1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Text)
وَإِنْ خِفْتُمْ شِقَاقَ بَيْنِهِمَا فَابْعَثُوا حَكَمًا مِّنْ أَهْلِهِ وَحَكَمًا مِّنْ أَهْلِهَا إِن يُرِيدَا إِصْلَاحًا يُوَفِّقِ اللَّهُ بَيْنَهُمَا ۗ إِنَّ اللَّهَ كَانَ عَلِيمًا خَبِيرًا
2. आयत का हिंदी अर्थ (Meaning in Hindi)
"और यदि तुम्हें पति-पत्नी के बीच अलगाव (झगड़े) का भय हो, तो एक मध्यस्थ (हकम) पति के परिवार से नियुक्त करो और एक मध्यस्थ पत्नी के परिवार से नियुक्त करो। यदि वे दोनों सुलह (मेल-मिलाप) का इरादा रखते हैं, तो अल्लाह उन दोनों के बीच मेल करा देगा। निश्चित रूप से अल्लाह सब कुछ जानने वाला, सूचित रहने वाला है।"
3. आयत से मिलने वाला सबक (Lesson from the Verse)
पारिवारिक सुलह (मेल-मिलाप) का महत्व: इस्लाम पारिवारिक रिश्तों, खासकर वैवाहिक बंधन को तोड़ने के बजाय उन्हें सुलझाने और मजबूत करने पर जोर देता है। तलाक को सबसे नापसंदीदा हल माना गया है।
निष्पक्ष मध्यस्थता का सिद्धांत: आयत पारिवारिक झगड़ों के समाधान के लिए एक अद्भुत और न्यायसंगत तरीका बताती है। दोनों पक्षों से एक-एक मध्यस्थ का चुनाव यह सुनिश्चित करता है कि दोनों की बात सुनी जाए और पक्षपात की गुंजाइश कम हो।
इरादे की शुद्धता: आयत स्पष्ट करती है कि मध्यस्थता की सफलता मध्यस्थों के इरादे ("इन युरीदा इस्लाह") पर निर्भर करती है। अगर उनका इरादा वास्तव में सुलह और भलाई का है, तो अल्लाह की मदद आती है।
सामुदायिक भागीदारी: विवाह को सिर्फ दो व्यक्तियों का निजी मामला नहीं, बल्कि दो परिवारों और व्यापक समुदाय से जुड़ा एक सामाजिक अनुबंध माना गया है। इसलिए, समुदाय की जिम्मेदारी है कि वह टूटते रिश्तों को बचाने में मदद करे।
4. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमार्न और भविष्य (Relevance: Past, Present & Future)
अतीत में प्रासंगिकता (Past Relevance):
कबीलाई झगड़ों का समाधान: इस्लाम से पहले, पति-पत्नी के झगड़े अक्सर दो कबीलों के बीच बड़े संघर्ष में बदल जाते थे। इस आयत ने एक सभ्य और संरचित प्रक्रिया शुरू की, जिससे हिंसा और बदले की भावना पर अंकुश लगा।
महिलाओं के पक्ष में न्याय: पत्नी के परिवार से एक मध्यस्थ का नियुक्त किया जाना, उस जमाने में एक क्रांतिकारी कदम था। इससे यह सुनिश्चित हुआ कि महिला की आवाज सुनी जाए और उसके हकों की रक्षा हो।
वर्तमान में प्रासंगिकता (Present Relevance):
आधुनिक मैरिज काउंसलिंग का आधार: यह आयत आधुनिक विवाह परामर्श (Marriage Counselling) का इस्लामी स्वरूप है। आज के युग में, ये "हकम" trained counsellors, धार्मिक विद्वान (उलेमा), या परिवार के बुजुर्ग हो सकते हैं जो तटस्थ और निष्पक्ष भूमिका निभाते हैं।
तलाक की बढ़ती दर का समाधान: आज जब तलाक की दरें लगातार बढ़ रही हैं, यह आयत एक बेहतर विकल्प प्रस्तुत करती है। यह पति-पत्नी को तुरंत तलाक का रास्ता न अपनाकर, समझौते और बातचीत का मौका देती है।
पारिवारिक हस्तक्षेप का मार्गदर्शन: कई बार परिवार के लोग झगड़े को बढ़ा देते हैं। यह आयत परिवारों को एक रचनात्मक भूमिका निभाने का तरीका सिखाती है - न कि पक्ष लेने का, बल्कि सुलह कराने का।
संचार की महत्ता: यह आयत अप्रत्यक्ष रूप से संचार (Communication) के महत्व को रेखांकित करती है। जब दो लोग आपस में नहीं बात कर पा रहे, तो एक तीसरे पक्ष की मदद लेना समाधान का कारगर तरीका हो सकता है।
भविष्य में प्रासंगिकता (Future Relevance):
शाश्वत संघर्ष समाधान तंत्र: जब तक विवाह और परिवार रहेंगे, वैवाहिक कलह भी रहेगी। यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी के लिए एक कारगर और शांतिपूर्ण समाधान प्रक्रिया प्रदान करती रहेगी।
कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और परामर्श: भविष्य में AI आधारित मैरिज काउंसलिंग टूल्स विकसित हो सकते हैं, लेकिन मानवीय संवेदनशीलता, समझ और नेक नीयती की आवश्यकता हमेशा बनी रहेगी, जिस पर यह आयत जोर देती है।
वैश्विक शांति का सूक्ष्म स्तर: यह आयत सिखाती है कि बड़े संघर्षों (जैसे देशों के बीच) का समाधान भी निष्पक्ष मध्यस्थता और सुलह के इरादे से ही संभव है। यह वैश्विक शांति के लिए एक मौलिक सिद्धांत है।
निष्कर्ष:
कुरआन की आयत 4:35 पारिवारिक शांति और स्थिरता के लिए एक दिव्य मार्गदर्शन है। यह अतीत में एक सामाजिक क्रांति लेकर आई, वर्तमान में तलाक की बढ़ती दरों के खिलाफ एक रक्षात्मक ढाल है और भविष्य के लिए एक शाश्वत संघर्ष समाधान तंत्र प्रस्तुत करती है। यह आयत इस्लाम की व्यावहारिकता, न्यायपूर्ण दृष्टिकोण और पारिवारिक मूल्यों के प्रति गहरी प्रतिबद्धता को दर्शाती है।