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कुरआन की आयत 4:9 की पूरी व्याख्या

 आयत का अरबी पाठ:

وَلْيَخْشَ الَّذِينَ لَوْ تَرَكُوا مِنْ خَلْفِهِمْ ذُرِّيَّةً ضِعَافًا خَافُوا عَلَيْهِمْ فَلْيَتَّقُوا اللَّهَ وَلْيَقُولُوا قَوْلًا سَدِيدًا

शब्दार्थ:

  • وَلْيَخْشَ الَّذِينَ: और (वारिसों को) चाहिए कि डरें

  • لَوْ تَرَكُوا مِنْ خَلْفِهِمْ ذُرِّيَّةً ضِعَافًا: अगर वे अपने पीछे कमजोर संतान छोड़ जाते

  • خَافُوا عَلَيْهِمْ: तो उन (संतानों) के बारे में डरते

  • فَلْيَتَّقُوا اللَّهَ: तो उन्हें अल्लाह से डरना चाहिए

  • وَلْيَقُولُوا قَوْلًا سَدِيدًا: और ठीक बात कहनी चाहिए

सरल व्याख्या:
यह आयत पिछली आयतों में चल रहे विरासत और अनाथों के अधिकारों के विषय को एक गहन मनोवैज्ञानिक और नैतिक आधार प्रदान करती है।

आयत का तर्क बहुत स्पष्ट और मार्मिक है:
अल्लाह तआला उन वारिसों से कह रहा है जो मृतक की संपत्ति बाँट रहे हैं और अनाथों व कमजोरों के हक में कंजूसी कर रहे हैं - "उन लोगों को डरना चाहिए। सोचो, अगर तुम्हारी जगह तुम होते और तुम अपने पीछे कमजोर, नाबालिग बच्चों को छोड़कर चले जाते, तो क्या तुम नहीं चाहते कि दूसरे लोग तुम्हारे बच्चों के साथ न्याय करें और उनकी रक्षा करें?"

इसके बाद आयत दो आदेश देती है:

  1. अल्लाह से डरो: उस अल्लाह से डरो जो तुम्हारे और उन अनाथ बच्चों, सभी का रचयिता है।

  2. सीधी बात कहो: सच्चाई और न्याय की बात करो, झूठे बहाने न बनाओ।

आयत से सीख (Lesson):

  1. स्वार्थ से ऊपर उठकर सोचो (Think Beyond Self-Interest): इस आयत की मूल भावना "दूसरों के साथ वही व्यवहार करो जो तुम अपने लिए चाहते हो" (Golden Rule) है। यह मनुष्य को उसके स्वार्थ से ऊपर उठाकर सोचने को कहती है।

  2. अनाथों की देखभाल एक नैतिक जिम्मेदारी (Orphan Care is a Moral Duty): अनाथों और कमजोरों की देखभाल और उनके साथ न्याय करना केवल एक कानूनी बाध्यता नहीं है, बल्कि एक गहरी नैतिक और मानवीय जिम्मेदारी है।

  3. ईमानदार संचार (Honest Communication): "कौल-ए-सदीद" (सीधी और ठीक बात) का मतलब है ईमानदारी, पारदर्शिता और न्यायसंगत बातचीत। संपत्ति के मामलों में बहानेबाजी और झूठ से बचना चाहिए।

प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevance: Past, Present & Future)

अतीत के संदर्भ में:

  • इस आयत ने उस समय के समाज में एक मजबूत नैतिक आधार प्रदान किया जहाँ कमजोरों के अधिकारों की अनदेखी आम बात थी। इसने लोगों के दिलों में उनके अपने बच्चों के मोह के जरिए दूसरों के बच्चों के प्रति संवेदना पैदा की।

वर्तमान संदर्भ :

  1. सार्वभौमिक नैतिकता (Universal Morality): "जो व्यवहार तुम अपने लिए नहीं चाहते, उसे दूसरों के लिए मत करो" का सिद्धांत आज भी पूरी दुनिया में नैतिकता का आधार है। यह आयत उसी सार्वभौमिक सत्य की याद दिलाती है।

  2. सामाजिक जिम्मेदारी (Social Responsibility): आज के समय में, जहाँ अनाथालयों और कमजोर बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी अक्सर समाज या सरकार पर छोड़ दी जाती है, यह आयत हर व्यक्ति को उसकी व्यक्तिगत जिम्मेदारी का एहसास कराती है। हम सबका फर्ज है कि हम समाज के कमजोर सदस्यों की मदद करें।

  3. व्यापार और पेशेवर नैतिकता (Business & Professional Ethics): "कौल-ए-सदीद" (सीधी बात) का सिद्धांत आज के व्यापार जगत, राजनीति और पेशेवर जीवन के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। ईमानदारी और पारदर्शिता से बात करना हर जगह सफलता और सम्मान की कुंजी है।

  4. भविष्य की चिंता (Anxiety for the Future): आज का माता-पिता अपने बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित रहता है। यह आयत हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हम दूसरे के बच्चों के भविष्य के बारे में भी उतनी ही चिंता करते हैं?

भविष्य के लिए संदेश:
यह आयत भविष्य के किसी भी समाज के लिए एक स्थायी मनोवैज्ञानिक और नैतिक आधार प्रदान करती है: "किसी भी सभ्य समाज की नींव सहानुभूति (Empathy) और नैतिक जिम्मेदारी पर टिकी होती है।" चाहे तकनीक कितनी भी उन्नत हो जाए, मशीनें कितनी भी बुद्धिमान क्यों न हो जाएँ, मनुष्य का दूसरे मनुष्य के प्रति संवेदनशील होना ही उसकी सच्ची मानवता है।

निष्कर्ष:
कुरआन 4:9 हमें स्वार्थ के संकीर्ण दायरे से निकालकर एक विशाल मानवीय दृष्टिकोण प्रदान करती है। यह हमें सिखाती है कि दूसरों के साथ न्याय और दया का व्यवहार करना, वास्तव में, अपने भविष्य के साथ न्याय करना है। यह आयत हमारे अंदर वह डर पैदा करती है जो हमें गलत काम से रोकती है और वह उम्मीद जो हमें अच्छा काम करने के लिए प्रेरित करती है।