1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Text)
أُولَٰئِكَ الَّذِينَ لَعَنَهُمُ اللَّهُ ۖ وَمَن يَلْعَنِ اللَّهُ فَلَن تَجِدَ لَهُ نَصِيرًا
2. आयत का हिंदी अर्थ (Meaning in Hindi)
"ये वे लोग हैं जिन पर अल्लाह ने लानत (अपनी रहमत से दूरी) की है, और जिस पर अल्लाह लानत कर दे, तो तुम उसका कोई सहायक न पाओगे।"
3. आयत से मिलने वाला सबक (Lesson from the Verse)
दैवीय नाराजगी की पराकाष्ठा: यह आयत बताती है कि जो लोग सच्चाई को जानते-बूझते झुठलाते हैं और दूसरों को गुमराह करते हैं, उन पर अल्लाह की "लानत" होती है। लानत का मतलब है अल्लाह की दया और रहमत से पूरी तरह दूर हो जाना।
सहायता का अभाव: आयत स्पष्ट करती है कि जिस पर अल्लाह लानत कर दे, उसकी मदद करने वाला कोई नहीं होता। न कोई दोस्त, न कोई रिश्तेदार, न कोई शक्ति उसे अल्लाह की पकड़ से बचा सकती है।
पिछली आयतों का निष्कर्ष: यह आयत पिछली कुछ आयतों (4:51 आदि) में वर्णित उन लोगों के लिए अंतिम निर्णय है जो जिब्त और तागूत में विश्वास रखते थे और काफिरों को मुसलमानों से बेहतर बताते थे।
4. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevance: Past, Present & Future)
अतीत में प्रासंगिकता (Past Relevance):
मदीना के यहूदियों के लिए अंतिम चेतावनी: यह आयत मदीना के उन यहूदी विद्वानों के लिए एक अंतिम चेतावनी थी जो पैगंबर मुहम्मद (स.अ.व.) के सच्चे संदेश को ठुकरा रहे थे और लोगों को गुमराह कर रहे थे। यह उनके भविष्य के बारे में एक स्पष्ट संकेत था।
मुनाफिकों के लिए चेतावनी: मदीना के मुनाफिक (पाखंडी) भी इस चेतावनी के दायरे में आते थे, क्योंकि वे भी ईमान के दिखावे के पीछे कुफ्र को छिपाए हुए थे।
वर्तमान में प्रासंगिकता (Present Relevance):
गुमराह करने वालों के लिए चेतावनी: आज के युग में, यह आयत उन सभी लोगों के लिए एक सख्त चेतावनी है जो जानबूझकर इस्लाम के नाम पर गलतफहमियाँ फैलाते हैं, लोगों को गुमराह करते हैं, या धर्म का गलत इस्तेमाल करते हैं। ऐसे लोग अल्लाह की लानत के पात्र हैं।
आत्म-मूल्यांकन का आह्वान: यह आयत हर मुसलमान से आत्म-मूल्यांकन करने को कहती है: क्या हमारे कर्म और विश्वास ऐसे हैं जो अल्लाह की रहमत के पात्र बनाएँ या फिर लानत के?
अल्लाह की माफी की ओर बढ़ना: इस आयत की चेतावनी हमें अल्लाह की माफी और रहमत की ओर तेजी से बढ़ने के लिए प्रेरित करती है। हमें अपने जीवन को इस तरह जीना चाहिए कि हम अल्लाह की लानत से बच सकें।
सही और गलत की पहचान: यह आयत हमें सिखाती है कि सही और गलत के बीच का फर्क बहुत स्पष्ट है। जो लोग गलत रास्ता अपनाते हैं और दूसरों को भी उसी रास्ते पर डालते हैं, उनका अंत बहुत बुरा होता है।
भविष्य में प्रासंगिकता (Future Relevance):
शाश्वत चेतावनी: जब तक दुनिया में कुफ्र और गुमराही रहेगी, यह आयत एक शाश्वत चेतावनी बनी रहेगी कि अल्लाह की लानत से कोई नहीं बच सकता।
न्याय का वादा: यह आयत भविष्य की पीढ़ियों को यह याद दिलाती रहेगी कि अल्लाह का न्याय पूर्ण है। कोई भी उसकी पकड़ से बच नहीं सकता।
आशा और डर का संतुलन: यह आयत भविष्य के मुसलमानों के लिए आशा (अल्लाह की रहमत) और डर (अल्लाह की लानत) का संतुलन बनाए रखेगी, जो एक स्वस्थ आध्यात्मिक जीवन के लिए जरूरी है।
निष्कर्ष:
कुरआन की आयत 4:52 अल्लाह की लानत और उसके गंभीर परिणामों के बारे में एक स्पष्ट और संक्षिप्त चेतावनी है। यह अतीत में एक ऐतिहासिक चेतावनी थी, वर्तमान में गुमराह करने वालों के खिलाफ एक चेतावनी और आत्म-सुधार का आह्वान है, और भविष्य के लिए एक शाश्वत न्याय का वादा है। यह आयत हमें सिखाती है कि हमें हमेशा अल्लाह की रहमत के रास्ते पर चलना चाहिए और उसकी लानत से बचना चाहिए।