1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Text)
أَمْ يَحْسُدُونَ النَّاسَ عَلَىٰ مَا آتَاهُمُ اللَّهُ مِن فَضْلِهِ ۖ فَقَدْ آتَيْنَا آلَ إِبْرَاهِيمَ الْكِتَابَ وَالْحِكْمَةَ وَآتَيْنَاهُم مُّلْكًا عَظِيمًا
2. आयत का हिंदी अर्थ (Meaning in Hindi)
"क्या ये लोग लोगों से उस चीज़ पर ईर्ष्या (जलन) करते हैं जो अल्लाह ने उन्हें अपने फज़ल (अनुग्रह) से दी है? तो (सुन लो) हमने तो इब्राहीम के परिवार को किताब और हिकमत (तत्वदर्शिता) दी और हमने उन्हें एक बड़ी बादशाहत (राज्य) प्रदान की।"
3. आयत से मिलने वाला सबक (Lesson from the Verse)
ईर्ष्या की निंदा: यह आयत ईर्ष्या (हसद) की नकारात्मक भावना की ओर इशारा करती है। यह उन लोगों की मानसिकता को दर्शाती है जो दूसरों को अल्लाह की देन देखकर जलते हैं।
अल्लाह का फैसला सर्वोच्च: आयत स्पष्ट करती है कि अल्लाह जिसे चाहता है, अपना अनुग्रह (फज़ल) प्रदान करता है। इस पर ईर्ष्या करना अल्लाह के फैसले पर सवाल उठाने के समान है।
इब्राहीम (अ.स.) के परिवार को विशेष दर्जा: आयत याद दिलाती है कि इब्राहीम (अ.स.) के परिवार (जिसमें यहूदी, ईसाई और अरब सभी शामिल हैं) को अल्लाह ने किताब (दिव्य ग्रंथ), हिकमत (गहरी समझ) और एक बड़ा राज्य दिया था। यह दर्शाता है कि अल्लाह का अनुग्रह नया नहीं है।
कृतघ्नता का पर्दाफाश: जो लोग ईर्ष्या करते हैं, वे इस बात को भूल जाते हैं कि उनके अपने पूर्वजों को भी अल्लाह ने बहुत कुछ दिया था। यह एक प्रकार की कृतघ्नता (नाशुक्री) है।
4. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevance: Past, Present & Future)
अतीत में प्रासंगिकता (Past Relevance):
यहूदियों की ईर्ष्या का जवाब: यह आयत मदीना के यहूदियों की उस ईर्ष्या का जवाब थी जो उन्हें मुसलमानों से थी। वे नहीं चाहते थे कि पैगंबरी का दर्जा और अल्लाह का अनुग्रह अरबों को मिले।
ऐतिहासिक संदर्भ: आयत यहूदियों को उनके अपने इतिहास की याद दिलाती है कि उनके पूर्वज इब्राहीम (अ.स.) को भी अल्लाह ने यही चीजें दी थीं।
वर्तमान में प्रासंगिकता (Present Relevance):
आधुनिक ईर्ष्या के रूप: आज के युग में, ईर्ष्या के कई रूप हैं - पड़ोसी की सफलता, रिश्तेदार की तरक्की, दूसरे की आर्थिक स्थिति, या किसी और के तौफीक (धार्मिक समझ) पर जलन। यह आयत हमें इन सभी प्रकार की ईर्ष्या से बचने की सीख देती है।
कृतज्ञता का महत्व: यह आयत हमें सिखाती है कि हमें दूसरों की किस्मत देखकर जलने के बजाय, अल्लाह के उस अनुग्रह के लिए शुक्र अदा करना चाहिए जो उसने हमें दिया है।
सामाजिक तनाव का कारण: ईर्ष्या समाज में तनाव, बैर और असंतोष पैदा करती है। यह आयत एक स्वस्थ सामाजिक मनोविज्ञान की ओर ले जाती है।
आत्म-सुधार: यह आयत हमें आत्म-मूल्यांकन करने के लिए प्रेरित करती है: क्या हमारे अंदर ईर्ष्या की भावना है? क्या हम दूसरों की खुशियों और सफलताओं में उनके साथ शामिल हो पाते हैं?
भविष्य में प्रासंगिकता (Future Relevance):
शाश्वत मानवीय स्वभाव: ईर्ष्या मानवीय स्वभाव का एक अंग है। यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी को इस नकारात्मक भावना से सावधान रहने का मार्गदर्शन देती रहेगी।
सोशल मीडिया और तुलना: भविष्य में, सोशल मीडिया और डिजिटल दुनिया में दूसरों की "सफल" जिंदगी देखकर ईर्ष्या की भावना और बढ़ सकती है। यह आयत लोगों को इस जाल में फंसने से बचाएगी।
सकारात्मक मानसिकता: यह आयत भविष्य के समाज में एक सकारात्मक और संतोषी मानसिकता के विकास में मदद करेगी।
निष्कर्ष:
कुरआन की आयत 4:54 ईर्ष्या जैसी नकारात्मक मानवीय भावना के खिलाफ एक स्पष्ट चेतावनी है। यह अतीत में एक विशिष्ट ऐतिहासिक घटना का जवाब थी, वर्तमान में हमारे व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन के लिए एक दर्पण है और भविष्य की मनोवैज्ञानिक चुनौतियों के लिए एक मार्गदर्शक है। यह आयत हमें सिखाती है कि अल्लाह का अनुग्रह हर किसी पर अलग-अलग तरीके से होता है और हमें दूसरों की किस्मत पर ईर्ष्या करने के बजाय अपनी नेमतों का शुक्र अदा करना चाहिए।