1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Text)
يَوْمَئِذٍ يَوَدُّ الَّذِينَ كَفَرُوا وَعَصَوُا الرَّسُولَ لَوْ تُسَوَّىٰ بِهِمُ الْأَرْضُ وَلَا يَكْتُمُونَ اللَّهَ حَدِيثًا
2. आयत का हिंदी अर्थ (Meaning in Hindi)
"उस दिन काफिर लोग और जिन्होंने रसूल की अवज्ञा की है, चाहेंगे कि काश धरती उन पर फाड़ दी जाती और वे उसमें समा जाते! और वे अल्लाह से कोई बात छिपा नहीं सकेंगे।"
3. आयत से मिलने वाला सबक (Lesson from the Verse)
- पछतावे की पराकाष्ठा: यह आयत कयामत के दिन इन्कार करने वालों की मानसिक दशा का वर्णन करती है। उनकी पीड़ा और पछतावा इतना भयानक होगा कि वे मृत्यु की कामना करेंगे, ताकि उस सजा और शर्मिंदगी से बच सकें। 
- अल्लाह के सामने पेशी की वास्तविकता: आयत जोर देकर कहती है कि उस दिन कोई भी अल्लाह से कोई बात छिपा नहीं पाएगा। हर छोटी-बड़ी बात, हर विचार और हर कर्म खुल जाएगा। यह पूर्ण पारदर्शिता और न्याय का दिन होगा। 
- दुनिया की फिक्रों की सच्चाई: यह आयत हमें दुनिया की चकाचौंध और उसकी क्षणभंगुरता का एहसास कराती है। जो लोग दुनिया को ही सब कुछ मानकर अल्लाह और उसके रसूल की अवज्ञा करते हैं, उनके लिए आखिरत का दिन बेहद दर्दनाक होगा। 
- चेतावनी और सावधानी: यह आयत एक स्पष्ट चेतावनी है कि इंसान को अपने कर्मों के परिणाम के बारे में सोचना चाहिए और ऐसे कामों से बचना चाहिए जो उसे उस दिन शर्मिंदगी और पछतावे में डाल दें। 
4. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevance: Past, Present & Future)
अतीत में प्रासंगिकता (Past Relevance):
- मक्का के काफिरों के लिए चेतावनी: जब यह आयत उतरी, तो यह मक्का के उन लोगों के लिए एक सख्त चेतावनी थी जो पैगंबर मुहम्मद (स.अ.व.) के संदेश को झुठला रहे थे और उनका विरोध कर रहे थे। यह आयत उन्हें उनके कर्मों के भयानक परिणामों से आगाह कर रही थी। 
- मुसलमानों के लिए प्रेरणा: प्रारंभिक मुसलमानों के लिए, जो कठिनाइयों और यातनाओं का सामना कर रहे थे, यह आयत एक प्रेरणा थी। यह उन्हें दिखाती थी कि अंत में सत्य की ही जीत होगी और अत्याचारियों को उनके कर्मों का फल मिलेगा। 
वर्तमान में प्रासंगिकता (Present Relevance):
- नैतिक जिम्मेदारी का एहसास: आज के दौर में, जहाँ लोग अक्सर भौतिकवाद में डूबे हुए हैं और धर्म व आखिरत को भूल चुके हैं, यह आयत उन्हें उनकी नैतिक जिम्मेदारी का एहसास कराती है। यह हमें याद दिलाती है कि हमें अपने हर कर्म के लिए जवाबदेह ठहराया जाएगा। 
- आंतरिक जागरूकता: यह आयत हमें आंतरिक रूप से जागरूक बनाती है। जब हमें यह एहसास होता है कि कोई भी बात अल्लाह से छिपी नहीं है, तो हम गलत काम करने से डरते हैं और अच्छे कर्मों की ओर प्रेरित होते हैं। 
- पश्चाताप और सुधार का मौका: यह आयत हमें पछतावे के उस दिन से पहले ही सचेत करती है, ताकि हम अभी से अपने कर्मों को सुधार सकें और अल्लाह की माफी प्राप्त कर सकें। 
- सच्चाई और ईमानदारी की प्रेरणा: यह आयत हमें सच्चाई और ईमानदारी से जीने की प्रेरणा देती है, क्योंकि हम जानते हैं कि एक दिन सब कुछ खुल जाएगा। 
भविष्य में प्रासंगिकता (Future Relevance):
- शाश्वत चेतावनी: जब तक मनुष्य का अस्तित्व रहेगा, पाप और पुण्य, ईमान और कुफ्र का संघर्ष बना रहेगा। यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी के लिए एक शाश्वत चेतावनी का काम करेगी। 
- न्याय की अंतिम गारंटी: भविष्य का समाज चाहे कितना भी भ्रष्ट और अन्यायपूर्ण क्यों न हो जाए, यह आयत हर इंसान को यह विश्वास दिलाती रहेगी कि अंत में न्याय अवश्य होगा और हर अत्याचारी को उसके कर्म का फल मिलेगा। 
- आशा और डर का संतुलन: यह आयत भविष्य के मनुष्य के लिए आशा (अल्लाह की दया) और डर (अल्लाह की सजा) का संतुलन बनाए रखेगी, जो एक स्वस्थ आध्यात्मिक जीवन के लिए आवश्यक है। 
निष्कर्ष:
कुरआन की आयत 4:42 कयामत के दिन की भयावहता और पछतावे की चरम सीमा का वर्णन करती है। यह अतीत में एक कड़ी चेतावनी थी, वर्तमान में नैतिक जिम्मेदारी का एहसास कराने वाली आयत है और भविष्य के लिए एक शाश्वत सबक है। यह आयत हमें सिखाती है कि हमें हमेशा अल्लाह की निगाह में जीना चाहिए और ऐसे कामों से बचना चाहिए जो आखिरत में शर्मिंदगी और पछतावे का कारण बनें।