﴿اللَّهُ لَا إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ ۚ لَيَجْمَعَنَّكُمْ إِلَىٰ يَوْمِ الْقِيَامَةِ لَا رَيْبَ فِيهِ ۗ وَمَنْ أَصْدَقُ مِنَ اللَّهِ حَدِيثًا﴾
(अरबी आयत)
शब्दार्थ (Meaning of Words):
اللَّهُ: अल्लाह
لَا إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ: कोई पूज्य (इलाह) नहीं है उसके सिवा
لَيَجْمَعَنَّكُمْ: वह अवश्य एकत्रित करेगा तुम सबको
إِلَىٰ يَوْمِ الْقِيَامَةِ: कयामत के दिन की ओर
لَا رَيْبَ فِيهِ: जिसमें कोई संदेह नहीं है
وَمَنْ أَصْدَقُ: और कौन है अधिक सच्चा
مِنَ اللَّهِ: अल्लाह से
حَدِيثًا: बात (वचन) में
सरल अर्थ (Simple Meaning):
"अल्लाह (वह है) जिसके सिवा कोई पूज्य नहीं। वह तुम सबको कयामत के दिन अवश्य एकत्रित करेगा, जिसमें कोई संदेह नहीं है। और अल्लाह से अधिक सच्ची बात किसकी हो सकती है?"
आयत का सन्देश और शिक्षा (Lesson from the Verse):
यह आयत तीन मौलिक इस्लामी सिद्धांतों को दृढ़ता से स्थापित करती है:
तौहीद की पुष्टि: सबसे पहले, आयत अल्लाह की एकता (तौहीद) की पुष्टि करती है - "ला इलाहा इल्ला हुवा" (कोई पूज्य नहीं है उसके सिवा)। यह इस्लाम की नींव है।
आख़िरत पर विश्वास: आयत कयामत और पुनरुत्थान के दिन पर दृढ़ विश्वास की माँग करती है। "ला रैबा फीह" (जिसमें कोई संदेह नहीं) कहकर इसे निर्विवाद सत्य बताया गया है।
अल्लाह के वचन की सत्यता: आयत एक तार्किक प्रश्न पूछती है - "अल्लाह से अधिक सच्ची बात किसकी हो सकती है?" यह इस बात की पुष्टि है कि कुरआन का हर वचन पूर्णतः सत्य है और अल्लाह का दिया हुआ वादा अटल है।
मुख्य शिक्षा: एक मोमिन को अल्लाह की एकता, आख़िरत के दिन और कुरआन की सत्यता पर अटूट विश्वास रखना चाहिए। अल्लाह का वादा सर्वाधिक सच्चा है और कयामत का आना निश्चित है।
अतीत, वर्तमान और भविष्य के सन्दर्भ में प्रासंगिकता (Relevance to Past, Present and Future)
1. अतीत में प्रासंगिकता (Past Context):
यह आयत पैगंबर (स.अ.व.) के समय के उन लोगों के जवाब में उतरी थी जो कयामत के दिन पर संदेह करते थे या मृत्यु के बाद पुनर्जीवित होने का मज़ाक उड़ाते थे। यह आयत उन्हें दृढ़ता से बताती है कि कयामत निश्चित है और अल्लाह सबको इकट्ठा करके हिसाब लेगा।
2. वर्तमान में प्रासंगिकता (Contemporary Relevance):
आज के भौतिकवादी युग में यह आयत बेहद प्रासंगिक है:
वैज्ञानिक सोच और आख़िरत: आज का इंसान हर चीज़ को वैज्ञानिक प्रमाण चाहता है। यह आयत बताती है कि कयामत का होना एक सर्वोच्च सत्य है, जिसे अल्लाह के वचन के रूप में स्वीकार करना होगा।
जीवन का उद्देश्य: कयामत पर विश्वास इंसान के जीवन को एक उद्देश्य देता है। यह विश्वास कि एक दिन अल्लाह के सामने पेश होना है, इंसान को गलत कामों से रोकता और अच्छे कामों के लिए प्रेरित करता है।
नैतिकता का आधार: जब लोग यह मान लेते हैं कि मौत के बाद कोई हिसाब-किताब नहीं है, तो वे दुनिया में अनैतिक काम करने से नहीं हिचकिचाते। कयामत का विश्वास नैतिकता की एक मजबूत नींव प्रदान करता है।
3. भविष्य के लिए सन्देश (Message for the Future):
यह आयत भविष्य की सभी पीढ़ियों के लिए एक स्थायी मार्गदर्शक है:
अटूट विश्वास का स्रोत: भविष्य की चुनौतियाँ चाहे कितनी भी बड़ी हों, यह आयत मुसलमानों के दिलों में अल्लाह और आख़िरत के प्रति अटूट विश्वास बनाए रखेगी।
आशा और डर का संतुलन: कयामत का विश्वास इंसान के मन में अल्लाह के प्रति डर (खौफ) और उसकी दया की आशा (रजा) का संतुलन बनाए रखता है। यह संतुलन एक स्वस्थ आध्यात्मिक जीवन के लिए आवश्यक है।
सर्वोच्च सत्य की याद: "व मन असदकु मिनल्लाहि हदीसा" (अल्लाह से अधिक सच्ची बात किसकी?) - यह प्रश्न भविष्य के लोगों को हमेशा याद दिलाता रहेगा कि दुनिया की सभी बातें और विचारधाराएँ बदल सकती हैं, लेकिन अल्लाह का वचन हमेशा सत्य रहेगा।
निष्कर्ष (Conclusion):
कुरआन की यह आयत हर मोमिन के लिए विश्वास की एक मजबूत बुनियाद है। यह हमें याद दिलाती है कि हमारा पालनहार एक है, वही हमें मौत के बाद जीवित करेगा और हमारे हर कर्म का हिसाब लेगा। इस सत्य को स्वीकार करना और इसके अनुसार अपना जीवन व्यतीत करना ही सच्ची सफलता है। अल्लाह के वचन से बढ़कर कोई सच्ची बात नहीं हो सकती, इसलिए कुरआन की हर बात को पूरे विश्वास के साथ स्वीकार करना चाहिए।