंकारी और घमंडी हो।"


3. आयत से मिलने वाला सबक (Lesson from the Verse)

  1. तौहीद (एकेश्वरवाद) का केंद्रीय महत्व: आयत की शुरुआत इस्लाम के सबसे मौलिक सिद्धांत - अल्लाह की इबादत और उसके साथ किसी को साझी न ठहराने - से होती है। यह दर्शाता है कि सही ईमान ही सामाजिक न्याय और दया की नींव है।

  2. व्यापक सामाजिक जिम्मेदारी: यह आयत एक "सामाजिक दायित्व का चार्टर" प्रस्तुत करती है। यह केवल नमाज़ और रोज़े तक सीमित नहीं, बल्कि ईश्वर के बंदों के प्रति हमारे कर्तव्यों को परिभाषित करती है।

  3. संबंधों का पदानुक्रम: आयत में संबंधों को एक तार्किक क्रम में रखा गया है - सबसे पहले माता-पिता, फिर रिश्तेदार, फिर समाज के कमजोर वर्ग (अनाथ, गरीब), फिर पड़ोसी (चाहे वह रिश्तेदार हो या अजनबी), फिर सहयोगी, मुसाफिर और सेवक। यह हमारे दायरे को व्यक्तिगत से लेकर वैश्विक तक विस्तारित करती है।

  4. अहंकार की निंदा: आयत का अंत एक शक्तिशाली चेतावनी के साथ होता है - अल्लाह अहंकारी और घमंडी लोगों को पसंद नहीं करता। यह सिखाता है कि दया और अहंकार एक साथ नहीं रह सकते।


4. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevance: Past, Present & Future)

अतीत में प्रासंगिकता (Past Relevance):

  • एक नए समाज का निर्माण: जब यह आयत उतरी, तो इसने एक ऐसे समाज की नींव रखी जो कबीलाई संकीर्णता से ऊपर उठकर सार्वभौमिक भाईचारे और सामाजिक जिम्मेदारी पर आधारित था।

  • कमजोर वर्गों का संरक्षण: उस समय में अनाथों, विधवाओं, गरीबों और दासों के कोई अधिकार नहीं थे। इस आयत ने उन्हें समाज में एक सम्मानजनक स्थान और सुरक्षा प्रदान की।

वर्तमान में प्रासंगिकता (Present Relevance):

  • समग्र धार्मिकता की अवधारणा: आज के युग में, जहाँ धर्म को अक्सर केवल रस्मों तक सीमित कर दिया जाता है, यह आयत याद दिलाती है कि असली ईमान अल्लाह की इबादत और उसके बंदों की सेवा दोनों में है। यह "सर्विस टू ह्यूमैनिटी इज सर्विस टू गॉड" का संदेश देती है।

  • सामाजिक अलगाव के खिलाफ दवा: आज का शहरी समाज अकेलापन, पड़ोसियों से अनजानापन और सामाजिक अलगाव से ग्रस्त है। यह आयत पड़ोसी (चाहे वह कैसा भी हो) के अधिकारों पर जोर देकर एक मजबूत सामुदायिक ढाँचे को बढ़ावा देती है।

  • मानवाधिकारों का दिव्य आधार: अनाथों, गरीबों, मुसाफिरों और श्रमिकों के अधिकारों का यह संदेश आधुनिक मानवाधिकार घोषणापत्र का आध्यात्मिक आधार प्रतीत होता है। यह हमें समाज के कमजोर वर्गों के प्रति हमारी जिम्मेदारी का एहसास कराती है।

  • वैश्विक नागरिकता: "मुसाफिर" (इब्न-us-सबील) की अवधारणा आज शरणार्थियों, प्रवासी मजदूरों और विदेशियों के प्रति हमारे दायित्व को दर्शाती है।

भविष्य में प्रासंगिकता (Future Relevance):

  • तकनीकी समाज में मानवता बनाए रखना: भविष्य के अति-तकनीकी समाज में, जहाँ मानवीय संपर्क कम हो सकता है, यह आयत हमें मानवीय रिश्तों, दया और सामुदायिक भावना के महत्व की याद दिलाती रहेगी।

  • शाश्वत नैतिक संहिता: चाहे समाज कितना भी बदल जाए, माता-पिता का सम्मान, गरीबों की मदद, पड़ोसियों के साथ अच्छा व्यवहार और अहंकार से दूर रहना - ये सिद्धांत सदैव प्रासंगिक बने रहेंगे।

  • वैश्विक शांति का आधार: यह आयत सिखाती है कि शांति की शुरुआत हमारे अपने घर, अपने पड़ोस और अपने समुदाय से होती है। यह भविष्य के एक शांतिपूर्ण विश्व समाज की नींव रखती है।

निष्कर्ष:
कुरआन की आयत 4:36 इस्लामी नैतिकता और सामाजिक न्याय का एक सम्पूर्ण चार्टर है। यह अतीत में एक सभ्यता का आधार थी, वर्तमान में एक संतुलित और मानवीय जीवनशैली का मार्गदर्शक है और भविष्य के लिए एक शाश्वत नैतिक संहिता प्रस्तुत करती है। यह आयत स्पष्ट करती है कि अल्लाह तक पहुँचने का रास्ता उसके बंदों की सेवा और उनके प्रति दया दिखाने से होकर गुजरता है।