﴿فَمَا لَكُمْ فِي الْمُنَافِقِينَ فِئَتَيْنِ وَاللَّهُ أَرْكَسَهُمْ بِمَا كَسَبُوا ۚ أَتُرِيدُونَ أَنْ تَهْدُوا مَنْ أَضَلَّ اللَّهُ ۖ وَمَنْ يُضْلِلِ اللَّهُ فَلَنْ تَجِدَ لَهُ سَبِيلًا﴾
(अरबी आयत)
शब्दार्थ (Meaning of Words):
فَمَا لَكُمْ: तो तुम्हें क्या हो गया है
فِي الْمُنَافِقِينَ: मुनाफिकों (पाखंडियों) के बारे में
فِئَتَيْنِ: दो गिरोहों (दलों) में
وَاللَّهُ: और अल्लाह ने
أَرْكَسَهُمْ: उन्हें पलट दिया (भ्रष्ट कर दिया)
بِمَا كَسَبُوا: उनके कमाए (बुरे कर्मों) के कारण
أَتُرِيدُونَ: क्या तुम चाहते हो
أَنْ تَهْدُوا: मार्गदर्शन करो
مَنْ أَضَلَّ اللَّهُ: जिसे अल्लाह ने गुमराह कर दिया
وَمَنْ يُضْلِلِ اللَّهُ: और जिसे अल्लाह गुमराह कर दे
فَلَنْ تَجِدَ: तो तुम कभी न पाओगे
لَهُ سَبِيلًا: उसके लिए कोई रास्ता (मार्गदर्शन का)
सरल अर्थ (Simple Meaning):
"तो तुम्हें क्या हो गया है कि तुम मुनाफिकों (पाखंडियों) के बारे में दो दल बने हुए हो? जबकि अल्लाह ने उनके अपने कर्मों के कारण उन्हें (ईमान से) पलट दिया है। क्या तुम उस व्यक्ति को मार्ग दिखाना चाहते हो, जिसे अल्लाह ने गुमराह कर दिया है? और जिसे अल्लाह गुमराह कर दे, तुम उसके लिए कभी कोई रास्ता नहीं पाओगे।"
आयत का सन्देश और शिक्षा (Lesson from the Verse):
यह आयत मुनाफिकों के बारे में मुसलमानों के बीच पैदा हुए मतभेद को दूर करती है और एक महत्वपूर्ण सिद्धांत स्थापित करती है:
एकता का आह्वान: आयत मुसलमानों से पूछती है कि वे मुनाफिकों के बारे में दो दलों में क्यों बंट गए हैं। एक समूह उनके साथ नरमी बरतना चाहता था, दूसरा सख्ती। आयत कहती है कि मोमिनों को एक साथ रहना चाहिए और अपनी एकता बनाए रखनी चाहिए।
गुमराही का कारण: मुनाफिकों की गुमराही का असली कारण उनके अपने बुरे कर्म और इरादे हैं। अल्लाह ने उन्हें उनकी कमाई के कारण ही ईमान की रोशनी से वंचित कर दिया है।
मार्गदर्शन का स्रोत: मार्गदर्शन देने वाला केवल अल्लाह है। यह एक Devine अनुग्रह है। अगर अल्लाह किसी को गुमराह कर दे, तो कोई भी इंसान उसे सही रास्ता नहीं दिखा सकता।
व्यर्थ के प्रयास से मना करना: आयत मुसलमानों को उन लोगों को मार्गदर्शन देने के व्यर्थ के प्रयास से रोकती है जिन्होंने स्वयं ही गुमराही को चुना है और जिनके लिए अल्लाह ने भी मार्गदर्शन बंद कर दिया है।
मुख्य शिक्षा: मोमिनों को आपसी एकता बनाए रखनी चाहिए और अपनी ऊर्जा उन लोगों को मार्गदर्शन देने में बर्बाद नहीं करनी चाहिए जो जानबूझकर गुमराही को चुनते हैं। मार्गदर्शन अल्लाह के हाथ में है।
अतीत, वर्तमान और भविष्य के सन्दर्भ में प्रासंगिकता (Relevance to Past, Present and Future)
1. अतीत में प्रासंगिकता (Past Context):
यह आयत उस समय उतरी जब अब्दुल्लाह बिन उबय्य नामक एक प्रमुख मुनाफिक की मृत्यु हो गई और मुसलमान उसके बारे में दो दलों में बंट गए। एक समूह चाहता था कि पैगंबर (स.अ.व.) उसकी नमाज-ए-जनाजा पढ़ें, दूसरा समूह इसके खिलाफ था। आयत ने इस मतभेद को खत्म किया और स्पष्ट किया कि अल्लाह ने उसके अपने कर्मों के कारण ही उसे गुमराह कर दिया था।
2. वर्तमान में प्रासंगिकता (Contemporary Relevance):
आज के समय में यह आयत बेहद प्रासंगिक है:
मुस्लिम एकता: आज मुसलमान छोटी-छोटी बातों पर आपस में बंटे हुए हैं - मजहब, राजनीति, सम्प्रदाय के नाम पर। यह आयत हमें याद दिलाती है कि हमें अपनी ऊर्जा आपसी मतभेदों में नहीं बर्बाद करनी चाहिए।
दावत का तरीका: दीन की दावत देते समय, हमें उन लोगों को पहचानना चाहिए जो सच में मार्गदर्शन चाहते हैं और उन्हें जो सिर्फ बहस और विवाद करना चाहते हैं। जो लोग सत्य को सुनने और मानने के लिए तैयार नहीं हैं, उन पर अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहिए।
अल्लाह पर भरोसा: मार्गदर्शन देना हमारा काम है, लेकिन मार्गदर्शन देना अल्लाह के हाथ में है। इसलिए, हमें अपना फर्ज निभाने के बाद नतीजे की चिंता नहीं करनी चाहिए।
3. भविष्य के लिए सन्देश (Message for the Future):
यह आयत भविष्य की सभी पीढ़ियों के लिए एक स्थायी मार्गदर्शक है:
प्राथमिकताओं का निर्धारण: यह आयत भविष्य के मुसलमानों को सिखाएगी कि उनकी प्राथमिकता क्या होनी चाहिए - आपसी एकता को मजबूत करना और सच्चे दिल से मार्गदर्शन चाहने वालों की मदद करना।
व्यावहारिक जीवन शैली: यह आयत एक व्यावहारिक जीवन शैली सिखाती है। हमें हर किसी को खुश करने की कोशिश में अपनी शक्ति और संसाधन नहीं खोने चाहिए।
Devine न्याय में विश्वास: "अल्लाह ने उन्हें उनके कर्मों के कारण पलट दिया" - यह भाव भविष्य के मुसलमानों में यह विश्वास पैदा करेगा कि अल्लाह हर इंसान के इरादों और कर्मों को देखता है और उसी के अनुसार उसे मार्गदर्शन या गुमराही देता है।
निष्कर्ष (Conclusion):
कुरआन की यह आयत हमें दो महत्वपूर्ण सबक सिखाती है: पहला, मोमिनों को आपसी एकता बनाए रखनी चाहिए और छोटी-छोटी बातों पर बंटने से बचना चाहिए। दूसरा, हमें उन लोगों को मार्गदर्शन देने के लिए अपनी ऊर्जा बर्बाद नहीं करनी चाहिए जो सत्य को स्वीकार करने के इच्छुक नहीं हैं। मार्गदर्शन का असली स्रोत अल्लाह है, और हमारा काम सिर्फ संदेश पहुँचाना है।