1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Text)
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ آمِنُوا بِمَا نَزَّلْنَا مُصَدِّقًا لِّمَا مَعَكُم مِّن قَبْلِ أَن نَّطْمِسَ وُجُوهًا فَنَرُدَّهَا عَلَىٰ أَدْبَارِهَا أَوْ نَلْعَنَهُمْ كَمَا لَعَنَّا أَصْحَابَ السَّبْتِ ۚ وَكَانَ أَمْرُ اللَّهِ مَفْعُولًا
2. आयत का हिंदी अर्थ (Meaning in Hindi)
"ऐ किताब वालो! उस (किताब) पर ईमान लाओ जो हमने उतारी है, जो उस (किताब) की पुष्टि करने वाली है जो तुम्हारे पास पहले से है, इससे पहले कि हम कुछ चेहरे बिगाड़ दें और उन्हें पीठ की तरफ पलट दें या उन पर ऐसी ही लानत कर दें जैसे हमने सब्त (सैटरडे/शनिवार) वालों पर की थी। और अल्लाह का आदेश पूरा होकर रहता है।"
3. आयत से मिलने वाला सबक (Lesson from the Verse)
अहले-किताब के लिए अंतिम पुकार: यह आयत यहूदियों और ईसाइयों (अहले-किताब) के लिए एक अंतिम और स्पष्ट दावत है कि वे पैगंबर मुहम्मद (स.अ.व.) और कुरआन पर ईमान ले आएँ, क्योंकि कुरआन उनकी अपनी किताबों (तौरात और इंजील) में दिए गए भविष्यवक्ताओं की पुष्टि करता है।
चेतावनी का गंभीर स्वर: आयत में एक बहुत ही गंभीर चेतावनी दी गई है। जो लोग इस दावत को ठुकराएँगे, उनके साथ दो में से एक सजा होगी:
शारीरिक विकृति: "चेहरे बिगाड़ देना और उन्हें पीठ की तरफ पलट देना" - यह एक प्रतीकात्मक चेतावनी है जो दर्शाती है कि उनकी पहचान और इज्ज़त मिटा दी जाएगी और वे मार्गदर्शन से वंचित हो जाएँगे।
दैवीय लानत: जैसे सब्त (सनिवार) के दिन मछली पकड़ने के प्रतिबंध को तोड़ने वाले यहूदियों पर अल्लाह की लानत हुई थी, वैसे ही इन पर भी लानत होगी।
अल्लाह के आदेश की अटलता: आयत का अंत इस सच्चाई के साथ होता है कि अल्लाह का आदेश (चाहे वह मार्गदर्शन का हो या दंड का) अवश्य पूरा होता है। कोई उसे टाल नहीं सकता।
4. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevance: Past, Present & Future)
अतीत में प्रासंगिकता (Past Relevance):
मदीना के यहूदियों के लिए अंतिम चेतावनी: यह आयत मदीना के उन यहूदी विद्वानों के लिए एक स्पष्ट चेतावनी थी जो तौरात में पैगंबर मुहम्मद (स.अ.व.) के आगमन की भविष्यवाणी को जानते हुए भी उन पर ईमान नहीं लाए और उनका विरोध किया।
ईसाइयों के लिए दावत: यह आयत ईसाइयों के लिए भी एक दावत थी कि वे पैगंबर ईसा (अ.स.) द्वारा भविष्यवाणी किए गए "पैराक्लेट" या "अहमद" को पहचानें।
वर्तमान में प्रासंगिकता (Present Relevance):
अंतर्धार्मिक संवाद का आधार: आज के युग में, यह आयत अहले-किताब (यहूदी और ईसाई) के साथ अंतर्धार्मिक संवाद (Interfaith Dialogue) का एक आधार बन सकती है। यह उन्हें कुरआन के संदेश को समझने और उसकी पुष्टि करने वाली अपनी किताबों की भविष्यवाणियों को तलाशने के लिए आमंत्रित करती है।
इतिहास से सबक: "सब्त वालों" (यहूदियों) का उदाहरण हमें इतिहास से सबक लेने की शिक्षा देता है। जो समुदाय अल्लाह के आदेशों को तोड़ते हैं और उसके रसूलों को झुठलाते हैं, उनका अंत बुरा होता है। यह एक सार्वभौमिक सिद्धांत है।
आध्यात्मिक अंधत्व की चेतावनी: "चेहरे बिगाड़ देना" को आध्यात्मिक अंधत्व और पहचान के संकट के रूप में देखा जा सकता है। आज दुनिया भौतिकवाद में इतनी डूबी हुई है कि उसे अल्लाह और आखिरत की पहचान ही नहीं रही। यह आयत इसी आध्यात्मिक संकट की ओर इशारा करती है।
मुसलमानों के लिए चेतावनी: यह आयत मुसलमानों के लिए भी एक चेतावनी है कि अगर वे कुरआन के आदेशों को छिपाएँगे, उनकी गलत व्याख्या करेंगे, या उन पर अमल नहीं करेंगे, तो उनके साथ भी ऐसा ही कुछ हो सकता है।
भविष्य में प्रासंगिकता (Future Relevance):
शाश्वत दावत: जब तक दुनिया में यहूदी और ईसाई मौजूद रहेंगे, कुरआन की यह दावत उनके सामने रहेंगी कि वे इस्लाम को अपनाएँ। यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी के लिए एक शाश्वत दावत है।
न्याय का वादा: यह आयत भविष्य की पीढ़ियों को यह याद दिलाती रहेगी कि अल्लाह का न्याय अटल है। जो सत्य को जानकर भी उससे मुँह मोड़ेगा, उसे उसके कर्म का फल अवश्य मिलेगा।
एकता का संदेश: भविष्य के वैश्विक समाज में, यह आयत सभी अहले-किताब को एक ही ईश्वर और एक ही मूल संदेश (तौहीद) के तले एकत्र होने का आह्वान करती है।
निष्कर्ष:
कुरआन की आयत 4:47 अहले-किताब के लिए एक अंतिम दावत और गंभीर चेतावनी है। यह अतीत में एक ऐतिहासिक चेतावनी थी, वर्तमान में अंतर्धार्मिक संवाद और आत्म-मूल्यांकन का आधार है और भविष्य के लिए एक शाश्वत मार्गदर्शक सिद्धांत है। यह आयत सिखाती है कि सत्य को पहचानने और स्वीकार करने में देरी करना घातक हो सकता है, क्योंकि अल्लाह का आदेश अटल है।