आयत का अरबी पाठ:
وَلَا تُؤْتُوا السُّفَهَاءَ أَمْوَالَكُمُ الَّتِي جَعَلَ اللَّهُ لَكُمْ قِيَامًا وَارْزُقُوهُمْ فِيهَا وَاكْسُوهُمْ وَقُولُوا لَهُمْ قَوْلًا مَّعْرُوفًا
शब्द्दार्थ:
وَلَا تُؤْتُوا السُّفَهَاءَ أَمْوَالَكُمُ: और नासमझ लोगों को अपने वे माल न सौंपो
الَّتِي جَعَلَ اللَّهُ لَكُمْ قِيَامًا: जिन्हें अल्लाह ने तुम्हारे जीवन का सहारा बनाया है
وَارْزُقُوهُمْ فِيهَا وَاكْسُوهُمْ: और उन्हें उन्हीं (माल) में से खाना खिलाओ और कपड़े पहनाओ
وَقُولُوا لَهُمْ قَوْلًا مَّعْرُوفًا: और उनसे अच्छी बात कहो
सरल व्याख्या:
यह आयत पिछली आयतों में चल रए अनाओं और कमजोर वर्गों के अधिकारों के संदर्भ को आगे बढ़ाती है। यहाँ "अस-सुफहा" (नासमझ लोगों) से तात्पर्य उन लोगों से है जो अपनी संपत्ति का प्रबंधन ठीक से नहीं कर सकते, जैसे नाबालिग बच्चे, मानसिक रूप से अक्षम व्यक्ति, या फिजूलखर्ची करने वाले लोग।
अल्लाह तआला तीन स्पष्ट निर्देश दे रहा है:
संपत्ति न सौंपो: ऐसे लोगों को उनकी संपत्ति का पूरा नियंत्रण न दो, क्योंकि वे उसे बर्बाद कर देंगे।
जिम्मेदारी से खर्च करो: उनकी संपत्ति से ही उनका गुजारा चलाओ, उन्हें अच्छा खाना और कपड़ा दो। यह एक "अमानत" (ट्रस्ट) की तरह है।
अच्छा व्यवहार करो: उनके साथ नरमी और सम्मान का व्यवहार करो, उन्हें डांट-फटकार कर या अपमानित करके उनकी संपत्ति पर कब्जा मत करो।
आयत से सीख (Lesson):
संपत्ति प्रबंधन की जिम्मेदारी (Responsibility of Wealth Management): संपत्ति केवल एक स्वामित्व नहीं है, बल्कि एक जिम्मेदारी (अमानत) है। इसका प्रबंधन बुद्धिमानी और नैतिकता से होना चाहिए।
कमजोरों का संरक्षण (Protection of the Vulnerable): समाज का कर्तव्य है कि वह उन लोगों की रक्षा करे जो अपनी रक्षा खुद नहीं कर सकते। यह एक सामाजिक सुरक्षा का सिद्धांत है।
मानवीय गरिमा का सम्मान (Respect for Human Dignity): चाहे कोई व्यक्ति मानसिक रूप से कमजोर ही क्यों न हो, उसके साथ इंसानियत और अच्छे व्यवहार का बर्ताव करना हमारा फर्ज है।
प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevance: Past, Present & Future)
अतीत के संदर्भ में:
इस आयत ने उस जमाने में एक स्पष्ट कानूनी ढांचा प्रदान किया जहाँ कमजोर लोगों, खासकर अनाथों की संपत्ति, को हड़पना आम बात थी। इसने संरक्षकों (अभिभावकों) के कर्तव्यों को निर्धारित किया।
वर्तमान संदर्भ :
आज के दौर में यह आयत बेहद प्रासंगिक है:
वार्ड/अनाथों की संपत्ति का प्रबंधन (Management of Ward's/Orphan's Property): आज भी, जब किसी नाबालिग बच्चे के माता-पिता नहीं होते या कोई मानसिक रूप से अक्षम है, तो उसकी संपत्ति की देखभाल की जिम्मेदारी अदालत द्वारा नियुक्त संरक्षक (गार्जियन) पर होती है। यह आयत उस संरक्षक को नैतिक मार्गदर्शन देती है कि वह उस संपत्ति को अपनी नहीं समझे, बल्कि उससे बच्चे या अक्षम व्यक्ति की जरूरतें पूरी करे।
वित्तीय साक्षरता और युवा (Financial Literacy & Youth): आज के दौर में, जहाँ युवा कम उम्र में ही बड़ी रकम (जैसे, इन्फ्लुएंसर बनकर) कमा रहे हैं, माता-पिता की जिम्मेदारी है कि वे उन्हें संपत्ति का सही प्रबंधन सिखाएं और उन्हें फिजूलखर्ची से बचाएं। यह आयत इसी जिम्मेदारी की ओर इशारा करती है।
बुजुर्गों की संपत्ति और देखभाल (Elderly Care & Their Property): बहुत से बुजुर्ग मानसिक कमजोरी (डिमेंशिया आदि) का शिकार हो जाते हैं। उनकी संपत्ति और देखभाल की जिम्मेदारी उठाने वाले बच्चों के लिए यह आयत एक नैतिक आधार प्रदान करती है कि वे उनकी संपत्ति को उन पर ही खर्च करें और उनके साथ अच्छा व्यवहार करें।
सामाजिक कल्याण (Social Welfare): यह आयत राज्य के लिए भी मार्गदर्शन है कि वह ऐसे नागरिकों के लिए कल्याणकारी योजनाएं बनाए जो अपना ख्याल नहीं रख सकते।
भविष्य के लिए संदेश:
यह आयत भविष्य के किसी भी समाज के लिए एक स्थायी सिद्धांत स्थापित करती है: "संपत्ति का उद्देश्य मानव कल्याण है, न कि केवल स्वामित्व।" जैसे-जैसे तकनीक और अर्थव्यवस्था विकसित होगी, संपत्ति के रूप बदलेंगे, लेकिन कमजोरों की संपत्ति की सुरक्षा और उनके कल्याण की जिम्मेदारी का सिद्धांत हमेशा महत्वपूर्ण बना रहेगा।
निष्कर्ष:
कुरआन 4:5 का सार यह है कि संपत्ति एक ईश्वरीय अमानत है और उसका उपयोग जिम्मेदारी और दया के साथ किया जाना चाहिए। यह हमें सिखाती है कि समाज की ताकत का पैमाना उसके सबसे कमजोर सदस्यों के साथ कैसा व्यवहार होता है, यह है। यह आयत केवल एक कानूनी नियम नहीं, बल्कि एक उच्च नैतिक आचार संहिता है।