﴿وَإِذًا لَّآتَيْنَـٰهُم مِّن لَّدُنَّآ أَجْرًا عَظِيمًا﴾
(अरबी आयत)
शब्दार्थ (Meaning of Words):
وَإِذًا: और तब (उस स्थिति में)
لَّآتَيْنَـٰهُم: हम अवश्य देते उन्हें
مِّن لَّدُنَّآ: अपने पास से (सीधा, विशेष)
أَجْرًا: बदला, प्रतिफल
عَظِيمًا: अत्यंत बड़ा, महान
सरल अर्थ (Simple Meaning):
"और उस स्थिति में हम उन्हें अपने पास से एक अत्यंत बड़ा प्रतिफल (इनाम) अवश्य प्रदान करते।"
संदर्भ: यह आयत अकेले नहीं, बल्कि पिछली दो आयतों (65 और 66) का अंतिम और पूरा हिस्सा है। पूरा विचार इस प्रकार है:
(आयत 65) सच्चे मोमिन वे हैं जो विवादों में पैगंबर को निर्णायक मानें और दिल से उनके फैसले को स्वीकार करें।
(आयत 66) और (पाखंडियों के बारे में कहो) यदि हम उन पर कोई कठोर आदेश (जान कुर्बान करने जैसा) लागू करते, तो बहुत थोड़े लोग ही उसे मानते।
(आयत 67) और यदि वे (पाखंडी) वास्तव में ऐसा करते (यानी आज्ञा मानते), तो हम उन्हें अपने पास से बहुत बड़ा इनाम अवश्य देते।
आयत का सन्देश और शिक्षा (Lesson from the Verse):
यह आयत, जो एक "if-then" (यदि-तो) कथन का हिस्सा है, एक गहरा आध्यात्मिक सिद्धांत स्थापित करती है:
अनंत पुरस्कार का आश्वासन: अल्लाह की आज्ञाओं का पालन करने और उसकी राह में कुर्बानी देने का परिणाम कोई साधारण इनाम नहीं, बल्कि एक "अज़ीम अज्र" (महान पुरस्कार) है। यह पुरस्कार दुनिया की किसी भी चीज़ से बढ़कर है।
पुरस्कार का स्रोत: यह इनाम "लदुन्ना" (हमारे पास से) है। यह शब्द बहुत महत्वपूर्ण है। इसका मतलब है कि यह पुरस्कार सीधा अल्लाह की विशेष दया और खज़ाने से आता है, न कि दुनिया के किसी सीमित स्रोत से। यह अनंत और अतुलनीय है।
आज्ञापालन और पुरस्कार का सीधा संबंध: आयत स्पष्ट करती है कि अल्लाह का महान पुरस्कार पाने का रास्ता उसकी आज्ञा का पालन करने से होकर जाता है। यह एक सीधा और न्यायसंगत सौदा है: हम आज्ञा मानेंगे, अल्लाह बेहतरीन इनाम देगा।
छूटे हुए अवसर का अफसोस: चूंकि यह आयत एक काल्पनिक स्थिति ("यदि वे ऐसा करते") बता रही है, इसलिए यह पाखंडियों के लिए एक तरह का अफसोस और चेतावनी both है। यह दर्शाता है कि उन्होंने अपनी जिद और नाफरमानी से कितना बड़ा इनाम और आशीर्वाद अपने हाथों से गंवा दिया।
मुख्य शिक्षा: अल्लाह की राह में की गई थोड़ी सी भी कुर्बानी या आज्ञापालन कभी भी व्यर्थ नहीं जाता। अल्लाह अपने बन्दे के हर छोटे-बड़े अच्छे काम का इतना बड़ा बदला देने वाला है कि उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। इसलिए, एक मोमिन को हमेशा आज्ञापालन के लिए तत्पर रहना चाहिए।
अतीत, वर्तमान और भविष्य के सन्दर्भ में प्रासंगिकता (Relevance to Past, Present and Future)
1. अतीत में प्रासंगिकता (Past Context):
यह आयत उन मुनाफिकों (पाखंडियों) को दृष्टांत के माध्यम से समझा रही थी कि उनकी नाफरमानी और बहानेबाजी उन्हें किस बड़े पुरस्कार से वंचित कर रही है। यह उन सच्चे सहाबा (साथियों) के लिए एक सुखद खबर और प्रोत्साहन भी थी, जो हर हाल में पैगंबर (स.अ.व.) का साथ दे रहे थे और कुर्बानियाँ दे रहे थे। उन्हें यकीन दिलाया गया कि उनका इनाम अल्लाह के पास सुरक्षित है।
2. वर्तमान में प्रासंगिकता :
आज के समय में यह आयत हर मुसलमान के लिए एक शक्तिशाली प्रेरणा का स्रोत है:
धार्मिक कर्तव्यों में ढिलाई: जब नमाज़, रोज़ा, हलाल-हराम के मामलों में मन ढीला पड़े, तो यह आयत याद दिलाती है कि इन छोटे-छोटे आज्ञापालन का इनाम "अज्रुन अज़ीम" है, जो शायद जन्नत की शक्ल में हो।
कुर्बानी का महत्व: इस्लाम के लिए समय, पैसा, प्रतिष्ठा या समय की कुर्बानी देते वक्त यह आयत दिल को मजबूती देती है कि यह सब अल्लाह के पास जमा हो रहा है और उसका बदला दुनिया की किसी भी चीज़ से कहीं बेहतर होगा।
आशा और उत्साह: यह आयत निराशा को दूर भगाती है। यह बताती है कि दुनिया में चाहे हमारे अच्छे कामों की कदर न भी हो, लेकिन अल्लाह का खज़ाना तो भरा पड़ा है और वह देने वाला है।
3. भविष्य के लिए सन्देश (Message for the Future):
यह आयत कयामत तक आने वाली सभी पीढ़ियों के लिए एक स्थायी वादा है:
अच्छाई का चिरस्थायी मूल्य: यह आयत भविष्य के हर मुसलमान को यह विश्वास दिलाएगी कि अल्लाह के लिए किया गया कोई भी पुण्य कभी बर्बाद नहीं जाएगा। यह विश्वास ही इंसान को दुनिया की कठिनाइयों का सामना करने की ताकत देगा।
आत्मा का लक्ष्य: यह आयत याद दिलाती रहेगी कि इंसान का असली लक्ष्य दुनवी लाभ नहीं, बल्कि आखिरत में अल्लाह का यही "अज्रुन अज़ीम" हासिल करना है। यह जीवन के हर फैसले को प्रभावित करने वाला लक्ष्य है।
प्रेरणा का स्रोत: जब भी लोग धर्म के मार्ग में कठिनाइयाँ देखेंगे, यह आयत उन्हें यह सोचने पर मजबूर करेगी: "क्या मैं इस महान इनाम को, सिर्फ थोड़ी सी मेहनत और कुर्बानी के बदले में, अपने हाथ से जाने दूंगा?"
निष्कर्ष (Conclusion):
कुरआन की यह छोटी सी आयत एक विशाल आशा और प्रेरणा का सागर समेटे हुए है। यह हमें बताती है कि अल्लाह की बन्दगी और आज्ञापालन एक लाभदायक व्यापार है, जिसमें हमारी लागत बहुत कम और अल्लाह का दिया हुआ लाभ अत्यंत महान है। यही विश्वास एक मोमिन को दुनिया की हर परीक्षा में स्थिर और प्रसन्नचित्त रखता है।