Read Quran translation in Hindi with verse-by-verse meaning and time-relevant explanations for deeper understanding.

कुरआन की आयत 4:93 की पूरी व्याख्या

 

﴿وَمَن يَقْتُلْ مُؤْمِنًا مُّتَعَمِّدًا فَجَزَاؤُهُ جَهَنَّمُ خَالِدًا فِيهَا وَغَضِبَ اللَّهُ عَلَيْهِ وَلَعَنَهُ وَأَعَدَّ لَهُ عَذَابًا عَظِيمًا﴾

(अरबी आयत)


शब्दार्थ (Meaning of Words):

  • وَمَن يَقْتُلْ: और जो कोई मार डाले

  • مُؤْمِنًا: किसी मोमिन को

  • مُّتَعَمِّدًا: जान-बूझकर (इरादे से)

  • فَجَزَاؤُهُ: तो उसकी सज़ा है

  • جَهَنَّمُ: जहन्नम

  • خَالِدًا فِيهَا: हमेशा उसमें रहना

  • وَغَضِبَ اللَّهُ عَلَيْهِ: और अल्लाह उससे नाराज हुआ

  • وَلَعَنَهُ: और उसपर लानत की

  • وَأَعَدَّ لَهُ: और तैयार किया है उसके लिए

  • عَذَابًا عَظِيمًا: बहुत बड़ा अज़ाब


सरल अर्थ (Simple Meaning):

"और जो कोई किसी मोमिन को जान-बूझकर (इरादे से) मार डाले, तो उसकी सज़ा जहन्नम है, जिसमें वह सदैव रहेगा। और अल्लाह उससे नाराज हुआ और उस पर लानत की और उसके लिए भारी यातना तैयार की।"


आयत का सन्देश और शिक्षा (Lesson from the Verse):

यह आयत जानबूझकर की गई हत्या को इस्लाम में सबसे गंभीर पापों में से एक घोषित करती है और इसके भयानक परिणाम बताती है:

  1. सबसे बड़े पापों में से एक: एक मोमिन की जानबूझकर हत्या करना एक घोर अत्याचार है। यह पिछली आयत में बताई गई 'गलती से हत्या' से कहीं अधिक गंभीर है।

  2. चार-स्तरीय दंड: इस पाप के लिए चार प्रकार की सजाएँ बताई गई हैं:

    • जहन्नम में सदैव रहना: यह सबसे बड़ी सजा है।

    • अल्लाह का ग़ज़ब (क्रोध): अल्लाह का कोप सबसे बड़ी विपत्ति है।

    • लानत (अल्लाह की रहमत से दूरी): अल्लाह की दया और रहमत से सदा के लिए वंचित हो जाना।

    • भारी यातना: विशेष रूप से तैयार की गई भयानक सजा।

  3. ईमानी भाईचारे की महत्ता: यह आयत मोमिनों के बीच के पवित्र रिश्ते और भाईचारे को दर्शाती है। एक मोमिन का खून दूसरे मोमिन के लिए हराम (वर्जित) है।

  4. इरादे का महत्व: इस्लाम में इरादे (नीयत) का बहुत महत्व है। गलती से हत्या और जानबूझकर हत्या में बहुत बड़ा अंतर है।

मुख्य शिक्षा: एक मोमिन के लिए दूसरे मोमिन की जान लेना सबसे बड़े पापों में से एक है जिसकी सजा अल्लाह के कोप और सदैव जहन्नम में रहने के रूप में है। मोमिनों के बीच प्रेम और भाईचारा होना चाहिए, न कि हिंसा और द्वेष।


अतीत, वर्तमान और भविष्य के सन्दर्भ में प्रासंगिकता (Relevance to Past, Present and Future)

1. अतीत में प्रासंगिकता (Past Context):

यह आयत उस समय उतरी जब इस्लामी समाज बन रहा था और मोमिनों के बीच भाईचारे के बंधन को मजबूत करने की जरूरत थी। अरब समाज में जहिलिय्यत (अज्ञानता) के दौर में खून-खराबा और कबीलाई झगड़े आम थे। इस आयत ने स्पष्ट कर दिया कि अब मोमिनों का एक नया परिवार बन गया है और उनके बीच किसी भी प्रकार की हिंसा पूरी तरह से वर्जित है।

2. वर्तमान में प्रासंगिकता (Contemporary Relevance):

आज के समय में यह आयत बेहद प्रासंगिक है:

  • आतंकवाद और अतिवाद: आज कुछ लोग गलत फतवों के आधार पर दूसरे मुसलमानों को काफिर घोषित करके उनकी हत्या को जायज़ ठहराते हैं। यह आयत स्पष्ट रूप से बताती है कि किसी मोमिन की जानबूझकर हत्या करने वाला सदैव जहन्नम में रहेगा।

  • समाज में बढ़ती हिंसा: आज समाज में हत्या, हत्या के प्रयास और हिंसा के मामले बढ़ रहे हैं। यह आयत हर मुसलमान को याद दिलाती है कि हत्या का पाप अत्यंत गंभीर है।

  • आध्यात्मिक चेतावनी: यह आयत एक शक्तिशाली आध्यात्मिक चेतावनी है जो लोगों को हत्या जैसे घोर पाप से रोकती है। यह दिल में अल्लाह का डर पैदा करती है।

3. भविष्य के लिए सन्देश (Message for the Future):

यह आयत भविष्य की सभी पीढ़ियों के लिए एक स्थायी चेतावनी और मार्गदर्शक है:

  • मानव जीवन की पवित्रता: यह आयत भविष्य के मुसलमानों को हमेशा याद दिलाती रहेगी कि मानव जीवन, विशेषकर मोमिन का जीवन, अल्लाह के यहाँ अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण है।

  • शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व: यह आयत मुसलमानों को आपसी हिंसा और खून-खराबे से रोककर शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की शिक्षा देती रहेगी।

  • नैतिक बंधन: "मोमिन" की परिभाषा में विस्तार करके, यह आयत भविष्य में मानवता के बीच एक नैतिक बंधन बनाए रखने में मदद करेगी।

निष्कर्ष (Conclusion):
कुरआन की यह आयत मोमिनों के लिए एक स्पष्ट और कड़ी चेतावनी है। यह हमें सिखाती है कि एक मोमिन की जानबूझकर हत्या करना सबसे बड़े पापों में से एक है जिसका परिणाम अल्लाह का गज़ब, लानत और हमेशा की जहन्नम है। एक मोमिन का फर्ज है कि वह दूसरे मोमिन के जीवन का पूरा सम्मान करे और किसी भी प्रकार की हिंसा से दूर रहे। यह आयत इस्लाम में मानव जीवन के महत्व और मोमिनों के बीच भाईचारे की पवित्रता को दर्शाती है।