Read Quran translation in Hindi with verse-by-verse meaning and time-relevant explanations for deeper understanding.

कुरआन की आयत 4:43 की पूर्ण व्याख्या

 

1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Text)

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَقْرَبُوا الصَّلَاةَ وَأَنْتُمْ سُكَارَىٰ حَتَّىٰ تَعْلَمُوا مَا تَقُولُونَ وَلَا جُنُبًا إِلَّا عَابِرِي سَبِيلٍ حَتَّىٰ تَغْتَسِلُوا ۚ وَإِنْ كُنْتُمْ مَرْضَىٰ أَوْ عَلَىٰ سَفَرٍ أَوْ جَاءَ أَحَدٌ مِنْكُمْ مِنَ الْغَائِطِ أَوْ لَامَسْتُمُ النِّسَاءَ فَلَمْ تَجِدُوا مَاءً فَتَيَمَّمُوا صَعِيدًا طَيِّبًا فَامْسَحُوا بِوُجُوهِكُمْ وَأَيْدِيكُمْ ۗ إِنَّ اللَّهَ كَانَ عَفُوًّا غَفُورًا


2. आयत का हिंदी अर्थ (Meaning in Hindi)

"ऐ ईमान वालो! नमाज़ के पास न जाओ, जबकि तुम नशे में हो यहाँ तक कि जान लो कि क्या कह रहे हो, और न ही जुनुबी (अशुद्ध) हो, सिवाय मुसाफिर होने के (तो रास्ते भर निकल सकते हो), यहाँ तक कि नहा लो। और अगर तुम बीमार हो या सफर में हो या तुम में से कोई शौच (टॉयलेट) से आया हो या तुमने स्त्रियों से संसर्ग किया हो और पानी न पाओ, तो पाक मिट्टी से तयम्मुम कर लो - अपने चेहरे और हाथों पर मसह कर लो। निश्चित ही अल्लाह क्षमा करने वाला, माफ़ करने वाला है।"


3. आयत से मिलने वाला सबक (Lesson from the Verse)

  1. नमाज़ की गरिमा और एकाग्रता: नमाज़ अल्लाह से बातचीत का एक पवित्र क्षण है। इस आयत में नशे की हालत में नमाज़ से मनाही इस बात पर जोर देती है कि नमाज़ पूरी consciousness और एकाग्रता (concentration) के साथ पढ़नी चाहिए, ताकि इंसान जाने कि वह अल्लाह से क्या कह रहा है।

  2. शुद्धता का महत्व: इस्लाम में शारीरिक और आध्यात्मिक पवित्रता (Taharat) पर बहुत जोर दिया गया है। जुनुब (स्नान की अवस्था) की हालत में नमाज़ पढ़ने से मनाही इसी पवित्रता को बनाए रखने के लिए है।

  3. सुविधा और सहजता: इस्लाम एक व्यावहारिक धर्म है। अगर पानी उपलब्ध न हो (बीमारी, सफर आदि में), तो अल्लाह ने तयम्मुम (पवित्र मिट्टी से मसह) का विकल्प देकर अपने बंदों पर दया दिखाई है। यह दर्शाता है कि इस्लाम में कठोरता नहीं, बल्कि सहजता है।

  4. अल्लाह की क्षमा: आयत का अंत इस बात पर जोर देकर होता है कि अल्लाह क्षमाशील और माफ करने वाला है। यह संकेत है कि अगर कोई अनजाने में कोई गलती कर बैठे, तो अल्लाह उसे माफ कर सकता है।


4. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevance: Past, Present & Future)

अतीत में प्रासंगिकता (Past Relevance):

  • शराब पर प्रतिबंध की पहली सीढ़ी: इस्लाम में शराब पर प्रतिबंध एक क्रमिक प्रक्रिया थी। यह आयत उसकी पहली सीढ़ी थी, जिसमें नशे की हालत में नमाज़ पढ़ने से मना किया गया। इसने लोगों को नशे के नुकसान के प्रति संवेदनशील बनाया।

  • स्वच्छता के मानकों की स्थापना: उस समय में, इस आयत ने व्यक्तिगत स्वच्छता और पवित्रता के उच्च मानक स्थापित किए, जो उस समय के समाज में एक नई बात थी।

वर्तमान में प्रासंगिकता (Present Relevance):

  • नशीले पदार्थों के खिलाफ चेतावनी: आज के युग में, जहाँ नशीले पदार्थों और शराब का चलन बढ़ रहा है, यह आयत एक स्पष्ट चेतावनी है कि नशा इंसान को उसके सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्य (नमाज़) से दूर कर देता है। यह नशामुक्ति के लिए एक धार्मिक प्रेरणा है।

  • मानसिक उपस्थिति का महत्व: आज की तेज रफ्तार जिंदगी में, नमाज़ हमें एक पल के लिए रुककर अल्लाह से जुड़ने का मौका देती है। यह आयत हमें याद दिलाती है कि नमाज़ सिर्फ शारीरिक हरकतें नहीं, बल्कि दिल और दिमाग से अल्लाह के सामने झुकना है।

  • व्यक्तिगत स्वच्छता की याद: यह आयत आधुनिक स्वच्छता जागरूकता (Hygiene Awareness) का धार्मिक आधार है। यह हमें नियमित स्नान और शुद्धता के महत्व की याद दिलाती है।

  • कठिनाइयों में राहत का संदेश: तयम्मुम का प्रावधान आज भी उन मुसलमानों के लिए एक राहत है जो बीमार हैं, यात्रा में हैं, या पानी की कमी वाले इलाकों में रहते हैं। यह दर्शाता है कि इस्लाम में धार्मिक कर्तव्यों को मुश्किल नहीं बनाया गया है।

भविष्य में प्रासंगिकता (Future Relevance):

  • शाश्वत मार्गदर्शन: चाहे समाज कितना भी बदल जाए, नमाज़ की गरिमा, एकाग्रता और पवित्रता के ये सिद्धांत सदैव प्रासंगिक बने रहेंगे।

  • मानसिक स्वास्थ्य और ध्यान (Mindfulness): भविष्य के और अधिक तनावपूर्ण समाज में, नमाज़ का सचेतन और एकाग्रतापूर्वक पढ़ना एक प्रकार की ध्यान (Meditation) और मानसिक विश्राम की प्रक्रिया होगी, जिसकी ओर यह आयत इशारा करती है।

  • संसाधनों की कमी और विकल्प: भविष्य में पानी की कमी एक बड़ी वैश्विक समस्या बन सकती है। तयम्मुम का प्रावधान इस्लाम को एक स्थायी और पर्यावरण-अनुकूल धार्मिक प्रथा के रूप में प्रस्तुत करता है।

निष्कर्ष:
कुरआन की आयत 4:43 नमाज़ की गरिमा, शुद्धता के महत्व और इस्लाम की व्यावहारिकता को दर्शाती है। यह अतीत में एक सामाजिक सुधार थी, वर्तमान में नशामुक्ति और mindfulness का मार्गदर्शक है और भविष्य के लिए एक शाश्वत और लचीला धार्मिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है। यह आयत इस्लाम के संतुलन को दर्शाती है - जहाँ एक ओर अनुशासन और पवित्रता है, वहीं दूसरी ओर सहजता और दया भी है।