Read Quran translation in Hindi with verse-by-verse meaning and time-relevant explanations for deeper understanding.

कुरआन की आयत 4:48 की पूर्ण व्याख्या

 

1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Text)

إِنَّ اللَّهَ لَا يَغْفِرُ أَن يُشْرَكَ بِهِ وَيَغْفِرُ مَا دُونَ ذَٰلِكَ لِمَن يَشَاءُ ۚ وَمَن يُشْرِكْ بِاللَّهِ فَقَدِ افْتَرَىٰ إِثْمًا عَظِيمًا


2. आयत का हिंदी अर्थ (Meaning in Hindi)

"निश्चित रूप से अल्लाह यह (पाप) कभी माफ़ नहीं करेगा कि उसके साथ शिर्क (साझीदार ठहराया) जाए, और इसके अलावा (दूसरे पाप) जिसके लिए चाहेगा, माफ़ कर देगा। और जो कोई अल्लाह के साथ शिर्क करे, तो उसने बहुत बड़ा पाप गढ़ लिया।"


3. आयत से मिलने वाला सबक (Lesson from the Verse)

  1. शिर्क की गंभीरता: यह आयत इस्लाम के सबसे मौलिक सिद्धांत - तौहीद (एकेश्वरवाद) - पर जोर देती है। शिर्क (अल्लाह के साथ किसी को साझीदार ठहराना) एक ऐसा पाप है जिसे अल्लाह कभी माफ नहीं करेगा, बशर्ते कि व्यक्ति उसी हालत में मर जाए और तौबा न करे।

  2. अल्लाह की दया का विस्तार: शिर्क के अलावा अन्य सभी पापों को अल्लाह अपनी इच्छा से माफ कर सकता है। यह अल्लाह की असीम दया और क्षमा का प्रमाण है। कोई भी व्यक्ति, चाहे उसने कितने भी बड़े पाप क्यों न किए हों, अगर वह सच्चे दिल से तौबा करे, तो अल्लाह उसे माफ कर सकता है।

  3. शिर्क एक भयानक झूठ है: आयत में शिर्क को "बहुत बड़ा पाप गढ़ना" कहा गया है। यह दर्शाता है कि शिर्क सिर्फ एक पाप ही नहीं, बल्कि अल्लाह पर लगाया गया एक भयानक झूठ और बदनामी है। यह उसकी पूर्ण प्रभुसत्ता और एकता के खिलाफ एक अपराध है।


4. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevance: Past, Present & Future)

अतीत में प्रासंगिकता (Past Relevance):

  • मक्का के मुशरिकों के लिए चेतावनी: जब यह आयत उतरी, तो यह मक्का के मूर्तिपूजकों के लिए एक स्पष्ट चेतावनी थी जो अल्लाह के साथ मूर्तियों को साझीदार ठहराते थे। यह आयत उन्हें बता रही थी कि उनकी सबसे बड़ी गलती शिर्क है।

  • तौहीद की स्पष्टता: इस आयत ने प्रारंभिक मुसलमानों के लिए तौहीद के महत्व को और स्पष्ट किया और उन्हें शिर्क की गंभीरता से अवगत कराया।

वर्तमान में प्रासंगिकता (Present Relevance):

  • आधुनिक शिर्क के रूप: आज के युग में शिर्क सिर्फ मूर्तिपूजन तक सीमित नहीं है। पैसा, शोहरत, शक्ति, या किसी व्यक्ति की बंदगी करना - ये सभी आधुनिक शिर्क के रूप हैं। यह आयत हमें इन सभी प्रकार के शिर्क से सावधान करती है।

  • आशा और संतुलन का संदेश: एक ओर यह आयत शिर्क के खिलाफ कड़ी चेतावनी देती है, तो दूसरी ओर यह आशा का संदेश भी देती है कि अल्लाह अन्य सभी पापों को माफ कर सकता है। यह संतुलन एक मुसलमान को निराशा में डूबने से बचाता है।

  • धार्मिक एकता का आधार: यह आयत इस्लामी धर्मशास्त्र (Aqeedah) की नींव है। यह स्पष्ट करती है कि इस्लाम में सबसे महत्वपूर्ण चीज़ तौहीद है और सबसे बड़ा पाप शिर्क है।

  • तौबा के लिए प्रेरणा: यह आयत उन लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है जिन्होंने गलतियाँ की हैं। यह बताती है कि चाहे पाप कितना भी बड़ा क्यों न हो, अगर वह शिर्क नहीं है, तो अल्लाह से माफी माँगने का दरवाजा हमेशा खुला है।

भविष्य में प्रासंगिकता (Future Relevance):

  • शाश्वत सिद्धांत: चाहे समाज कितना भी बदल जाए, तौहीद और शिर्क का सिद्धांत सदैव प्रासंगिक बना रहेगा। यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी को यही मौलिक सबक सिखाती रहेगी।

  • आध्यात्मिकता बनाम भौतिकवाद: भविष्य का समाज जितना भौतिकवादी होगा, शिर्क के नए-नए रूप उतने ही अधिक सामने आएँगे। यह आयत लोगों को याद दिलाती रहेगी कि उनका अंतिम लक्ष्य केवल अल्लाह की प्रसन्नता होनी चाहिए, न कि भौतिक वस्तुओं की प्राप्ति।

  • वैश्विक नैतिकता का आधार: तौहीद का सिद्धांत एक ऐसी वैश्विक नैतिकता की ओर इशारा करता है जहाँ सर्वोच्च नैतिक मानक एक ईश्वर के प्रति समर्पण है। यह आयत इसी की नींव रखती है।

निष्कर्ष:
कुरआन की आयत 4:48 इस्लामी आस्था का एक मूलभूत स्तंभ है। यह अतीत में एक स्पष्ट चेतावनी थी, वर्तमान में आशा और सावधानी का संतुलन है और भविष्य के लिए एक शाश्वत मार्गदर्शक सिद्धांत है। यह आयत हर मनुष्य को यह चुनाव करने की स्वतंत्रता देती है कि वह अल्लाह की असीम क्षमा का पात्र बने या उस एक पाप में फंस जाए जिसे कभी माफ नहीं किया जाएगा।