﴿يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا إِذَا ضَرَبْتُمْ فِي سَبِيلِ اللَّهِ فَتَبَيَّنُوا وَلَا تَقُولُوا لِمَنْ أَلْقَىٰ إِلَيْكُمُ السَّلَامَ لَسْتَ مُؤْمِنًا تَبْتَغُونَ عَرَضَ الْحَيَاةِ الدُّنْيَا فَعِنْدَ اللَّهِ مَغَانِمُ كَثِيرَةٌ ۚ كَذَٰلِكَ كُنْتُمْ مِنْ قَبْلُ فَمَنَّ اللَّهُ عَلَيْكُمْ ۖ فَتَبَيَّنُوا ۚ إِنَّ اللَّهَ كَانَ بِمَا تَعْمَلُونَ خَبِيرًا﴾
(अरबी आयत)
शब्दार्थ (Meaning of Words):
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا: हे ईमान वालो!
إِذَا ضَرَبْتُمْ: जब तुम चल पड़ो
فِي سَبِيلِ اللَّهِ: अल्लाह की राह में
فَتَبَيَّنُوا: तो अच्छी तरह जाँच-पड़ताल करो
وَلَا تَقُولُوا: और न कहो
لِمَنْ أَلْقَىٰ إِلَيْكُمُ السَّلَامَ: उससे जिसने तुम्हारी ओर सलाम (शांति) का संदेश भेजा है
لَسْتَ مُؤْمِنًا: तुम ईमान वाले नहीं हो
تَبْتَغُونَ: तुम चाहते हो
عَرَضَ الْحَيَاةِ الدُّنْيَا: दुनिया की थोड़ी सी ज़िंदगी (माल)
فَعِنْدَ اللَّهِ: तो अल्लाह के पास है
مَغَانِمُ كَثِيرَةٌ: बहुत अधिक लाभ
كَذَٰلِكَ كُنْتُمْ مِنْ قَبْلُ: इसी तरह तुम पहले थे
فَمَنَّ اللَّهُ عَلَيْكُمْ: तो अल्लाह ने तुम पर एहसान किया
فَتَبَيَّنُوا: तो (हमेशा) जाँच-पड़ताल करो
إِنَّ اللَّهَ كَانَ بِمَا تَعْمَلُونَ خَبِيرًا: निश्चित ही अल्लाह तुम्हारे सब कामों से भली-भाँति अवगत है
सरल अर्थ (Simple Meaning):
"हे ईमान वालो! जब तुम अल्लाह की राह में (धर्मयुद्ध के लिए) चल पड़ो, तो (हर बात की) अच्छी तरह जाँच-पड़ताल करो। और उस व्यक्ति से मत कहो जिसने तुम्हारी ओर सलाम (शांति का प्रस्ताव) भेजा है कि 'तुम ईमान वाले नहीं हो,' (ऐसा) तुम दुनिया के थोड़े से लाभ के लिए करते हो। हालाँकि अल्लाह के पास बहुत अधिक लाभ हैं। (याद रखो) इसी तरह तुम भी पहले (काफिर) थे, फिर अल्लाह ने तुम पर एहसान किया (और ईमान की नेमत दी)। तो (हमेशा) जाँच-पड़ताल करते रहो। निश्चित ही अल्लाह तुम्हारे सब कामों से भली-भाँति अवगत है।"
आयत का सन्देश और शिक्षा (Lesson from the Verse):
यह आयत युद्ध और संघर्ष की स्थितियों में नैतिकता और सावधानी के महत्वपूर्ण सिद्धांत स्थापित करती है:
जाँच-पड़ताल का आदेश: "फतबय्यनू" (अच्छी तरह जाँच-पड़ताल करो) शब्द पर जोर दिया गया है। युद्ध की स्थिति में भी बिना पुष्टि किए किसी पर हमला नहीं करना चाहिए।
शांति के प्रस्ताव को अस्वीकार न करना: जो कोई शांति का प्रस्ताव दे या इस्लाम कबूल करने का इरादा जताए, उस पर तुरंत संदेह नहीं करना चाहिए।
दुनिया के लालच से सावधानी: आयत चेतावनी देती है कि कभी-कभी लोग दुनिया के माल (लूट) के लालच में शांति चाहने वालों को निशाना बना देते हैं।
अतीत को याद रखना: मुसलमानों को याद दिलाया जाता है कि वे भी पहले काफिर थे और अल्लाह ने उन्हें ईमान की नेमत दी। इसलिए उन्हें नए मुसलमानों के प्रति उदार और समझदार होना चाहिए।
अल्लाह की निगरानी: अंत में याद दिलाया गया है कि अल्लाह हर काम को देख रहा है, इसलिए हर कदम जिम्मेदारी से उठाना चाहिए।
मुख्य शिक्षा: एक मोमिन को हर स्थिति में न्यायसंगत और सावधान रहना चाहिए, खासकर संघर्ष के समय। बिना पुष्टि किए किसी पर आरोप नहीं लगाना चाहिए और न ही शांति के इच्छुक लोगों को निशाना बनाना चाहिए।
अतीत, वर्तमान और भविष्य के सन्दर्भ में प्रासंगिकता (Relevance to Past, Present and Future)
1. अतीत में प्रासंगिकता (Past Context):
यह आयत उस समय उतरी जब एक सहाबी ने युद्ध के दौरान "अस्सलामु अलैकुम" कहने वाले एक व्यक्ति को केवल इस शक में मार डाला कि वह दुश्मन से अपनी जान बचाने के लिए ऐसा कह रहा है। आयत ने इस कार्रवाई की निंदा की और मुसलमानों को हिदायत दी कि शांति का संकेत देने वाले किसी भी व्यक्ति की बात को गंभीरता से लेना चाहिए।
2. वर्तमान में प्रासंगिकता (Contemporary Relevance):
आज के समय में यह आयत बेहद प्रासंगिक है:
आतंकवाद और अतिवाद के खिलाफ मार्गदर्शन: आज कुछ आतंकवादी समूह बिना किसी पुष्टि के निर्दोष लोगों को निशाना बनाते हैं। यह आयत स्पष्ट रूप से ऐसी कार्रवाइयों को गलत ठहराती है।
सोशल मीडिया और अफवाहें: आज सोशल मीडिया पर बिना जाँच-पड़ताल के खबरें फैलाई जाती हैं और लोगों को निशाना बनाया जाता है। यह आयत हमें "फतबय्यनू" (जाँच-पड़ताल करो) का पाठ पढ़ाती है।
धार्मिक सहिष्णुता: नए मुसलमान बनने वालों के प्रति संदेह की नजर से देखना गलत है। उनके साथ सम्मान और उदारता का व्यवहार करना चाहिए।
3. भविष्य के लिए सन्देश (Message for the Future):
यह आयत भविष्य की सभी पीढ़ियों के लिए एक स्थायी नैतिक मार्गदर्शक है:
न्याय और संयम का सिद्धांत: भविष्य के किसी भी संघर्ष में, यह आयत मुसलमानों को न्याय और संयम बरतने की याद दिलाती रहेगी।
सूचना की जिम्मेदारी: भविष्य की तकनीकी दुनिया में, यह आयत "जाँच-पड़ताल" के महत्व को और भी स्पष्ट करेगी।
मानवीय मूल्यों की रक्षा: यह आयत हमेशा याद दिलाएगी कि इस्लाम मानवीय जीवन और गरिमा को सर्वोच्च प्राथमिकता देता है।
निष्कर्ष (Conclusion):
कुरआन की यह आयत हमें संघर्ष और शांति दोनों स्थितियों में नैतिकता और जिम्मेदारी का पाठ पढ़ाती है। यह हमें सिखाती है कि हमें हमेशा जाँच-पड़ताल करनी चाहिए, शांति के इच्छुक लोगों को निशाना नहीं बनाना चाहिए, और दुनिया के थोड़े से लाभ के लिए अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं करना चाहिए। एक मोमिन का फर्ज है कि वह हर स्थिति में न्यायसंगत और उदार बना रहे।