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कुरआन की आयत 4:84 की पूरी व्याख्या

 

﴿فَقَاتِلْ فِي سَبِيلِ اللَّهِ لَا تُكَلَّفُ إِلَّا نَفْسَكَ ۚ وَحَرِّضِ الْمُؤْمِنِينَ عَسَى اللَّهُ أَن يَكُفَّ بَأْسَ الَّذِينَ كَفَرُوا ۚ وَاللَّهُ أَشَدُّ بَأْسًا وَأَشَدُّ تَنكِيلًا﴾

(अरबी आयत)


शब्दार्थ (Meaning of Words):

  • فَقَاتِلْ: तो (हे पैगंबर!) आप लड़ाई करें

  • فِي سَبِيلِ اللَّهِ: अल्लाह की राह में

  • لَا تُكَلَّفُ إِلَّا نَفْسَكَ: आपको केवल अपने आप ही का भार दिया गया है

  • ۚ وَحَرِّضِ: और प्रोत्साहित करें

  • الْمُؤْمِنِينَ: ईमान वालों को

  • عَسَى اللَّهُ: उम्मीद है कि अल्लाह

  • أَن يَكُفَّ: रोक देगा

  • بَأْسَ: मार (प्रकोप) को

  • الَّذِينَ كَفَرُوا: उन लोगों का जिन्होंने इनकार किया

  • ۚ وَاللَّهُ: और अल्लाह

  • أَشَدُّ بَأْسًا: बहुत अधिक सख्त प्रकोप वाला है

  • وَأَشَدُّ تَنكِيلًا: और बहुत अधिक सजा देने वाला है


सरल अर्थ (Simple Meaning):

"तो (हे पैगंबर!) आप अल्लाह की राह में लड़ाई करें। आपको केवल अपने आप ही का भार दिया गया है (आप अपना फर्ज निभाएं) और ईमान वालों को प्रोत्साहित करें। उम्मीद है कि अल्लाह काफिरों की मार (ताकत) को रोक देगा। और अल्लाह (उनसे) कहीं अधिक सख्त प्रकोप वाला और कहीं अधिक सजा देने वाला है।"


आयत का सन्देश और शिक्षा (Lesson from the Verse):

यह आयत पैगंबर (स.अ.व.) और सभी मोमिनों के लिए एक शक्तिशाली मार्गदर्शन और प्रेरणा है:

  1. व्यक्तिगत जिम्मेदारी का सिद्धांत: "लातुकल्लफु इल्ला नफसक" (आपको केवल अपने आप ही का भार दिया गया है) का सिद्धांत बहुत महत्वपूर्ण है। हर व्यक्ति अपने कर्मों के लिए जिम्मेदार है। आप दूसरों को मजबूर नहीं कर सकते, बल्कि केवल अपना फर्ज निभा सकते हैं और दूसरों को प्रेरित कर सकते हैं।

  2. नेतृत्व की भूमिका: एक नेता का काम सिर्फ आदेश देना नहीं, बल्कि तहरीद (प्रोत्साहित करना, उत्साह जगाना) है। लोगों के दिलों में जज्बा पैदा करना और उन्हें अच्छे काम के लिए प्रेरित करना नेतृत्व का हिस्सा है।

  3. अल्लाह पर भरोसा: "उम्मीद है कि अल्लाह काफिरों की मार को रोक देगा" - यह अल्लाह पर पूर्ण भरोसे (तवक्कुल) की शिक्षा देता है। मोमिन अपना पूरा प्रयास करता है, लेकिन नतीजे को अल्लाह पर छोड़ देता है।

  4. अल्लाह की शक्ति का एहसास: आयत का अंत इस बात से होता है कि अल्लाह का प्रकोप और सजा देना काफिरों की ताकत से कहीं अधिक शक्तिशाली है। यह मोमिनों के लिए एक सांत्वना और काफिरों के लिए एक चेतावनी है।

मुख्य शिक्षा: एक मोमिन को हमेशा अल्लाह की राह में अपना फर्ज निभाना चाहिए, दूसरों को भलाई के लिए प्रेरित करना चाहिए, और अंतिम परिणाम के लिए पूरी तरह से अल्लाह पर भरोसा रखना चाहिए।


अतीत, वर्तमान और भविष्य के सन्दर्भ में प्रासंगिकता (Relevance to Past, Present and Future)

1. अतीत में प्रासंगिकता (Past Context):

यह आयत पैगंबर (स.अ.व.) को उहुद की लड़ाई जैसे कठिन समय में दिलासा और मार्गदर्शन दे रही थी। जब कुछ मुसलमान कायरता दिखा रहे थे, तो अल्लाह ने पैगंबर (स.अ.व.) से कहा कि आप अपना फर्ज निभाएँ और दूसरे मोमिनों को प्रोत्साहित करें। नतीजा अल्लाह पर छोड़ दें, क्योंकि वह दुश्मनों से कहीं ज्यादा ताकतवर है।

2. वर्तमान में प्रासंगिकता (Contemporary Relevance):

आज के समय में इस आयत के व्यापक उपयोग हैं:

  • दीन के काम में सक्रियता: आज का 'जिहाद' समाज में बुराई के खिलाफ लड़ाई है। हमें खुद तो अच्छे काम करने चाहिए (जैसे नमाज़, दावत का काम) और दूसरों को भी प्रोत्साहित करना चाहिए। अगर लोग नहीं सुनते, तो हमारी जिम्मेदारी सिर्फ अपना फर्ज निभाना और समझाना है।

  • नेतृत्व और टीम वर्क: किसी भी अच्छे प्रोजेक्ट (चाहे वह समाज सेवा हो या धार्मिक कार्य) में, नेता का काम है लोगों को प्रेरित करना, जबरदस्ती नहीं। यह आयत आधुनिक मैनेजमेंट के सिद्धांतों से मेल खाती है।

  • मानसिक शांति: जब हम किसी अच्छे काम में लगे होते हैं और लोग बाधा डालते हैं, तो यह आयत हमें याद दिलाती है कि हमें सिर्फ अपना काम करना है। नतीजा अल्लाह पर छोड़ देना चाहिए। यह विश्वास तनाव से मुक्ति दिलाता है।

3. भविष्य के लिए सन्देश (Message for the Future):

यह आयत भविष्य की सभी पीढ़ियों के लिए एक स्थायी प्रेरणा स्रोत है:

  • आशावाद और सक्रियता: भविष्य की चुनौतियाँ चाहे कितनी भी बड़ी हों, यह आयत मुसलमानों को निराश नहीं होने देगी। यह सिखाएगी कि अपना कर्तव्य निभाते रहो और अल्लाह से अच्छे नतीजे की उम्मीद रखो।

  • व्यक्तिगत पहल का महत्व: "लातुकल्लफु इल्ला नफसक" का सिद्धांत भविष्य के युवाओं को यह सिखाएगा कि समाज को बदलने के लिए पहले खुद को बदलो और फिर दूसरों को प्रेरित करो।

  • दृढ़ विश्वास: "वल्लाहु अशद्दु बअसन व अशद्दु तनकीला" (और अल्लाह कहीं अधिक सख्त प्रकोप वाला है) का भाव भविष्य के मुसलमानों में यह दृढ़ विश्वास पैदा करेगा कि आखिरकार जीत हक (सच्चाई) की ही होगी, भले ही बुराई की ताकतें कितनी भी मजबूत क्यों न लगें।

निष्कर्ष (Conclusion):
कुरआन की यह आयत हर मोमिन के लिए एक कार्ययोजना प्रस्तुत करती है: अपना फर्ज निभाओ, दूसरों को प्रेरित करो, और नतीजे को अल्लाह पर छोड़ दो। यह हमें सक्रियता और अल्लाह पर भरोसे के बीच एक सुंदर संतुलन सिखाती है। यही वह ताकत है जो एक साधारण इंसान को भी महान संघर्षों का सामना करने की हिम्मत देती है।