﴿أَيْنَمَا تَكُونُوا يُدْرِككُّمُ الْمَوْتُ وَلَوْ كُنتُمْ فِي بُرُوجٍ مُّشَيَّدَةٍ ۗ وَإِن تُصِبْهُمْ حَسَنَةٌ يَقُولُوا هَٰذِهِ مِنْ عِندِ اللَّهِ وَإِن تُصِبْهُمْ سَيِّئَةٌ يَقُولُوا هَٰذِهِ مِنْ عِندِكَ ۚ قُلْ كُلٌّ مِّنْ عِندِ اللَّهِ ۖ فَمَالِ هَٰؤُلَاءِ الْقَوْمِ لَا يَكَادُونَ يَفْقَهُونَ حَدِيثًا﴾
(अरबी आयत)
शब्दार्थ (Meaning of Words):
أَيْنَمَا تَكُونُوا: तुम जहाँ कहीं भी हो
يُدْرِككُّمُ الْمَوْتُ: मौत तुम्हें आ पकड़ेगी
وَلَوْ كُنتُمْ: और भले ही तुम हो
فِي بُرُوجٍ مُّشَيَّدَةٍ: मजबूत किलों में
وَإِن تُصِبْهُمْ حَسَنَةٌ: और यदि उन्हें कोई भलाई (लाभ) पहुँचे
يَقُولُوا: कहते हैं
هَٰذِهِ مِنْ عِندِ اللَّهِ: यह अल्लाह की तरफ से है
وَإِن تُصِبْهُمْ سَيِّئَةٌ: और यदि उन्हें कोई बुराई (हानि) पहुँचे
يَقُولُوا: कहते हैं
هَٰذِهِ مِنْ عِندِكَ: यह आप (पैगंबर) की तरफ से है
قُلْ: (हे पैगंबर) आप कह दें
كُلٌّ مِّنْ عِندِ اللَّهِ: हर चीज़ अल्लाह की तरफ से है
فَمَالِ هَٰؤُلَاءِ الْقَوْمِ: तो इन लोगों को क्या हो गया है
لَا يَكَادُونَ يَفْقَهُونَ: कि ये समझते ही नहीं
حَدِيثًا: कोई बात
सरल अर्थ (Simple Meaning):
"तुम जहाँ कहीं भी हो, मौत तुम्हें आ पकड़ेगी, भले ही तुम मजबूत किलों में ही क्यों न हो। और यदि इन लोगों को कोई भलाई (लाभ) मिलती है तो कहते हैं कि 'यह अल्लाह की तरफ से है,' और यदि इन्हें कोई बुराई (हानि) मिलती है तो कहते हैं कि 'यह आप (पैगंबर) की तरफ से है।' (हे पैगंबर) आप कह दें, 'सब कुछ अल्लाह की तरफ से है।' तो इन लोगों को क्या हो गया है कि ये कोई बात समझते ही नहीं?"
आयत का सन्देश और शिक्षा (Lesson from the Verse):
यह आयत दो महत्वपूर्ण सिद्धांतों की ओर इशारा करती है:
मृत्यु का सर्वव्यापक सत्य: मौत एक सार्वभौमिक सच्चाई है जो किसी से नहीं टलती। कोई भी स्थान या सुरक्षा उपाय मनुष्य को मौत से नहीं बचा सकता। यह तथ्य मनुष्य को दुनिया के मोह और सुरक्षा के झूठे भरोसे से मुक्त करता है और उसे आख़िरत के लिए तैयार होने की याद दिलाता है।
दोहरी मानसिकता का पर्दाफाश: यह आयत मुनाफिकों (पाखंडियों) की दोहरी सोच को उजागर करती है:
सुख में: जब उन्हें कोई लाभ या सफलता मिलती है, तो वे इसे अल्लाह की कृपा मानते हैं (बाहरी तौर पर)।
दुख में: लेकिन जब उन्हें कोई क्षति, हानि या असफलता मिलती है, तो वे इसे पैगंबर पर थोप देते हैं, मानो उनके आने के कारण यह मुसीबत आई है।
मुख्य शिक्षा: एक सच्चा मोमिन हर परिस्थिति में अल्लाह की मर्जी को मानता है। वह जानता है कि हर अच्छाई और बुराई अल्लाह की तरफ से है और उसमें कोई न कोई हिकमत (ज्ञान) छिपी है। उसे हर हाल में अल्लाह पर भरोसा रखना चाहिए और उसी का शुक्र अदा करना चाहिए।
अतीत, वर्तमान और भविष्य के सन्दर्भ में प्रासंगिकता (Relevance to Past, Present and Future)
1. अतीत में प्रासंगिकता (Past Context):
यह आयत उन मुनाफिकों के बारे में उतरी थी जो पैगंबर (स.अ.व.) के साथ धर्मयुद्ध में जाने से डरते थे। जब युद्ध में मुसलमानों को हानि होती थी, तो ये लोग कहते थे कि "यह मुहम्मद (स.अ.व.) के साथ जाने का नतीजा है।" लेकिन जब उन्हें गनीमत (युद्ध की लूट) मिलती थी, तो कहते थे कि "यह अल्लाह का फजल है।" आयत ने उनकी इस दोहरी मानसिकता का पर्दाफाश किया।
2. वर्तमान में प्रासंगिकता (Contemporary Relevance):
आज के समय में यह आयत बेहद प्रासंगिक है:
मौत की अनिवार्यता: आज का इंसान भौतिक सुरक्षा के साधनों (बीमा, हेल्थकेयर, हाई-टेक सिक्योरिटी) में इतना खो गया है कि वह मौत को भूल गया है। यह आयत उसे याद दिलाती है कि मौत तो आनी ही है, इसलिए अच्छे कर्म करने में देरी न करे।
दोषारोपण की प्रवृत्ति: आज के समाज में लोग अपनी असफलताओं, मुसीबतों और गलतियों का दोष दूसरों पर डालते हैं - पति-पत्नी, बॉस, सरकार, परिस्थितियों, यहाँ तक कि अल्लाह पर भी। यह आयत सिखाती है कि हर चीज़ अल्लाह की मर्जी से होती है और उसमें हमारे लिए कोई सबक है।
ईमान की परीक्षा: एक मोमिन की पहचान यह है कि वह सुख-दुख दोनों में अल्लाह पर भरोसा रखता है। न तो वह सफलता पर घमंड करता है, न ही मुसीबत में अल्लाह से नाराज होता है।
3. भविष्य के लिए सन्देश (Message for the Future):
यह आयत भविष्य की सभी पीढ़ियों के लिए एक स्थायी मार्गदर्शक है:
जीवन का दर्शन: यह आयत भविष्य के मुसलमानों को एक संतुलित जीवन दर्शन देगी - हर चीज़ अल्लाह से है। यह विश्वास उन्हें हर स्थिति में संतुलित और शांत रखेगा।
जिम्मेदारी की भावना: यह आयत लोगों को अपनी गलतियों की जिम्मेदारी लेने की शिक्षा देगी, दूसरों पर दोष मढ़ने की आदत से छुटकारा दिलाएगी।
आख़िरत की तैयारी: "मौत कहीं भी आ सकती है" का सबक भविष्य के मुसलमानों को हमेशा आख़िरत के लिए तैयार रहने की प्रेरणा देगा।
निष्कर्ष (Conclusion):
कुरआन की यह आयत हमें दो बुनियादी सच्चाइयाँ सिखाती है: पहली, मौत एक अनिवार्य सच्चाई है जिससे कोई नहीं बच सकता, इसलिए हमें हमेशा अच्छे कर्म करते रहना चाहिए। दूसरी, हर अच्छी और बुरी चीज़ अल्लाह की तरफ से है, इसलिए हमें हर हाल में उसी पर भरोसा रखना चाहिए और उसका शुक्रिया अदा करना चाहिए। यही सच्चा ईमान है।