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कुरआन की आयत 4:85 की पूरी व्याख्या

 

﴿مَّن يَشْفَعْ شَفَاعَةً حَسَنَةً يَكُن لَّهُ نَصِيبٌ مِّنْهَا ۖ وَمَن يَشْفَعْ شَفَاعَةً سَيِّئَةً يَكُن لَّهُ كِفْلٌ مِّنْهَا ۗ وَكَانَ اللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ مُّقِيتًا﴾

(अरबी आयत)


शब्दरथ (Meaning of Words):

  • مَّن يَشْفَعْ: जो कोई सिफारिश करे

  • شَفَاعَةً حَسَنَةً: अच्छी सिफारिश

  • يَكُن لَّهُ: उसके लिए होगा

  • نَصِيبٌ مِّنْهَا: उसका एक हिस्सा

  • وَمَن يَشْفَعْ: और जो कोई सिफारिश करे

  • شَفَاعَةً سَيِّئَةً: बुरी सिफारिश

  • يَكُن لَّهُ: उसके लिए होगा

  • كِفْلٌ مِّنْهَا: उसका एक बोझ

  • وَكَانَ اللَّهُ: और अल्लाह हमेशा से है

  • عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ: हर चीज़ पर

  • مُّقِيتًا: निगरान रखने वाला, हिसाब रखने वाला


सरल अर्थ (Simple Meaning):

"जो कोई अच्छी सिफारिश करता है, उसके लिए उस (पुण्य) में से एक हिस्सा होगा। और जो कोई बुरी सिफारिश करता है, उसके लिए उस (पाप) में से एक बोझ होगा। और अल्लाह हर चीज़ पर निगरान रखने वाला है।"


आयत का सन्देश और शिक्षा (Lesson from the Verse):

यह आयत सिफारिश (शफाअत) की शक्ति और उसकी जिम्मेदारी के बारे में एक गहरा सिद्धांत स्थापित करती है:

  1. सिफारिश का दायरा: सिफारिश सिर्फ आखिरत तक सीमित नहीं है। यह दुनिया के हर उस काम को शामिल करती है जहाँ एक व्यक्ति दूसरे के लिए बीच-बचाव करता है या सिफारिश करता है।

  2. अच्छी सिफारिश का प्रतिफल: जो व्यक्ति किसी की अच्छाई, मदद, या नेक काम में सिफारिश करता है, उसे भी उस नेकी में हिस्सा मिलता है। यह प्रेरणादायक है कि आप दूसरों की भलाई में सहायक बनकर स्वयं भी पुण्य कमा सकते हैं।

  3. बुरी सिफारिश का दंड: जो व्यक्ति किसी बुरे काम, अत्याचार, या गलत कार्य में सिफारिश करता है, वह भी उस गुनाह में साझेदार बन जाता है और उसके पाप का एक हिस्सा उसे भी मिलता है।

  4. अल्लाह की निगरानी: अंत में यह चेतावनी दी गई है कि अल्लाह हर छोटी-बड़ी सिफारिश और उसके इरादे पर नजर रखता है। कोई भी इस जिम्मेदारी से बच नहीं सकता।

मुख्य शिक्षा: एक मोमिन को हमेशा अच्छाई और न्याय के काम में ही सिफारिश करनी चाहिए। बुरे और गलत कामों में किसी की सिफारिश करने से बचना चाहिए, क्योंकि इसका दोष भी उसे ही झेलना पड़ेगा।


अतीत, वर्तमान और भविष्य के सन्दर्भ में प्रासंगिकता (Relevance to Past, Present and Future)

1. अतीत में प्रासंगिकता (Past Context):

यह आयत उस समय के लोगों के लिए मार्गदर्शन थी जो ताकतवर लोगों की सिफारिश का गलत फायदा उठाते थे। कभी-कभी लोग गलत काम करने वालों की सिफारिश कर देते थे, जिससे अत्याचार और भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता था। यह आयत ऐसी गलत सिफारिशों से मुसलमानों को रोकती है।

2. वर्तमान में प्रासंगिकता (Contemporary Relevance):

आज के समय में यह आयत बेहद प्रासंगिक है:

  • रिफरेंस और सिफारिश पत्र: नौकरी या एडमिशन में जब हम किसी के लिए सिफारिश करते हैं, तो हमारी जिम्मेदारी है कि हम सिर्फ उसी की सिफारिश करें जो योग्य और ईमानदार हो। किसी अयोग्य व्यक्ति की सिफारिश करना "शफाअतुन सैय्यिआ" (बुरी सिफारिश) है।

  • सोशल मीडिया पर सहयोग: सोशल मीडिया पर किसी की पोस्ट शेयर करना, किसी प्रोडक्ट को प्रमोट करना, या किसी व्यक्ति की तारीफ करना भी एक तरह की सिफारिश है। अगर वह व्यक्ति या प्रोडक्ट गलत है, तो हम भी उसकी बुराई में साझेदार बन जाते हैं।

  • रिश्वत और भ्रष्टाचार: किसी भ्रष्ट अधिकारी के पास किसी का काम निकलवाने के लिए सिफारिश करना, या रिश्वत के मामले में बीच-बचाव करना स्पष्ट रूप से "बुरी सिफारिश" की श्रेणी में आता है।

3. भविष्य के लिए सन्देश (Message for the Future):

यह आयत भविष्य की सभी पीढ़ियों के लिए एक स्थायी नैतिक संहिता प्रदान करती है:

  • डिजिटल जिम्मेदारी: भविष्य में टेक्नोलॉजी और बढ़ेगी, सिफारिश के नए रूप सामने आएंगे (जैसे AI आधारित रेटिंग सिस्टम)। यह आयत लोगों को सिखाएगी कि हर प्रकार की सिफारिश की नैतिक जिम्मेदारी उन पर है।

  • सामाजिक न्याय: यह आयत भविष्य के समाजों में न्याय और ईमानदारी को बढ़ावा देगी। लोग सीखेंगे कि गलत काम में किसी की मदद करना, चाहे वह रिश्तेदार ही क्यों न हो, स्वयं को पाप में डालना है।

  • व्यक्तिगत पवित्रता: "अल्लाह मुकीतुन" (अल्लाह निगरान रखने वाला है) का भाव भविष्य के मुसलमानों को हर समय यह एहसास दिलाता रहेगा कि उनकी हर सिफारिश का हिसाब होगा। यह उन्हें ईमानदार और नेक बनाए रखने में मदद करेगा।

निष्कर्ष (Conclusion):
कुरआन की यह आयत हमें सिखाती है कि सिफारिश एक बड़ी सामाजिक शक्ति और जिम्मेदारी है। हमें इस शक्ति का इस्तेमाल सदैव नेकी और भलाई को बढ़ावा देने के लिए करना चाहिए। किसी गलत काम में सिफारिश करके हम सिर्फ दूसरे का नहीं, बल्कि अपना भी नुकसान करते हैं। एक मोमिन का फर्ज है कि वह हमेशा अच्छाई का साथ दे और बुराई से दूर रहे, चाहे इसके लिए उसे अपने रिश्तेदारों या दोस्तों के खिलाफ ही क्यों न खड़ा होना पड़े।