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कुरआन की आयत 4:4 की पूरी व्याख्या

 आयत का अरबी पाठ:

وَآتُوا النِّسَاءَ صَدُقَاتِهِنَّ نِحْلَةً ۚ فَإِن طِبْنَ لَكُمْ عَن شَيْءٍ مِّنْهُ نَفْسًا فَكُلُوهُ هَنِيئًا مَّرِيئًا

शब्दार्थ:

  • وَآتُوا النِّسَاءَ صَدُقَاتِهِنَّ: और औरतों को उनके महर (विवाह उपहार) खुशी से अदा कर दो।

  • نِحْلَةً: एक अनिवार्य उपहार के रूप में (जो उनका अधिकार है)।

  • فَإِن طِبْنَ لَكُمْ عَن شَيْءٍ مِّنْهُ نَفْسًا: फिर अगर वे खुशी से तुम्हारे लिए उसमें से कुछ छोड़ दें।

  • فَكُلُوهُ هَنِيئًا مَّرِيئًا: तो उसे (भले मन से) स्वादिष्ट और शुद्ध रूप से खाओ।

सरल व्याख्या:
यह आयत महिलाओं के वित्तीय अधिकारों की स्थापना करती है, विशेष रूप से महर (Mehr) के संदर्भ में, जो विवाह के समय पति द्वारा पत्नी को दिया जाने वाला अनिवार्य उपहार है।

अल्लाह तआला दो स्पष्ट आदेश दे रहा है:

  1. महर अदा करो: पतियों को आदेश है कि वे अपनी पत्नियों को उनका महर पूरा का पूरा और खुशी के साथ एक अनिवार्य उपहार के रूप में अदा करें। यह पत्नी का एक मौलिक और पवित्र अधिकार है, न कि कोई ऐच्छिक या औपचारिकता भरा कार्य।

  2. स्वेच्छा से छोड़े गए हिस्से को स्वीकार करो: अगर पत्नी अपनी पूरी मर्जी और खुशी से महर के कुछ हिस्से या पूरे महर को माफ कर दे, तो पति के लिए उसे स्वीकार करना और उसका उपयोग करना जायज है। लेकिन यह पत्नी की स्वेच्छा पर निर्भर है, पति का इस पर कोई दबाव नहीं होना चाहिए।

आयत से सीख (Lesson):

  1. महिलाओं की आर्थिक स्वायत्तता (Women's Financial Autonomy): इस्लाम ने महिला को विवाह में एक वित्तीय सुरक्षा और उसकी व्यक्तिगत संपत्ति का अधिकार दिया। महर के रूप में दिया गया धन या संपत्ति पूरी तरह से पत्नी की निजी संपत्ति होती है, जिस पर पति का कोई अधिकार नहीं होता।

  2. वैवाहिक संबंधों में ईमानदारी (Honesty in Marital Relations): विवाह एक पवित्र बंधन है, जिसकी नींव ईमानदारी और उदारता पर रखी जानी चाहिए, न कि लालच या धोखे पर।

  3. स्वैच्छिकता का महत्व (Importance of Voluntariness): पत्नी द्वारा महर माफ करना उसकी स्वेच्छा पर निर्भर करता है। इसमें किसी प्रकार का दबाव, डर या जबरदस्ती गुनाह है।

प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevance: Past, Present & Future)

अतीत के संदर्भ में:

  • इस्लाम से पहले के अरब समाज में, महर को कई बार एक कीमत के रूप में देखा जाता था, जिसके बदले में पत्नी पर स्वामित्व का अधिकार समझा जाता था। इस आयत ने उस मानसिकता को बदल दिया और महर को पत्नी का एक पवित्र और व्यक्तिगत अधिकार घोषित कर दिया, जो उसकी गरिमा और सुरक्षा का प्रतीक है।

वर्तमान संदर्भ :
आज के दौर में यह आयत बेहद प्रासंगिक है:

  1. महिला सशक्तिकरण (Women Empowerment): आज भी दहेज जैसी सामाजिक बुराइयाँ मौजूद हैं, जहाँ लड़की के परिवार से पैसा लिया जाता है। इसके विपरीत, इस्लामी महर लड़की को सशक्त बनाता है और उसे वित्तीय सुरक्षा प्रदान करता है। यह एक प्रगतिशील अवधारणा है।

  2. वैवाहिक अधिकारों की जागरूकता (Awareness of Marital Rights): आज कई महिलाएं अपने इस अधिकार से अनजान हैं। यह आयत पति और पत्नी दोनों को उनके अधिकारों और जिम्मेदारियों का एहसास कराती है।

  3. पारिवारिक सौहार्द (Family Harmony): जब पति खुशी से महर अदा करता है और पत्नी प्यार और सौहार्द से उसमें से कुछ छोड़ देती है, तो यह आपसी प्यार और विश्वास को मजबूत करता है। यह रिश्ते को एक लेन-देन से ऊपर उठाकर एक पवित्र साझेदारी बना देता है।

  4. आर्थिक न्याय (Economic Justice): यह आयत आर्थिक न्याय का एक उदाहरण प्रस्तुत करती है, जहाँ महिला को उसके अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता।

भविष्य के लिए संदेश:
यह आयत भविष्य के समाजों के लिए एक स्थायी मार्गदर्शन प्रदान करती है कि एक स्वस्थ और न्यायपूर्ण वैवाहिक संबंध की नींव सम्मान, ईमानदारी और आर्थिक न्याय पर टिकी होनी चाहिए। यह सुनिश्चित करती है कि विवाह जैसे पवित्र बंधन में भी महिला की व्यक्तिगत पहचान और आर्थिक सुरक्षा बनी रहे।

निष्कर्ष:
कुरआन 4:4 का सार यह है कि महिलाओं के वित्तीय अधिकारों की गारंटी और संरक्षण किया जाए। यह पुरुषों को उदारता और ईमानदारी का पाठ पढ़ाती है और महिलाओं को उनके अधिकार का एहसास कराती है। यह आयत इस्लाम की वह सुंदर छवि प्रस्तुत करती है जहाँ महिला को सम्मान और सुरक्षा का दर्जा प्राप्त है।