आयत का अरबी पाठ:
وَابْتَلُوا الْيَتَامَىٰ حَتَّىٰ إِذَا بَلَغُوا النِّكَاحَ فَإِنْ آنَسْتُم مِّنْهُمْ رُشْدًا فَادْفَعُوا إِلَيْهِمْ أَمْوَالَهُمْ ۖ وَلَا تَأْكُلُوهَا إِسْرَافًا وَبِدَارًا أَن يَكْبَرُوا ۚ وَمَن كَانَ غَنِيًّا فَلْيَسْتَعْفِفْ ۖ وَمَن كَانَ فَقِيرًا فَلْيَأْكُلْ بِالْمَعْرُوفِ ۚ فَإِذَا دَفَعْتُمْ إِلَيْهِمْ أَمْوَالَهُمْ فَأَشْهِدُوا عَلَيْهِمْ ۚ وَكَفَىٰ بِاللَّـهِ حَسِيبًا
शब्दार्थ:
- وَابْتَلُوا الْيَتَامَىٰ حَتَّىٰ إِذَا بَلَغُوا النِّكَاحَ: और अनाथों की (योग्यता की) जाँच करते रहो, यहाँ तक कि जब वे विवाह की उम्र को पहुँच जाएँ। 
- فَإِنْ آنَسْتُم مِّنْهُمْ رُشْدًا فَادْفَعُوا إِلَيْهِمْ أَمْوَالَهُمْ: फिर अगर तुम उनमें समझदारी पाओ तो उनके माल उनके हवाले कर दो। 
- وَلَا تَأْكُلُوهَا إِسْرَافًا وَبِدَارًا أَن يَكْبَرُوا: और उसे (उनकी संपत्ति को) फिजूलखर्ची और जल्दबाजी में (यह सोचकर) न खाओ कि वे बड़े हो जाएंगे। 
- وَمَن كَانَ غَنِيًّا فَلْيَسْتَعْفِفْ: और जो (संरक्षक) स्वयं अमीर हो, वह (अनाथों के माल से) परहेज करे। 
- وَمَن كَانَ فَقِيرًا فَلْيَأْكُلْ بِالْمَعْرُوفِ: और जो (संरक्षक) गरीब हो, वह उचित ढंग से (मजदूरी आदि के बदले) खा सकता है। 
- فَإِذَا دَفَعْتُمْ إِلَيْهِمْ أَمْوَالَهُمْ فَأَشْهِدُوا عَلَيْهِمْ: फिर जब तुम उन्हें उनके माल सौंपो तो उस पर गवाह बना लो। 
- وَكَفَىٰ بِاللَّـهِ حَسِيبًا: और (अंत में) हिसाब लेने वाले के रूप में अल्लाह काफी है। 
सरल व्याख्या:
यह आयत अनाथों की संपत्ति के प्रबंधन के लिए एक विस्तृत और व्यावहारिक मार्गदर्शन प्रदान करती है, जो पिछली आयतों में चल रहे विषय को पूरा करती है।
आयत के मुख्य बिंदु:
- योग्यता की जाँच (Test of Competence): अनाथों की देखभाल करने वाले संरक्षकों (अभिभावकों) को आदेश है कि वे अनाथों की समझदारी और परिपक्वता की जाँच करते रहें। 
- संपत्ति की वापसी (Return of Property): जैसे ही अनाथ विवाह की उम्र (यौवन/वयस्कता) तक पहुँच जाए और उनमें "रुश्द" (वित्तीय समझदारी और नैतिक परिपक्वता) दिखाई दे, तो उनकी संपत्ति उन्हें लौटा देनी चाहिए। 
- संरक्षकों के लिए नियम (Rules for Guardians): - गरीब संरक्षक: एक गरीब संरक्षक अनाथ की संपत्ति से अपनी सेवाओं के उचित पारिश्रमिक (जैसे, प्रबंधन शुल्क) के रूप में खा सकता है, लेकिन केवल "बिल-मारूफ" (न्यायसंगत और प्रचलित ढंग से)। 
- अमीर संरक्षक: एक अमीर संरक्षक को अनाथ की संपत्ति से किसी भी लाभ से परहेज करना चाहिए। 
 
- लेन-देन में पारदर्शिता (Transparency in Transaction): संपत्ति हस्तांतरण के समय गवाहों को उपस्थित करना अनिवार्य है ताकि भविष्य में किसी प्रकार का विवाद न हो। 
- अंतिम चेतावनी (Final Accountability): अंत में, यह याद दिलाया गया है कि अल्लाह सबसे बेहतर हिसाब लेने वाला है, भले ही दुनिया में कोई गवाह न हो। 
आयत से सीख (Lesson):
- प्रगतिशील जिम्मेदारी (Progressive Responsibility): बच्चों को उनकी क्षमता के अनुसार धीरे-धीरे जिम्मेदारी देनी चाहिए, न कि अचानक सब कुछ सौंप देना चाहिए। 
- न्यायसंगत पारिश्रमिक (Fair Compensation): सेवाओं के लिए पारिश्रमिक लेना जायज है, लेकिन वह न्यायसंगत और पारदर्शी होना चाहिए। 
- नैतिक ईमानदारी (Moral Integrity): ईमानदारी का स्तर इतना ऊँचा हो कि व्यक्ति अपनी गरीबी में भी दूसरे के हक में खयानत न करे, और अमीरी में तो बिल्कुल भी नहीं। 
- कानूनी सुरक्षा (Legal Security): महत्वपूर्ण वित्तीय लेन-देन में गवाही का प्रावधान भविष्य के झगड़ों से बचाता है और समाज में विश्वास को बढ़ाता है। 
प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevance: Past, Present & Future)
अतीत के संदर्भ में:
- इस आयत ने अनाथों के शोषण पर पूरी तरह से रोक लगा दी और एक स्पष्ट, न्यायसंगत कानूनी प्रक्रिया स्थापित की, जो उस समय के लिए एक क्रांतिकारी सुधार था। 
वर्तमान संदर्भ :
- ट्रस्ट और गार्जियनशिप (Trusts & Guardianship): आज के समय में, जब माता-पिता की मृत्यु के बाद नाबालिग बच्चों की संपत्ति की देखभाल की जिम्मेदारी रिश्तेदारों या कानूनी अभिभावकों पर होती है, यह आयत उनके लिए एक पूर्ण आचार संहिता है। यह सिखाती है कि उस संपत्ति को बच्चे के भविष्य के लिए सुरक्षित रखना और उसकी परिपक्वता पर लौटाना एक पवित्र जिम्मेदारी है। 
- युवा वित्तीय सशक्तिकरण (Youth Financial Empowerment): आयत "रुश्द" (परिपक्वता) की जाँच का जो सिद्धांत देती है, वह आज के युवाओं को वित्तीय शिक्षा देने और उन्हें धीरे-धीरे जिम्मेदारी सौंपने के आधुनिक शिक्षाशास्त्र के अनुरूप है। 
- भ्रष्टाचार निवारण (Corruption Prevention): "गवाह बना लो" का आदेश आज की दुनिया में लिखित अनुबंधों, कानूनी दस्तावेजों और ऑडिट ट्रेल्स का इस्लामी आधार है। यह भ्रष्टाचार को रोकने का एक शक्तिशाली उपाय है। 
- सामाजिक नैतिकता (Social Morality): यह आयत समाज के धनी वर्ग को यह याद दिलाती है कि उन्हें गरीबों और कमजोरों की संपत्ति से दूर रहना चाहिए, क्योंकि अल्लाह के यहाँ उनसे पूछा जाएगा। 
भविष्य के लिए संदेश:
यह आयत भविष्य के किसी भी समाज के लिए एक स्थायी मार्गदर्शक सिद्धांत स्थापित करती है: "कमजोरों की संपत्ति एक पवित्र अमानत है, जिसका प्रबंधन पारदर्शिता, न्याय और अंतिम जवाबदेही की भावना से किया जाना चाहिए।" चाहे संपत्ति के रूप कैसे भी बदलें, यह नैतिक ढांचा सदैव प्रासंगिक रहेगा।
निष्कर्ष:
कुरआन 4:6 केवल अनाथों के बारे में ही नहीं है; यह न्याय, ईमानदारी और सामाजिक जिम्मेदारी का एक व्यापक चार्टर है। यह हमें सिखाती है कि किसी की कमजोरी का फायदा उठाना सबसे बड़े पापों में से एक है और अंततः, हर इंसान को अपने हर कर्म का अल्लाह के सामने जवाब देना है।