Read Quran translation in Hindi with verse-by-verse meaning and time-relevant explanations for deeper understanding.

कुरआन की आयत 4:53 की पूर्ण व्याख्या

 

1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Text)

أَمْ لَهُمْ نَصِيبٌ مِّنَ الْمُلْكِ فَإِذًا لَّا يُؤْتُونَ النَّاسَ نَقِيرًا


2. आयत का हिंदी अर्थ (Meaning in Hindi)

"क्या उनके पास बादशाहत (हुकूमत) में कोई हिस्सा है? फिर तो वे लोगों को कुछ भी नहीं देते, (यहाँ तक कि) खजूर की गुठली की ओर भी नहीं।"


3. आयत से मिलने वाला सबक (Lesson from the Verse)

  1. स्वार्थी मानसिकता का पर्दाफाश: यह आयत उन लोगों की स्वार्थी और कंजूस प्रकृति को उजागर करती है जो सत्ता और संपत्ति के लालची होते हैं। आयत बताती है कि अगर ऐसे लोगों के पास सत्ता होती, तो वे दूसरों को बहुत थोड़ी सी चीज़ भी देने से इनकार कर देते।

  2. कंजूसी की चरम सीमा: "खजूर की गुठली की ओर भी नहीं" एक मुहावरा है जो कंजूसी की चरम सीमा को दर्शाता है। यह दिखाता है कि ऐसे लोग बेहद स्वार्थी होते हैं और दूसरों की मदद करने से कतराते हैं।

  3. सच्चे ईमान की कमी का संकेत: यह व्यवहार दर्शाता है कि उनमें सच्चा ईमान नहीं है, क्योंकि ईमान वाला व्यक्ति दूसरों के साथ दया और उदारता का व्यवहार करता है।


4. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevance: Past, Present & Future)

अतीत में प्रासंगिकता (Past Relevance):

  • यहूदी विद्वानों की स्वार्थी मानसिकता: यह आयत मदीना के उन यहूदी विद्वानों के बारे में उतरी थी जो धार्मिक ज्ञान होने के बावजूद बेहद स्वार्थी और कंजूस थे। वे चाहते थे कि सारी सत्ता और संपदा उन्हीं के पास रहे।

  • सामाजिक न्याय का संदेश: इस आयत ने समाज में उदारता और दानशीलता के महत्व को रेखांकित किया।

वर्तमान में प्रासंगिकता (Present Relevance):

  • आधुनिक सत्ता और भ्रष्टाचार: आज के युग में, यह आयत उन नेताओं और सत्ताधारियों पर लागू होती है जो सत्ता में आकर जनता के हितों की अनदेखी करते हैं और केवल अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं। यह भ्रष्टाचार और स्वार्थी राजनीति की ओर इशारा करती है।

  • सामाजिक जिम्मेदारी का संदेश: यह आयत हर उस व्यक्ति के लिए एक सबक है जिसके पास संसाधन या सत्ता है। यह हमें सिखाती है कि हमें दूसरों की मदद करनी चाहिए और उदार बनना चाहिए।

  • कंजूसी के खिलाफ चेतावनी: यह आयत कंजूसी और स्वार्थ के खिलाफ एक चेतावनी है। यह बताती है कि ऐसा व्यवहार अल्लाह को नापसंद है।

  • आत्म-मूल्यांकन: यह आयत हमें आत्म-मूल्यांकन करने के लिए प्रेरित करती है: क्या हम उदार हैं या कंजूस? क्या हम दूसरों की मदद करते हैं या सिर्फ अपने बारे में सोचते हैं?

भविष्य में प्रासंगिकता (Future Relevance):

  • शाश्वत नैतिक सिद्धांत: चाहे समाज कितना भी बदल जाए, उदारता और दूसरों की मदद का महत्व सदैव बना रहेगा। यह आयत भविष्य की पीढ़ियों को यही शाश्वत सबक सिखाती रहेगी।

  • संसाधनों का न्यायपूर्ण वितरण: भविष्य में जब संसाधनों की कमी और असमानता की चुनौतियाँ बढ़ सकती हैं, यह आयत संसाधनों के न्यायपूर्ण वितरण का मार्गदर्शन करेगी।

  • नेतृत्व के गुण: भविष्य के नेताओं के लिए यह आयत एक मार्गदर्शक होगी कि उन्हें उदार और दयालु होना चाहिए, न कि स्वार्थी और कंजूस।

निष्कर्ष:
कुरआन की आयत 4:53 स्वार्थ और कंजूसी की मानसिकता की पोल खोलती है। यह अतीत में एक विशिष्ट समूह के लिए चेतावनी थी, वर्तमान में भ्रष्टाचार और स्वार्थी राजनीति के खिलाफ एक दर्पण है और भविष्य के लिए उदारता और सामाजिक न्याय का एक शाश्वत मार्गदर्शक है। यह आयत हमें सिखाती है कि सच्चा ईमान उदारता और दूसरों की मदद में झलकता है।