आयत का अरबी पाठ:
وَإِذَا حَضَرَ الْقِسْمَةَ أُولُو الْقُرْبَىٰ وَالْيَتَامَىٰ وَالْمَسَاكِينُ فَارْزُقُوهُم مِّنْهُ وَقُولُوا لَهُمْ قَوْلًا مَّعْرُوفًا
शब्दार्थ:
وَإِذَا حَضَرَ الْقِسْمَةَ: और जब (विरासत की) बंटवारे के समय
أُولُو الْقُرْبَىٰ وَالْيَتَامَىٰ وَالْمَسَاكِينُ: (कोई) रिश्तेदार और अनाथ और मिसकीन (गरीब) मौजूद हों
فَارْزُقُوهُم مِّنْهُ: तो उन्हें उसमें से (कुछ) दे दो
وَقُولُوا لَهُمْ قَوْلًا مَّعْرُوفًا: और उनसे अच्छी बात कहो
सरल व्याख्या:
यह आयत पिछली आयतों में चल रहे विरासत के कानून के संदर्भ को आगे बढ़ाती है। जहाँ आयत 4:7 ने कानूनी वारिसों के अधिकार तय किए, वहीं यह आयत उन लोगों की ओर ध्यान दिलाती है जो तकनीकी रूप से इस विरासत के कानूनी हकदार नहीं हैं, लेकिन फिर भी उस समय मौजूद होते हैं।
आयत का सार यह है:
जब किसी मृतक की संपत्ति का बंटवारा हो रहा हो और उस वक्त कोई ऐसा रिश्तेदार, अनाथ, या गरीब व्यक्ति मौजूद हो जिसका उस संपत्ति में कोई निर्धारित हिस्सा नहीं है, तो वारिसों को चाहिए:
उन्हें कुछ देना: उन मौजूद लोगों को भी संपत्ति में से कुछ हिस्सा, उपहार या भेंट के रूप में दे देना चाहिए।
अच्छा व्यवहार करना: उनसे नरमी और सम्मानपूर्वक बात करनी चाहिए, उन्हें डांटकर या अपमानित करके भगाया नहीं जाना चाहिए।
आयत से सीख (Lesson):
कानून से ऊपर उठकर नैतिकता (Ethics Beyond Law): इस्लाम सिर्फ कानूनी अधिकारों तक सीमित नहीं है। यह मनुष्य से उसके कानूनी दायित्वों से आगे बढ़कर नैतिक और मानवीय दायित्व निभाने का आह्वान करता है।
संवेदनशीलता और दया (Sensitivity & Compassion): समाज के कमजोर वर्गों के प्रति संवेदनशीलता और दया दिखाना ईमान का हिस्सा है।
सामाजिक सुरक्षा का जाल (Social Safety Net): यह आयत एक अनौपचारिक सामाजिक सुरक्षा प्रणाली की स्थापना करती है, जहाँ समाज के सभ्य लोग गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करते हैं।
प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevance: Past, Present & Future)
अतीत के संदर्भ में:
इस आयत ने एक ऐसे समाज में जहाँ कमजोरों को कोई अधिकार नहीं दिया जाता था, यह सुनिश्चित किया कि विरासत के बंटवारे जैसे संवेदनशील मौके पर भी उनकी उपेक्षा न हो और उन्हें कुछ सहायता मिले।
वर्तमान संदर्भ (Contemporary Audience Perspective):
मानवीय संबंधों की मर्यादा (Preserving Human Dignity): आज के दौर में, जहाँ पैसे के मामलों में रिश्ते तक टूट जाते हैं, यह आयत सिखाती है कि पैसे से ज्यादा महत्वपूर्ण इंसानियत और रिश्ते हैं। किसी गरीब रिश्तेदार को उसकी हैसियत के कारण अपमानित करना गलत है।
पारिवारिक जिम्मेदारी (Family Responsibility): आज भी ऐसे many रिश्तेदार होते हैं जो आर्थिक तंगी में जी रहे हैं। विरासत मिलने पर उनकी थोड़ी सी मदद करना एक बड़ा इंसानी और इस्लामी फर्ज है।
सामाजिक भलाई (Social Welfare): यह आयत एक प्रकार का "सामाजिक कर" (Social Tax) का विचार देती है। जब कोई परिवार संपत्ति पाता है, तो उससे समाज के गरीब और जरूरतमंद लोगों की मदद करना उसकी जिम्मेदारी बनती है।
मनोवैज्ञानिक प्रभाव (Psychological Impact): विरासत बंटवारे के समय मौजूद गरीब रिश्तेदारों को कुछ देकर और अच्छे बर्ताव से, परिवार में प्यार और एकजुटता बनी रहती है, जबकि उन्हें खाली हाथ लौटाने से दुश्मनी और मनमुटाव पैदा हो सकता है।
भविष्य के लिए संदेश:
यह आयत भविष्य के किसी भी समाज के लिए एक स्थायी सिद्धांत स्थापित करती है: "एक स्वस्थ समाज वह है जहाँ कानूनी न्याय के साथ-साथ सामाजिक न्याय और मानवीय दया का भी समान रूप से ख्याल रखा जाए।" चाहे अर्थव्यवस्था और तकनीक कितनी भी विकसित क्यों न हो जाए, समाज के कमजोर वर्गों के प्रति दायित्व की भावना हमेशा महत्वपूर्ण बनी रहेगी।
निष्कर्ष:
कुरआन 4:8 हमें सिखाती है कि इंसानियत कानून से ऊपर है। यह हमें हमारे समाज के प्रति हमारी जिम्मेदारी का एहसास कराती है और सिखाती है कि सच्ची कामयाबी सिर्फ अपना हक पाने में नहीं, बल्कि दूसरों की जरूरतों को पहचानने और पूरा करने में है। यह आयत इस्लाम के संतुलित दृष्टिकोण को दर्शाती है जहाँ कानून और नैतिकता, अधिकार और कर्तव्य, साथ-साथ चलते हैं।