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कुरआन की आयत 4:7 की पूरी व्याख्या

 आयत का अरबी पाठ:

لِّلرِّجَالِ نَصِيبٌ مِّمَّا تَرَكَ الْوَالِدَانِ وَالْأَقْرَبُونَ وَلِلنِّسَاءِ نَصِيبٌ مِّمَّا تَرَكَ الْوَالِدَانِ وَالْأَقْرَبُونَ مِمَّا قَلَّ مِنْهُ أَوْ كَثُرَ ۚ نَصِيبًا مَّفْرُوضًا

शब्दार्थ:

  • لِّلرِّجَالِ نَصِيبٌ: मर्दों का भी एक हिस्सा है

  • مِّمَّا تَرَكَ الْوَالِدَانِ وَالْأَقْرَبُونَ: उस (माल) में से जो माता-पिता और रिश्तेदार छोड़कर मरें

  • وَلِلنِّسَاءِ نَصِيبٌ: और औरतों का भी एक हिस्सा है

  • مِّمَّا تَرَكَ الْوَالِدَانِ وَالْأَقْرَبُونَ: उस (माल) में से जो माता-पिता और रिश्तेदार छोड़कर मरें

  • مِمَّا قَلَّ مِنْهُ أَوْ كَثُرَ ۚ: चाहे वह (तिरका) थोड़ा हो या बहुत

  • نَصِيبًا مَّفْرُوضًا: (यह) एक निर्धारित हिस्सा है

सरल व्याख्या:
यह आयत इस्लामी विरासत (इंहेरिटेंस) के कानून की आधारशिला रखती है। पिछली आयतों में अनाथों और कमजोरों के अधिकारों की बात होने के बाद, अब सीधे तौर पर महिलाओं के वित्तीय अधिकार को स्थापित किया जा रहा है।

आयत का संदेश स्पष्ट और क्रांतिकारी है:

  • मर्दों का हिस्सा है: माता-पिता या रिश्तेदारों द्वारा छोड़ी गई संपत्ति में पुरुष वारिसों का एक निर्धारित हिस्सा है।

  • औरतों का भी हिस्सा है: उसी संपत्ति में महिला वारिसों का भी एक निर्धारित हिस्सा है।

  • हर परिस्थिति में लागू: यह नियम चाहे छोटी संपत्ति हो या बहुत बड़ी, दोनों पर समान रूप से लागू होता है।

  • अनिवार्य हक: यह कोई ऐच्छिक या दया का विषय नहीं है, बल्कि एक "मफरूज़" (अनिवार्य रूप से निर्धारित) अधिकार है।

आयत से सीख (Lesson):

  1. महिलाओं का आर्थिक अधिकार (Women's Economic Right): इस्लाम ने स्पष्ट रूप से महिलाओं को विरासत में अनिवार्य हिस्सेदारी का अधिकार दिया, जो उस समय एक ऐतिहासिक सुधार था।

  2. न्याय का सिद्धांत (Principle of Justice): विरासत का वितरण लिंग के आधार पर नहीं, बल्कि ईश्वरीय नियम के आधार पर होना चाहिए जो सभी के अधिकारों की गारंटी देता है।

  3. व्यवस्था और निश्चितता (Order and Certainty): "निर्धारित हिस्सा" होने का मतलब है कि विरासत के मामले में अनुमान या झगड़े की कोई गुंजाइश नहीं है, बल्कि एक स्पष्ट कानूनी व्यवस्था है।

प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevance: Past, Present & Future)

अतीत के संदर्भ में:

  • इस्लाम से पहले अरब समाज में महिलाओं और नाबालिग बच्चों को विरासत में कोई हक नहीं दिया जाता था। संपत्ति केवल शारीरिक रूप से लड़ने वाले पुरुषों को मिलती थी। इस आयत ने उस अन्यायपूर्ण प्रथा को समाप्त कर दिया और महिलाओं को उनका वैध अधिकार दिलाया।

वर्तमान संदर्भ :

  1. महिला सशक्तिकरण (Women Empowerment): आज भी दुनिया के कई समाजों में महिलाओं को विरासत से वंचित रखा जाता है। यह आयत एक शक्तिशाली धार्मिक और नैतिक तर्क प्रदान करती है कि महिलाओं का विरासत में हक उनका ईश्वर-प्रदत्त अधिकार है, जिसे कोई छीन नहीं सकता।

  2. कानूनी जागरूकता (Legal Awareness): आज भी कई मुस्लिम परिवारों में महिलाएं अपने इस अधिकार से अनजान हैं या सामाजिक दबाव के कारण इसे छोड़ देती हैं। यह आयत पुरुषों और महिलाओं दोनों को इस अधिकार के प्रति जागरूक करती है।

  3. आर्थिक न्याय (Economic Justice): विरासत में हिस्सा मिलने से महिलाओं की आर्थिक स्थिति मजबूत होती है, जिससे वे आत्मनिर्भर बनती हैं और समाज में उनकी स्थिति सुदृढ़ होती है। यह आर्थिक न्याय की दिशा में एक बुनियादी कदम है।

  4. पारिवारिक झगड़ों का समाधान (Solution to Family Disputes): एक निर्धारित व्यवस्था होने से परिवारों में विरासत को लेकर होने वाले झगड़ों और मनमुटाव को कम किया जा सकता है।

भविष्य के लिए संदेश:
यह आयत भविष्य के किसी भी न्यायसंगत समाज के लिए एक स्थायी मार्गदर्शक सिद्धांत स्थापित करती है: "एक स्वस्थ समाज की नींव तभी रखी जा सकती है जब उसके सभी सदस्यों—चाहे वे पुरुष हों या महिला—को आर्थिक न्याय और संपत्ति में उनका वैध अधिकार मिले।" यह सिद्धांत हर युग में प्रासंगिक रहेगा।

निष्कर्ष:
कुरआन 4:7 एक ऐतिहासिक घोषणा है जिसने महिलाओं की सामाजिक और आर्थिक हैसियत को हमेशा के लिए बदल दिया। यह सिखाती है कि ईश्वरीय न्याय सभी के लिए है और यह कि महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता एक स्वस्थ समाज की बुनियाद है। यह आयत मुसलमानों को यह याद दिलाती है कि महिलाओं के विरासत के अधिकार का सम्मान करना अल्लाह का आदेश मानना है।