﴿ٱلْمُؤْمِنُونَ يُقَاتِلُونَ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ وَٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ يُقَاتِلُونَ فِي سَبِيلِ ٱلطَّـٰغُوتِ فَقَاتِلُوٓا۟ أَوْلِيَآءَ ٱلشَّيْطَـٰنِ ۖ إِنَّ كَيْدَ ٱلشَّيْطَـٰنِ كَانَ ضَعِيفًا﴾
(अरबी आयत)
शब्दार्थ (Meaning of Words):
ٱلْمُؤْمِنُونَ: ईमान वाले
يُقَاتِلُونَ: लड़ते हैं
فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ: अल्लाह की राह में
وَٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟: और जो लोग कुफ्र करते हैं
يُقَاتِلُونَ: लड़ते हैं
فِي سَبِيلِ ٱلطَّـٰغُوتِ: तागूत की राह में
فَقَاتِلُوٓا۟: तो लड़ो
أَوْلِيَآءَ ٱلشَّيْطَـٰنِ: शैतान के सहायकों से
إِنَّ كَيْدَ ٱلشَّيْطَـٰنِ: निश्चय ही शैतान की चाल
كَانَ ضَعِيفًا: बहुत कमजोर है
सरल अर्थ (Simple Meaning):
"ईमान वाले अल्लाह की राह में लड़ते हैं, और काफ़िर तागूत (शैतान और बुराई की शक्तियों) की राह में लड़ते हैं। तो (ऐ ईमान वालो!) शैतान के सहायकों से लड़ो। निश्चित रूप से शैतान की चाल बहुत कमजोर है।"
आयत का सन्देश और शिक्षा (Lesson from the Verse):
यह आयत दुनिया की लड़ाइयों को एक दार्शनिक और आध्यात्मिक संदर्भ देती है। यह स्पष्ट करती है कि हर संघर्ष असल में दो विचारधाराओं के बीच है:
दो विपरीत मोर्चे: दुनिया में हर लड़ाई सिर्फ दो समूहों के बीच नहीं है, बल्कि अल्लाह की राह और तागूत की राह के बीच है।
मोमिन का लक्ष्य: अल्लाह की रज़ा, न्याय की स्थापना, और कमजोरों की रक्षा।
काफिर का लक्ष्य: तागूत (हर वह शक्ति जो अल्लाह के विरुद्ध बढ़ावा दे - शैतान, अत्याचारी शासक, बुराई की प्रवृत्तियाँ) की सेवा।
स्पष्ट आदेश: "शैतान के सहायकों से लड़ो।" यह आदेश मोमिनों को उनके मकसद का एहसास दिलाता है। उनका मुकाबला सिर्फ इंसानों से नहीं, बल्कि उस बुराई की शक्ति से है जो उन इंसानों को नियंत्रित कर रही है।
आश्वासन: "शैतान की चाल बहुत कमजोर है।" यह मोमिनों के लिए एक शक्तिशाली आश्वासन है। भले ही बुराई की ताकतें कितनी भी मजबूत क्यों न दिखें, उनकी नींव कमजोर है क्योंकि वे झूठ और पाप पर टिकी हैं। सच्चाई और नेकी की ताकत के आगे उनकी कोई चाल कामयाब नहीं हो सकती।
मुख्य शिक्षा: एक मोमिन हमेशा यह जानकर लड़ता है कि वह सच्चाई की तरफ से लड़ रहा है, जबकि उसका विरोधी बुराई और अत्याचार की शक्तियों का प्रतिनिधित्व कर रहा है। इसलिए, उसे कभी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए, क्योंकि आखिरकार जीत हमेशा अल्लाह के पक्ष की होती है।
अतीत, वर्तमान और भविष्य के सन्दर्भ में प्रासंगिकता (Relevance to Past, Present and Future)
1. अतीत में प्रासंगिकता (Past Context):
यह आयत पैगंबर (स.अ.व.) के समय में मक्का के काफिरों और मदीना के मुसलमानों के बीच चल रहे संघर्ष को परिभाषित कर रही थी। यह स्पष्ट करती थी कि यह लड़ाई सिर्फ कबीलों का झगड़ा नहीं थी, बल्कि अल्लाह के दीन को मानने वालों और शैतान के पैरोकारों (जो मूर्तिपूजा और अत्याचार को बढ़ावा दे रहे थे) के बीच एक सिद्धांतगत लड़ाई थी।
2. वर्तमान में प्रासंगिकता (Contemporary Relevance):
आज के समय में इस आयत की व्याख्या व्यापक संदर्भ में की जाती है:
विचारधाराओं का संघर्ष: आज का 'जिहाद' सिर्फ सैन्य लड़ाई नहीं, बल्कि विचारों की लड़ाई है। मीडिया, शिक्षा और संस्कृति के मैदान में अल्लाह की राह (सच्चाई, नैतिकता, इंसानियत) और तागूत की राह (भ्रष्टाचार, अनैतिकता, हिंसा, धर्म-विरोधी प्रचार) के बीच लड़ाई चल रही है।
आंतरिक जिहाद: हर मुसलमान अपने अंदर भी यह लड़ाई लड़ रहा है। जब हम अपनी बुरी आदतों और शैतानी वासनाओं (तागूत) के खिलाफ लड़ते हैं और अल्लाह की आज्ञा (सबीलिल्लाह) का पालन करते हैं, तो यही आयत हमें प्रेरणा देती है।
सामाजिक बुराइयों के खिलाफ लड़ाई: जब कोई भ्रष्टाचार, अत्याचार, या सामाजिक बुराई के खिलाफ खड़ा होता है, तो वह अल्लाह की राह में लड़ रहा होता है। और जो इन बुराइयों का समर्थन करते हैं, वे (चाहे जाने-अनजाने) तागूत के सहायक बन जाते हैं।
3. भविष्य के लिए सन्देश (Message for the Future):
यह आयत भविष्य की सभी पीढ़ियों के लिए एक स्थायी मार्गदर्शक है:
स्पष्ट पहचान: यह आयत भविष्य के मुसलमानों को हमेशा यह याद दिलाएगी कि हर संघर्ष में पहले यह पहचानना जरूरी है कि कौन सा पक्ष अल्लाह की राह पर है और कौन सा पक्ष तागूत की राह पर।
नैतिक दृष्टिकोण: यह आयत मुसलमानों को सिखाएगी कि वे हर लड़ाई को एक नैतिक और आध्यात्मिक संदर्भ में देखें। इससे उन्हें अपने उद्देश्य की शुद्धता पर विश्वास बना रहेगा।
आशा और दृढ़ता: "शैतान की चाल कमजोर है" का आश्वासन भविष्य की हर चुनौती में मुसलमानों को दृढ़ रखेगा। चाहे बुराई की ताकतें कितनी भी बड़ी क्यों न हों, अंत में सच्चाई की जीत निश्चित है।
निष्कर्ष (Conclusion):
कुरआन की यह आयत हमें बताती है कि दुनिया का हर संघर्ष असल में अच्छाई और बुराई के बीच की लड़ाई का एक हिस्सा है। एक मोमिन का काम है कि वह अल्लाह की राह में डटकर लड़े, चाहे मुश्किलें कितनी भी हों, क्योंकि उसे पता है कि शैतान की चालें कमजोर हैं और अल्लाह की मदद सदैव सच्चे ईमान वालों के साथ है। यह विश्वास ही एक मोमिन की सबसे बड़ी ताकत है।