﴿أُوْلَـٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ يَعْلَمُ ٱللَّهُ مَا فِى قُلُوبِهِمْ فَأَعْرِضْ عَنْهُمْ وَعِظْهُمْ وَقُل لَّهُمْ فِىٓ أَنفُسِهِمْ قَوْلاً بَلِيغًا﴾
(अरबी आयत)
शब्दार्थ (Meaning of Words):
أُوْلَـٰٓئِكَ: ये वे लोग हैं
ٱلَّذِينَ: जिनके
يَعْلَمُ ٱللَّهُ: अल्लाह जानता है
مَا فِى قُلُوبِهِमْ: जो कुछ उनके दिलों में है
فَأَعْرِضْ عَنْهُمْ: तो आप उनसे ध्यान हटा दें (उनकी बातों पर गौर न करें)
وَعِظْهُمْ: और उन्हें समझाएँ
وَقُل لَّهُمْ: और उनसे कहें
فِىٓ أَنفُسِهِمْ: उनके (अपने) तत्वज्ञान से / उनकी अंतरात्मा को झकझोरने वाला
قَوْلاً بَلِيगًا: एक प्रभावशाली, मर्मस्पर्शी बात
सरल अर्थ (Simple Meaning):
"ये वे लोग हैं जिनके दिलों में जो कुछ (छल-कपट, पाखंड) है, अल्लाह उसे भली-भाँति जानता है। अतः (ऐसे नबी!) आप उनसे (नाराज़गी में) ध्यान हटा दें और उन्हें (अच्छी बात) समझाएँ, तथा उनके मर्म (दिल और दिमाग) को छू लेने वाली बात कहें।"
आयत का सन्देश और शिक्षा (Lesson from the Verse):
यह आयत पिछली आयतों में वर्णित पाखंडियों (मुनाफिकीन) के साथ अपनाने वाली रणनीति बताती है, जो बेहद संतुलित और हिकमत (ज्ञान) भरी है:
अल्लाह की जानकारी: सबसे पहले यह याद दिलाती है कि अल्लाह दिलों के भेद को जानने वाला है। हम दिखावे को देख सकते हैं, लेकिन वह हकीकत जानता है। इसलिए ऐसे लोगों से निपटते समय यह बात दिल में रखें।
भावनात्मक दूरी (ध्यान हटाना): इसका मतलब यह नहीं है कि उन्हें पूरी तरह छोड़ दें, बल्कि यह है कि उनकी चालबाजियों और झूठे दिखावे पर ध्यान न दें, न ही उनसे व्यक्तिगत रूप से इतना जुड़ें कि वे आपको भावनात्मक रूप से आहत कर सकें। यह एक तरह की मानसिक सुरक्षा है।
मार्गदर्शन जारी रखना (समझाना): उनसे नाराज़ होकर या उन्हें त्यागकर बैठना उचित नहीं। उन्हें समझाने, नसीहत देने और सही रास्ता दिखाने का काम जारी रखें। यह दावत (आमंत्रण) का काम बंद नहीं करना चाहिए।
प्रभावशाली संवाद (मर्मस्पर्शी बात): सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्हें समझाने का तरीका ऐसा हो जो उनके दिल और दिमाग को छू ले। सिर्फ डाँट-फटकार नहीं, बल्कि ऐसी बात कहें जो उनकी अंतरात्मा को जगाए, उनके तर्क का जवाब हो और उन्हें सोचने पर मजबूर कर दे।
मुख्य शिक्षा: इस आयत से हमें यह सीख मिलती है कि समाज में बुराई या पाखंड का सामना करते समय हमें बुद्धिमानी और संतुलन बनाए रखना चाहिए। न तो पूरी तरह उपेक्षा करें और न ही भावनात्मक रूप से उलझ जाएं, बल्कि प्रभावी ढंग से संवाद करते हुए मार्गदर्शन का कार्य जारी रखें।
अतीत, वर्तमान और भविष्य के सन्दर्भ में प्रासंगिकता (Relevance to Past, Present and Future)
1. अतीत में प्रासंगिकता (Past Context):
यह आयत पैगंबर मुहम्मद (स.अ.व.) को मदीना के उन मुनाफिकों (पाखंडियों) के साथ व्यवहार करने का तरीका बता रही थी, जो मुसलमान होने का दिखावा तो करते थे लेकिन उनके दिलों में कुफ्र (अविश्वास) और शक था। पैगंबर उनके व्यवहार से दुखी हो सकते थे, लेकिन अल्लाह ने उन्हें यह हिकमत (ज्ञान) भरा तरीका बताया।
2. वर्तमान में प्रासंगिकता :
आज के समय में यह आयत बेहद प्रासंगिक है, खासकर सोशल मीडिया और व्यक्तिगत जीवन में:
विषैले रिश्ते (Toxic Relationships): अगर कोई व्यक्ति या समूह आपके साथ दोहरा व्यवहार (दिखावे की दोस्ती, पीठ पीछे बुराई) कर रहा है, तो इस आयत का सबक है: उनसे भावनात्मक रूप से दूरी बनाएँ (ध्यान हटाएँ), लेकिन पूरी तरह तोड़ने के बजाय, एक बार उन्हें समझाने की कोशिश जरूर करें।
सोशल मीडिया ट्रोल्स: इंटरनेट पर नफरत फैलाने वाले और झूठ बोलने वाले लोगों के साथ व्यवहार का यह बेहतरीन तरीका है। उनके साथ बहस में पड़कर अपनी ऊर्जा बर्बाद न करें (उनसे ध्यान हटाएँ), लेकिन फिर भी सच्चाई को प्रभावशाली ढंग से (क्लिप, पोस्ट, आर्टिकल के माध्यम से) लोगों तक पहुँचाएँ।
पारिवारिक और सामाजिक मतभेद: परिवार या दफ्तर में अगर कोई व्यक्ति आपके खिलाफ षड्यंत्र रचता है, तो सीधे झगड़े में न पड़ें। थोड़ी दूरी बनाकर रखें, लेकिन जरूरी समय पर ऐसी बात कहें जो सीधे उनकी अंतरात्मा तक पहुँचे और उन्हें उनकी गलती का अहसास कराए।
3. भविष्य के लिए सन्देश (Message for the Future):
यह आयत भविष्य की सभी पीढ़ियों के लिए संवाद और सामाजिक सुधार की एक स्थायी रणनीति प्रदान करती है:
प्रभावी नेतृत्व: किसी भी नेता, शिक्षक या समाज सुधारक को यह सीखना चाहिए कि विरोधियों या पाखंडियों से कैसे निपटा जाए। गुस्से या प्रतिक्रिया में कुछ भी करने के बजाय, धैर्य और बुद्धिमानी से काम लें।
मनोविज्ञान का ज्ञान: यह आयत मनोविज्ञान का गहरा ज्ञान सिखाती है। लोगों को सुधारने के लिए उन पर चिल्लाना या उन्हें अपमानित करना काम नहीं आता, बल्कि उनके मन तक पहुँचने वाली बात ही उन्हें बदल सकती है।
आध्यात्मिक शांति: यह जानकर कि अल्लाह दिलों की बात जानता है, एक मोमिन को मन की शांति मिलती है। वह यह समझता है कि उसे सिर्फ अपना काम (समझाना) ईमानदारी से करना है, नतीजा अल्लाह पर छोड़ देना है।
निष्कर्ष (Conclusion):
कुरआन की यह आयत हमें जीवन के हर क्षेत्र में एक संतुलित, बुद्धिमान और प्रभावशाली रवैया सिखाती है। यह हमें सिखाती है कि बुराई का सामना करने का तरीका सिर्फ गुस्सा या कट्टरपन नहीं, बल्कि मन को छू लेने वाला संवाद और दूरदर्शिता भरा व्यवहार है। यही आज के और आने वाले कल के लिए इस आयत का सबसे बड़ा सन्देश है।