﴿وَمَا كَانَ لِمُؤْمِنٍ أَن يَقْتُلَ مُؤْمِنًا إِلَّا خَطَأً ۚ وَمَن قَتَلَ مُؤْمِنًا خَطَأً فَتَحْرِيرُ رَقَبَةٍ مُّؤْمِنَةٍ وَدِيَةٌ مُّسَلَّمَةٌ إِلَىٰ أَهْلِهِ إِلَّا أَن يَصَّدَّقُوا ۚ فَإِن كَانَ مِن قَوْمٍ عَدُوٍّ لَّكُمْ وَهُوَ مُؤْمِنٌ فَتَحْرِيرُ رَقَبَةٍ مُّؤْمِنَةٍ ۖ وَإِن كَانَ مِن قَوْمٍ بَيْنَكُمْ وَبَيْنَهُم مِّيثَاقٌ فَدِيَةٌ مُّسَلَّمَةٌ إِلَىٰ أَهْلِهِ وَتَحْرِيرُ رَقَبَةٍ مُّؤْمِنَةٍ ۖ فَمَن لَّمْ يَجِدْ فَصِيَامُ شَهْرَيْنِ مُتَتَابِعَيْنِ تَوْبَةً مِّنَ اللَّهِ ۗ وَكَانَ اللَّهُ عَلِيمًا حَكِيمًا﴾
(अरबी आयत)
शब्दार्थ (Meaning of Words):
وَمَا كَانَ لِمُؤْمِنٍ: और किसी मोमिन के लिए योग्य नहीं
أَن يَقْتُلَ مُؤْمِنًا: कि वह किसी मोमिन को मारे
إِلَّا خَطَأً: सिवाय गलती से
وَمَن قَتَلَ مُؤْمِنًا خَطَأً: और जिसने किसी मोमिन को गलती से मार डाला
فَتَحْرِيرُ رَقَبَةٍ مُّؤْمِنَةٍ: तो एक मोमिन गुलाम को आज़ाद करना
وَدِيَةٌ مُّسَلَّمَةٌ: और दिया (खून बहा) अदा करना
إِلَىٰ أَهْلِهِ: उसके घर वालों को
إِلَّا أَن يَصَّدَّقُوا: सिवाय इसके कि वे माफ कर दें (दिया माफ कर दें)
فَإِن كَانَ مِن قَوْمٍ عَدُوٍّ لَّكُمْ: फिर यदि वह (मारा हुआ) ऐसे समुदाय से है जो तुम्हारा दुश्मन है
وَهُوَ مُؤْمِنٌ: और वह (खुद) मोमिन है
فَتَحْرِيرُ रَقَبَةٍ مُّؤْمِنَةٍ: तो एक मोमिन गुलाम को आज़ाद करना
وَإِن كَانَ مِن قَوْمٍ بَيْنَكُمْ وَبَيْنَهُم مِّيثَاقٌ: और यदि वह ऐसे समुदाय से है जिनके और तुम्हारे बीच समझौता है
فَدِيَةٌ مُّسَلَّمَةٌ إِلَىٰ أَهْلِهِ: तो दिया अदा करना उसके घर वालों को
وَتَحْرِيرُ رَقَبَةٍ مُّؤْمِنَةٍ: और एक मोमिन गुलाम को आज़ाद करना
فَمَن لَّمْ يَجِدْ: फिर जो (यह सब) न पाए
فَصِيَامُ شَهْرَيْنِ مُتَتَابِعَيْنِ: तो लगातार दो महीने के रोज़े
تَوْبَةً مِّنَ اللَّهِ: अल्लाह की ओर से तौबा (स्वीकार) के रूप में
وَكَانَ اللَّهُ عَلِيمًا حَكِيمًا: और अल्लाह जानने वाला, तत्वदर्शी है
सरल अर्थ (Simple Meaning):
"किसी मोमिन के लिए यह उचित नहीं है कि वह किसी मोमिन को जानबूझकर मारे, सिवाय गलती से। और जिसने किसी मोमिन को गलती से मार डाला, तो उस पर एक मोमिन गुलाम को आज़ाद करना और उसके घर वालों को दिया (खून बहा) अदा करना है, सिवाय इसके कि वे (दिया) माफ कर दें। फिर यदि वह (मारा हुआ) ऐसे समुदाय से है जो तुम्हारा दुश्मन है, परन्तु वह स्वयं मोमिन है, तो एक मोमिन गुलाम को आज़ाद करना है। और यदि वह ऐसे समुदाय से है जिनके और तुम्हारे बीच समझौता है, तो उसके घर वालों को दिया अदा करना और एक मोमिन गुलाम को आज़ाद करना है। फिर जो (यह सब) न पाए, तो लगातार दो महीने के रोज़े (रखने हैं), अल्लाह की ओर से तौबा (स्वीकार) के रूप में। और अल्लाह जानने वाला, तत्वदर्शी है।"
आयत का सन्देश और शिक्षा (Lesson from the Verse):
यह आयत मानव जीवन के पवित्रता और गलती से हत्या के प्रायश्चित के बारे में गहन मार्गदर्शन प्रदान करती है:
जीवन की पवित्रता: एक मोमिन के लिए दूसरे मोमिन की हत्या करना सबसे बड़े पापों में से एक है। यह केवल गलती से होने पर ही माफ़ किया जा सकता है।
प्रायश्चित का विस्तृत प्रावधान: गलती से हत्या करने पर कफ्फारा (प्रायश्चित) के रूप में तीन चीजें आवश्यक हैं:
एक मोमिन गुलाम को आज़ाद करना
मृतक के परिवार को दिया (मुआवजा) देना
अगर यह संभव न हो तो लगातार दो महीने के रोज़े रखना
विभिन्न स्थितियों के लिए अलग-अलग नियम: आयत अलग-अलग सामाजिक-राजनीतिक स्थितियों (दुश्मन समुदाय या मित्र समुदाय से संबंध) के लिए अलग-अलग प्रावधान बनाती है, जो इस्लामी कानून की व्यावहारिकता को दर्शाता है।
अल्लाह की दया और ज्ञान: अंत में यह बताया गया है कि अल्लाह पूर्ण ज्ञान रखता है और उसके नियमों में गहरी हिकमत (ज्ञान) है।
मुख्य शिक्षा: मानव जीवन अत्यंत मूल्यवान है। गलती से भी किसी की जान लेने पर तुरंत प्रायश्चित करना आवश्यक है। इस्लाम ने प्रायश्चित के लिए एक संतुलित और व्यावहारिक व्यवस्था दी है जो पीड़ित परिवार के अधिकारों और गलती करने वाले के आध्यात्मिक शुद्धिकरण दोनों का ध्यान रखती है।
अतीत, वर्तमान और भविष्य के सन्दर्भ में प्रासंगिकता (Relevance to Past, Present and Future)
1. अतीत में प्रासंगिकता (Past Context):
यह आयत उस समय उतरी जब गलती से हत्या की घटनाएँ होती थीं और इसके लिए कोई स्पष्ट इस्लामी नियम नहीं था। इससे पहले, अरब समाज में खून का बदला लेने की प्रथा थी। इस आयत ने एक सभ्य और न्यायसंगत व्यवस्था दी जिसमें दिया (मुआवजा) और कफ्फारा (प्रायश्चित) का प्रावधान किया गया।
2. वर्तमान में प्रासंगिकता (Contemporary Relevance):
आज के समय में यह आयत बेहद प्रासंगिक है:
सड़क दुर्घटनाओं और लापरवाही से हत्या: आज कार दुर्घटनाओं, नशे में ड्राइविंग, या लापरवाही से किसी की मौत हो जाने की स्थिति में, इस आयत के सिद्धांत लागू होते हैं। अपराधी को न केवल कानूनी सजा भुगतनी चाहिए बल्कि पीड़ित परिवार को मुआवजा देना चाहिए और आध्यात्मिक प्रायश्चित भी करना चाहिए।
मानवाधिकार और न्याय: यह आयत मानव जीवन के मूल्य और पीड़ित परिवार के अधिकारों को मान्यता देती है। यह आधुनिक मानवाधिकार दर्शन से पूर्णतः सहमत है।
आध्यात्मिक शुद्धि: गलती करने के बाद केवल कानूनी सजा भर पर्याप्त नहीं है। आत्मिक शुद्धि के लिए प्रायश्चित आवश्यक है। रोज़े रखना एक आध्यात्मिक सफाई का माध्यम है।
3. भविष्य के लिए सन्देश (Message for the Future):
यह आयत भविष्य की सभी पीढ़ियों के लिए एक स्थायी नैतिक और कानूनी मार्गदर्शक है:
जीवन के मूल्य का संरक्षण: भविष्य में चाहे तकनीक कितनी भी उन्नत हो जाए, मानव जीवन की पवित्रता सर्वोच्च रहेगी। यह आयत इस मूल्य की रक्षा करती रहेगी।
न्याय और दया का संतुलन: यह आयत भविष्य के कानूनविदों को सिखाएगी कि न्याय के साथ-साथ दया और पुनर्वास का सिद्धांत भी महत्वपूर्ण है।
सार्वभौमिक नैतिकता: "गलती करने पर प्रायश्चित" का सिद्धांत हर युग और हर समाज के लिए प्रासंगिक रहेगा।
निष्कर्ष (Conclusion):
कुरआन की यह आयत मानव जीवन की पवित्रता, सामाजिक न्याय और व्यक्तिगत जिम्मेदारी का एक उत्कृष्ट दस्तावेज है। यह हमें सिखाती है कि गलती से भी किसी का जीवन लेने पर हमारी नैतिक, कानूनी और आध्यात्मिक जिम्मेदारियाँ बनती हैं। एक मोमिन का फर्ज है कि वह इन जिम्मेदारियों को पूरी ईमानदारी से निभाए। यह आयत इस्लाम के संतुलित और मानवीय चरित्र को प्रदर्शित करती है।