﴿فَكَيْفَ إِذَا أَصَابَتْهُم مُّصِيبَةٌ بِمَا قَدَّمَتْ أَيْدِيهِمْ ثُمَّ جَاؤُوكَ يَحْلِفُونَ بِاللَّهِ إِنْ أَرَدْنَا إِلَّا إِحْسَانًا وَتَوْفِيقًا﴾
(अरबी आयत)
शब्दार्थ (Meaning of Words):
فَكَيْفَ: तो (उनका) क्या हाल होगा?
إِذَا: जब
أَصَابَتْهُم: उन पर आ पड़े
مُّصِيبَةٌ: मुसीबत, विपत्ति
بِمَا: उसके कारण
قَدَّمَتْ أَيْدِيهِمْ: उनके हाथों ने आगे भेजा (यानी उन्होंने स्वयं किए हुए बुरे कर्म)
ثُمَّ: फिर
جَاؤُوكَ: वे तुम्हारे पास आए
يَحْلِفُونَ بِاللَّهِ: अल्लाह की कसम खाते हैं
إِنْ أَرَدْنَا إِلَّا: हमारा इरादा तो केवल...
إِحْسَانًا: भलाई करना
وَتَوْفِيقًا: और मेल-मिलाप कराना
सरल अर्थ (Simple Meaning):
"तो (उन मुनाफिकों/पाखंडियों का) क्या हाल होगा, जब उनके अपने ही कर्मों की वजह से कोई मुसीबत उन पर आ पड़ेगी, फिर वे तुम्हारे पास आकर अल्लाह की कसमें खाएंगे कि 'हमारा तो मकसद सिर्फ भलाई और सुलह (मेल-मिलाप) करना था।'"
आयत का सन्देश और शिक्षा (Lesson from the Verse):
यह आयत उन लोगों की मानसिकता और उनके झूठे बहानों को उजागर करती है जो:
पाखंड (ढोंग) करते हैं: दिखावे के लिए ईमानदार और अच्छे बनते हैं।
गलत फैसले करते हैं: जानबूझकर गलतियाँ करते हैं, पाप करते हैं, या अफवाह फैलाते हैं।
जिम्मेदारी से भागते हैं: जब उनके कर्मों का बुरा नतीजा सामने आता है, तो वे उसे स्वीकार नहीं करते।
झूठी कसमें खाते हैं: अपनी गलती छुपाने के लिए अल्लाह का नाम लेकर झूठी कसमें खाने लगते हैं और अपने इरादों को पवित्र साबित करने की कोशिश करते हैं।
मुख्य शिक्षा: अल्लाह के यहाँ इरादे (निय्यत) के साथ-साथ कर्म (अमल) भी महत्वपूर्ण हैं। सिर्फ अच्छे इरादे का बहाना बनाकर बुरे कर्मों से बचा नहीं जा सकता। अल्लाह न केवल हमारे कर्मों को देखता है बल्कि हमारे दिलों के इरादों को भी जानता है।
अतीत, वर्तमान और भविष्य के सन्दर्भ में प्रासंगिकता (Relevance to Past, Present and Future)
1. अतीत में प्रासंगिकता (Past Context):
यह आयत मदीना के उन मुनाफिकों (पाखंडियों) के बारे में उतरी थी जो रसूल (स.अ.व.) के सामने तो आस्था का दिखावा करते थे, लेकिन पीठ पीछे उनके फैसलों के खिलाफ बोलते और समाज में फसाद फैलाते थे। जब उनकी शैतानी हरकतों की वजह से कोई मुसीबत आती, तो वह बहानेबाजी करके अपने इरादों को साफ साफ बताने का ढोंग करते थे।
2. वर्तमान में प्रासंगिकता :
आज के दौर में यह आयत बेहद प्रासंगिक है:
सोशल मीडिया और अफवाहें: लोग बिना जाँच-पड़ताल किए अफवाहें फैलाते हैं, जिससे किसी की इज्जत या जिंदगी बर्बाद हो जाती है। जब पकड़े जाते हैं तो कहते हैं, "मेरा तो इरादा सिर्फ जानकारी देना था।" यह आयत ऐसे लोगों को चेतावनी है।
भ्रष्टाचार और बहाने: कोई अधिकारी भ्रष्टाचार करके पकड़ा जाता है तो कहता है, "मैं तो परिवार का पेट पाल रहा था" या "सिस्टम ऐसा है।" यहाँ 'इहसान' (भलाई) का झूठा बहाना है।
रिश्तों में धोखा: कोई व्यक्ति रिश्ते में धोखा देकर, जब सच सामने आता है तो तरह-तरह की कसमें खाने लगता है कि "मेरा इरादा तुम्हें दुख पहुँचाने का नहीं था।" यह आयत ऐसे दोमुंहे व्यवहार को बेनकाब करती है।
राजनीति में पाखंड: नेता जनता से वादे करके भूल जाते हैं और जब जनता सवाल करती है तो झूठे दावों और झूठी कसमों से काम चलाने की कोशिश करते हैं।
3. भविष्य के लिए सन्देश (Message for the Future):
यह आयत भविष्य की सभी पीढ़ियों के लिए एक स्थायी सबक है:
जिम्मेदारी का भाव: इंसान को हमेशा यह याद रखना चाहिए कि उसके हर कर्म का एक नतीजा है। उसे अपने हर फैसले की जिम्मेदारी लेनी सीखनी चाहिए।
ईमानदारी की कसौटी: इरादों की पवित्रता के साथ-साथ कर्मों की शुद्धता भी जरूरी है। अच्छे इरादे बुरे कर्मों के लिए 'छूट' नहीं हैं।
अल्लाह की जानकारी: इंसान दुनिया को झूठे बहानों से बेवकूफ बना सकता है, लेकिन अल्लाह तो दिलों के राज जानता है। उसके यहाँ कोई छुपाव या बहानेबाजी काम नहीं आएगी।
निष्कर्ष (Conclusion):
कुरआन की यह आयत हमें सिखाती है कि एक सच्चे मुसलमान की पहचान यह है कि वह न केवल अपने इरादों को साफ रखे बल्कि अपने कर्मों को भी पवित्र रखे। मुसीबत के समय झूठी कसमें खाने और जिम्मेदारी से भागने के बजाय, अल्लाह से तौबा (क्षमा याचना) करे और भविष्य में गलती न दोहराने का प्रण करे। यही आज के दौर में इस आयत से लेने योग्य सबसे बड़ी सीख है।