﴿وَإِذَا حُيِّيتُم بِتَحِيَّةٍ فَحَيُّوا بِأَحْسَنَ مِنْهَا أَوْ رُدُّوهَا ۗ إِنَّ اللَّهَ كَانَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ حَسِيبًا﴾
(अरबी आयत)
शब्दार्थ (Meaning of Words):
- وَإِذَا: और जब 
- حُيِّيتُم: तुम्हें सलाम किया जाए (अभिवादन किया जाए) 
- بِتَحِيَّةٍ: किसी अभिवादन के साथ 
- فَحَيُّوا: तो तुम भी अभिवादन करो 
- بِأَحْسَنَ مِنْهَا: उससे बेहतर (अभिवादन) के साथ 
- أَوْ رُدُّوهَا: या वैसा ही लौटा दो 
- إِنَّ اللَّهَ: निश्चित रूप से अल्लाह 
- كَانَ: हमेशा से है 
- عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ: हर चीज़ पर 
- حَسِيبًا: हिसाब लेने वाला 
सरल अर्थ (Simple Meaning):
"और जब तुम्हें किसी अभिवादन (सलाम) से नवाजा जाए, तो तुम उससे बेहतर अभिवादन करो, या कम से कम वैसा ही लौटा दो। निश्चित रूप से अल्लाह हर चीज़ का हिसाब लेने वाला है।"
आयत का सन्देश और शिक्षा (Lesson from the Verse):
यह आयत सामाजिक व्यवहार और मानवीय संबंधों के लिए एक सुनहरा नियम स्थापित करती है:
- उदारता का सिद्धांत: अगर कोई आपको सलाम करे या अच्छा बर्ताव करे, तो उससे बेहतर जवाब देना एक आदर्श व्यवहार है। यह समाज में प्यार और भाईचारा बढ़ाता है। 
- न्यूनतम आवश्यकता: अगर बेहतर जवाब देना संभव न हो, तो कम से कम वैसा ही जवाब अवश्य दें। किसी के अभिवादन को अनुत्तरित नहीं छोड़ना चाहिए। 
- पारस्परिक सम्मान: अभिवादन का आदान-प्रदान आपसी सम्मान और सामाजिक एकता को मजबूत करता है। यह दिखाता है कि आप दूसरे की भावनाओं की कद्र करते हैं। 
- दैवीय लेखा-जोखा: अल्लाह हर छोटी-बड़ी बात का हिसाब रखता है, यहाँ तक कि हमारे दैनिक व्यवहार और शब्दों का भी। इसलिए, हमें हमेशा अच्छे तरीके से पेश आना चाहिए। 
मुख्य शिक्षा: एक मोमिन को हमेशा दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए, खासकर जब कोई उसके साथ अच्छा व्यवहार करे। उदारता और अच्छाई से पेश आना ईमान का एक हिस्सा है।
अतीत, वर्तमान और भविष्य के सन्दर्भ में प्रासंगिकता (Relevance to Past, Present and Future)
1. अतीत में प्रासंगिकता (Past Context):
यह आयत उस समय के सामाजिक संदर्भ में उतरी जब लोगों के बीच अभिवादन के विभिन्न तरीके थे। इस्लाम ने "अस-सलामु अलैकुम" को सर्वश्रेष्ठ अभिवादन बनाया। यह आयत मुसलमानों को सिखाती थी कि जब कोई उन्हें सलाम करे (चाहे वह मुसलमान हो या गैर-मुसलमान), तो उससे बेहतर तरीके से जवाब देना चाहिए।
2. वर्तमान में प्रासंगिकता (Contemporary Relevance):
आज के समय में यह आयत बेहद प्रासंगिक है:
- सोशल मीडिया संवाद: आज लोग व्हाट्सएप, फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म पर एक-दूसरे को मैसेज भेजते हैं। अगर कोई आपको अच्छा मैसेज भेजे, तो उसके जवाब में उससे अच्छा या कम से कम वैसा ही जवाब देना इस आयत की शिक्षा है। 
- कार्यस्थल का व्यवहार: ऑफिस में अगर कोई सहकर्मी आपकी मदद करे या आपसे अच्छा व्यवहार करे, तो उसकी सहायता का बदला उससे बेहतर तरीके से चुकाना चाहिए। 
- अंतरधार्मिक संवाद: गैर-मुसलमान जब आपको उनके तरीके से अभिवादन करें (जैसे नमस्ते, गुड मॉर्निंग), तो उन्हें उनके अभिवादन का जवाब देना या बेहतर तरीके से "अस-सलामु अलैकुम" कहना इस आयत का पालन है। 
3. भविष्य के लिए सन्देश (Message for the Future):
यह आयत भविष्य की सभी पीढ़ियों के लिए एक स्थायी सामाजिक मार्गदर्शक है:
- मानवीय संबंधों का आधार: भविष्य में चाहे तकनीक कितनी भी उन्नत हो जाए, मानवीय संबंधों का महत्व कम नहीं होगा। यह आयत लोगों को सिखाती रहेगी कि अच्छे संबंधों की नींव आपसी सम्मान और उदारता में होती है। 
- सकारात्मक समाज का निर्माण: "बेहतर जवाब देना" का सिद्धांत एक श्रृंखला प्रतिक्रिया शुरू करता है जिससे पूरा समाज अधिक दयालु और सकारात्मक बन सकता है। 
- डिजिटल नागरिकता: भविष्य के डिजिटल युग में, यह आयत लोगों को ऑनलाइन व्यवहार के लिए भी मार्गदर्शन देगी - दूसरों की पोस्ट, टिप्पणियों और संदेशों का जवाब अच्छे तरीके से देना। 
निष्कर्ष (Conclusion):
कुरआन की यह आयत हमें एक उदार और सम्मानजनक जीवन शैली की शिक्षा देती है। यह हमें सिखाती है कि दूसरों की अच्छाई का जवाब और अच्छाई से देना चाहिए। यह छोटा सा नियम पारिवारिक रिश्तों, पड़ोसीयों के बीच के संबंधों और सामाजिक जीवन को सुखद और शांतिपूर्ण बना सकता है। एक मोमिन की पहचान उसके अच्छे व्यवहार और उदार स्वभाव से भी होती है, न कि सिर्फ उसकी इबादतों से।