Read Quran translation in Hindi with verse-by-verse meaning and time-relevant explanations for deeper understanding.

कुरआन की आयत 4:70 की पूरी व्याख्या

 

﴿ذَٰلِكَ ٱلْفَضْلُ مِنَ ٱللَّهِ ۚ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ عَلِيمًا﴾

(अरबी आयत)


शब्दार्थ (Meaning of Words):

  • ذَٰلِكَ: वह

  • ٱلْفَضْلُ: अनुग्रह, उपकार, दया

  • مِنَ ٱللَّهِ: अल्लाह की ओर से है

  • وَكَفَىٰ: और बस काफी है

  • بِٱللَّهِ: अल्लाह

  • عَلِيمًا: जानने वाला (होना)


सरल अर्थ (Simple Meaning):

"यह (सब कुछ) अल्लाह का अनुग्रह (विशेष उपकार) है, और अल्लाह (सब कुछ) जानने वाला है, और यही काफी है।"

संदर्भ: यह आयत पिछली आयतों (4:68-69) का तार्किक और शक्तिशाली समापन है। पूरा विचार इस प्रकार है:

  • (आयत 68) जो आज्ञा का पालन करते हैं, हम उन्हें सीधे मार्ग का मार्गदर्शन देते हैं।

  • (आयत 69) और वे नबियों, सिद्दीक़ों, शहीदों और सालेहीन की संगत में होंगे।

  • (आयत 70) यह सब कुछ अल्लाह का अनुग्रह है, और अल्लाह सब कुछ जानने वाला है (और यही काफी है)।


आयत का सन्देश और शिक्षा (Lesson from the Verse):

यह छोटी सी आयत दो गहरे और मौलिक सिद्धांत स्थापित करती है:

  1. हर भलाई अल्लाह का फज़ल (अनुग्रह) है: पिछली आयतों में वर्णित सभी पुरस्कार - सीधा मार्गदर्शन, नबियों की संगत, जन्नत - यह हमारी कमाई का नतीजा नहीं, बल्कि अल्लाह का "फज़ल" है। हमारा आज्ञापालन इतना महत्वपूर्ण नहीं है; असली बात है अल्लाह की अनंत दया जो हमारे थोड़े से अमल पर इतना बड़ा बदला देती है। यह इंसान में अहंकार (घमंड) पैदा होने से रोकती है।

  2. अल्लाह का ज्ञान ही पर्याप्त है: "और अल्लाह जानने वाला है, और यही काफी है।" इसका मतलब है:

    • अल्लाह ही उस अनुग्रह के हकदार कौन है, यह पूरी तरह जानता है। वह हर इंसान के इरादे, संघर्ष और ईमानदारी को जानता है।

    • हमें किसी और के ज्ञान या मान्यता की आवश्यकता नहीं है। अल्लाह का जानना ही हमारे लिए काफी है क्योंकि उसका फैसला ही अंतिम और न्यायसंगत है।

    • यह विश्वास इंसान को दुनिया की प्रशंसा या आलोचना से मुक्त कर देता है।

मुख्य शिक्षा: एक मोमिन को हमेशा यह समझना चाहिए कि उसकी कोई भी आध्यात्मिक उपलब्धि उसकी अपनी कमाई नहीं, बल्कि अल्लाह की दया का परिणाम है। और उसे इस बात पर पूरा भरोसा रखना चाहिए कि अल्लाह उसके हाल और इरादों को भलीभांति जानता है, और यही ज्ञान उसके लिए पर्याप्त है।


अतीत, वर्तमान और भविष्य के सन्दर्भ में प्रासंगिकता (Relevance to Past, Present and Future)

1. अतीत में प्रासंगिकता (Past Context):

यह आयत पैगंबर (स.अ.व.) के सहाबा के लिए एक संतुलन का सिद्धांत थी। उन्होंने अल्लाह की राह में अथाह कुर्बानियाँ दीं। ऐसे में यह आयत उन्हें याद दिलाती थी कि उनकी यह महान हैसियत और आखिरत में मिलने वाला इनाम उनकी अपनी कमाई नहीं, बल्कि अल्लाह का फज़ल है, ताकि उनमें किसी तरह का अहंकार पैदा न हो। साथ ही, यह उन लोगों के लिए एक चेतावनी थी जो दिखावे के लिए ईमान लाते थे कि अल्लाह तो उनके दिल का हाल जानता है।

2. वर्तमान में प्रासंगिकता (Contemporary Relevance):

आज के समय में यह आयत बेहद प्रासंगिक है:

  • धार्मिक अहंकार से बचाव: आज कुछ लोग अपनी दाढ़ी, हिजाब या धार्मिक ज्ञान पर घमंड करने लगते हैं। यह आयत याद दिलाती है कि यह सब अल्लाह की दया से संभव हुआ है, हमारी अपनी कोई विशेषता नहीं। यह घमंड को जड़ से खत्म कर देती है।

  • निराशा और हीनभावना से मुक्ति: दूसरी ओर, कुछ लोग अपने पापों या कमियों के कारण खुद को अल्लाह की रहमत से निराश समझते हैं। यह आयत कहती है कि अल्लाह का फज़ल (दया) ही मुख्य है। वह अपने फज़ल से किसी को भी महान बना सकता है। इसलिए निराश नहीं होना चाहिए।

  • लोक-दिखावे से मुक्ति: सोशल मीडिया का दौर है, जहाँ लोग दूसरों की तारीफ पाने के लिए अच्छे काम करते हैं। यह आयत सिखाती है कि अल्लाह का जानना ही काफी है। उसकी रजा के लिए काम करो, लोगों की प्रशंसा के लिए नहीं।

3. भविष्य के लिए सन्देश (Message for the Future):

यह आयत भविष्य की सभी पीढ़ियों के लिए एक स्थायी मार्गदर्शक सिद्धांत है:

  • विनम्रता का आधार: जब तक दुनिया रहेगी, इंसान के अंदर अहंकार का खतरा रहेगा। यह आयत हर युग के मुसलमान को विनम्र बनाए रखने का एक अचूक उपाय है।

  • अल्लाह पर भरोसे की नींव: भविष्य की अनिश्चितताओं और चुनौतियों में, यह आयत यह विश्वास दिलाएगी कि अल्लाह का ज्ञान और उसकी दया ही हमारे लिए पर्याप्त है। हमें किसी और के सामने अपने इमान की गवाही देने की जरूरत नहीं।

  • आशा का स्रोत: भविष्य में जब भी कोई मुसलमान अपने आप को पापी और हेय समझेगा, यह आयत उसे अल्लाह के "फज़ल" की ओर देखने को प्रेरित करेगी - न कि अपनी कमियों की ओर। यह विश्वास जगाएगी कि अल्लाह की दया सब कुछ बदल सकती है।

निष्कर्ष (Conclusion):
कुरआन की यह आयत एक छोटा सा सारांश है जो हर मोमिन के लिए जीवन का दर्शन सिखाती है। यह हमें विनम्र बनाती है (क्योंकि सब कुछ अल्लाह का फज़ल है), हमें आशावान बनाती है (क्योंकि अल्लाह का फज़ल विशाल है), और हमें निश्चिंत करती है (क्योंकि अल्लाह का ज्ञान हमारे लिए काफी है)। यही संतुलित जीवन की कुंजी है।