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कुरआन की आयत 4:71 की पूरी व्याख्या

 

﴿يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ خُذُوا۟ حِذْرَكُمْ فَٱنفِرُوا۟ ثُبَاتٍ أَوِ ٱنفِرُوا۟ جَمِيعًا﴾

(अरबी आयत)


शब्दार्थ (Meaning of Words):

  • يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟: हे ईमान वालो!

  • خُذُوا۟: जमा करो / अपनाओ

  • حِذْرَكُمْ: अपनी सावधानी

  • فَٱنفِرُوا۟: तो निकल पड़ो (अल्लाह की राह में)

  • ثُبَاتٍ: छोटे-छोटे दल बनाकर / एक के बाद एक

  • أَوِ: या

  • ٱنفِرُوا۟: निकल पड़ो

  • جَمِيعًا: सामूहिक रूप से


सरल अर्थ (Simple Meaning):

"हे ईमान वालो! अपनी सावधानी (सुरक्षा के उपाय) बरतो, फिर (अल्लाह की राह में) छोटे-छोटे दल बनाकर निकलो, या सामूहिक रूप से निकल पड़ो।"


आयत का सन्देश और शिक्षा (Lesson from the Verse):

यह आयत मोमिनीन को एक व्यावहारिक और रणनीतिक निर्देश देती है, जिसमें तीन महत्वपूर्ण सिद्धांत निहित हैं:

  1. सतर्कता और तैयारी (خُذُوا۟ حِذْرَكُمْ): यह सबसे पहला कदम है। किसी भी महत्वपूर्ण कार्य, खासकर संघर्ष या चुनौती के समय, पूरी सतर्कता और तैयारी के साथ आगे बढ़ना चाहिए। इसमें शारीरिक, मानसिक और सामरिक तैयारी सभी शामिल हैं। यह डरपोकी नहीं, बल्कि समझदारी है।

  2. लचीली रणनीति (فَٱنفِرُوا۟ ثُبَاتٍ): दूसरा विकल्प छोटे-छोटे दलों में कार्य करना है। यह रणनीति अधिक लचीली, गोपनीय और प्रबंधनीय होती है। यह दिखाता है कि इस्लाम संख्या बल से ज्यादा रणनीति और संगठन पर जोर देता है।

  3. एकता और सामूहिक शक्ति (أَوِ ٱنفِرُوا۟ جَمِيعًا): तीसरा विकल्प सामूहिक रूप से एकजुट होकर कार्य करना है। जब स्थिति की मांग हो तो पूरी ताकत एक साथ लगा देनी चाहिए। यह एकता और संगठन का प्रतीक है।

मुख्य शिक्षा: एक मोमिन का जीवन सतर्कता, योजना और संगठन का जीवन होना चाहिए। भावुकता या आवेग में काम लेने के बजाय, बुद्धिमानी और रणनीति के साथ आगे बढ़ना चाहिए। सफलता के लिए तैयारी और एकता, दोनों ही आवश्यक हैं।


अतीत, वर्तमान और भविष्य के सन्दर्भ में प्रासंगिकता (Relevance to Past, Present and Future)

1. अतीत में प्रासंगिकता (Past Context):

यह आयत मदीना के मुसलमानों के लिए एक सैन्य रणनीति के तौर पर उतरी थी। उस समय मुसलमान कम संख्या में थे और दुश्मनों से घिरे हुए थे। यह आयत उन्हें सिखा रही थी कि दुश्मन पर हमला करने या उससे बचाव करने के लिए हमेशा सतर्क रहो, हथियारबंद रहो, और फिर जरूरत के मुताबिक छोटे-छोटे गुरिल्ला दल बनाकर या पूरी सेना के साथ एकजुट होकर कार्यवाही करो।

2. वर्तमान में प्रासंगिकता (Contemporary Relevance):

आज के समय में इस आयत का दायरा केवल सैन्य कार्यवाही तक सीमित नहीं है। इसके व्यापक उपयोग हैं:

  • व्यक्तिगत जीवन में सतर्कता: आज का जीवन एक अलग तरह का 'जिहाद' है। ऑनलाइन धोखाधड़ी, अश्लील सामग्री, गलत संगत, और नैतिक खतरों से बचने के लिए "अपनी सावधानी बरतने" का मतलब है आध्यात्मिक और मानसिक सुरक्षा के उपाय करना।

  • समाज सुधार में रणनीति: अगर कोई समाज में बुराई के खिलाफ काम करना चाहता है, तो यह आयत रास्ता दिखाती है। पहले स्थिति को समझो (सावधानी), फिर छोटे-छोटे समूह बनाकर काम शुरू करो (जैसे एक मोहल्ला या विषय चुनकर), और जब जरूरत पड़े तो बड़े पैमाने पर एकजुट होकर आवाज उठाओ।

  • शिक्षा और करियर: किसी लक्ष्य को पाने के लिए पहले पूरी तैयारी करो (सावधानी), फिर छोटे-छोटे कदम उठाओ (थोड़ा-थोड़ा करके आगे बढ़ो), और जब अवसर मिले तो पूरी ताकत झोंक दो।

3. भविष्य के लिए सन्देश (Message for the Future):

यह आयत भविष्य की सभी पीढ़ियों के लिए एक स्थायी रणनीतिक मार्गदर्शन है:

  • संकट प्रबंधन: भविष्य में आने वाले किसी भी संकट (चाहे वह सामाजिक, आर्थिक या राजनीतिक हो) का सामना करने का तरीका यही होगा: सतर्क रहो, तैयारी करो, छोटे-छोटे समूहों में काम करो, और जरूरत पड़ने पर एकजुट हो जाओ।

  • प्रौद्योगिकी और नैतिकता: भविष्य की तकनीकी चुनौतियों (जैसे AI, सोशल मीडिया के खतरे) से निपटने के लिए भी यही सिद्धांत लागू होगा। डिजिटल साक्षरता बढ़ाकर 'सावधानी' बरतनी होगी, और फिर सामूहिक रूप से नैतिक मानकों की स्थापना के लिए काम करना होगा।

  • इस्लामिक कार्य का तरीका: दावत (धर्म प्रचार) और इस्लामी आंदोलन के लिए भी यह आयत एक मार्गदर्शक है। कार्यकर्ताओं को सतर्क रहते हुए, छोटे-छोटे समूहों में और कभी-कभी बड़े जमावड़े के रूप में काम करना चाहिए।

निष्कर्ष (Conclusion):
कुरआन की यह आयत हमें सिखाती है कि ईमानदार होना मतलब भोला-भाला होना नहीं है। एक मोमिन को सतर्क, सजग, योजनाबद्ध और संगठित होना चाहिए। यह आयत जीवन के हर संघर्ष और लक्ष्य में सफलता का एक व्यावहारिक फॉर्मूला प्रस्तुत करती है। यह सबक आज के समय में पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।