आयत का अरबी पाठ:
دَرَجَاتٍ مِّنْهُ وَمَغْفِرَةً وَرَحْمَةً ۗ وَكَانَ اللَّهُ غَفُورًا رَّحِيمًا
हिंदी अनुवाद:
"(यह) उस (अल्लाह) की तरफ से (बुलंद) दर्जे (हैं) और (उसकी) माफी और दया (है)। और अल्लाह बड़ा माफ करने वाला, दयावान है।"
📖 तफ्सीर और संदर्भ:
यह आयत वास्तव में कुरआन की आयत 4:96 नहीं है। आयत 4:95 का दूसरा भाग है जो सीधे पिछली आयत से जुड़ा है। पूर्ण संदर्भ इस प्रकार है:
आयत 4:95-96 का संपूर्ण संदर्भ:
"मोमिनों में से वे लोग जो बिना किसी रुकावट के घर बैठे रहते हैं और वे लोग जो अल्लाह की राह में अपने माल और जान से धर्मयुद्ध करते हैं, बराबर नहीं हो सकते। अल्लाह ने धर्मयुद्ध करने वालों को घर बैठे रहने वालों पर दर्जे में बढ़ा दिया है। और हर एक से अल्लाह ने अच्छे (जन्नत) का वादा किया है, और अल्लाह ने धर्मयुद्ध करने वालों को घर बैठे रहने वालों पर एक बहुत बड़े अज्र (इनाम) से फज़ीलत (वरीयता) दी है। उसकी तरफ से (बुलंद) दर्जे और माफी और दया (भी है)। और अल्लाह बड़ा माफ करने वाला, दयावान है।"
आयत का सार और सीख:
इस आयत का मुख्य संदेश अल्लाह की असीम दया और क्षमा पर जोर देना है। यह बताता है कि:
पुरस्कार का स्रोत: मुजाहिदीन (प्रयास करने वालों) को जो विशेष दर्जा और इनाम मिलता है, वह अल्लाह की विशेष दया और कृपा से मिलता है। यह उनका अधिकार नहीं, बल्कि अल्लाह का फज़ल (अनुग्रह) है।
आशा का संदेश: यह आयत उन लोगों के लिए आशा की किरण है जो किसी कारणवश पीछे रह गए। यह दर्शाता है कि अल्लाह गफूर (क्षमा करने वाला) और रहीम (दयावान) है और वह हर उस व्यक्ति को माफ़ कर सकता है जो ईमान रखता है और तौबा करता है।
संतुलन बनाए रखना: जहाँ पिछली आयत में कर्म और प्रयास का महत्व बताया गया था, वहीं यह आयत इस बात पर जोर देती है कि अंततः सब कुछ अल्लाह की दया पर निर्भर करता है। यह अल्लाह और बंदे के बीच के रिश्ते की कोमलता को दर्शाता है।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य (Past Relevance):
मोमिनीन के लिए सांत्वना: प्रारंभिक इस्लामी समुदाय में, कुछ लोग वैध कारणों (जैसे बीमारी, कमजोरी) के बिना भी धर्मयुद्ध से पीछे रह गए। इस आयत ने उन्हें निराश न होने का संदेश दिया। यह दिखाया कि भले ही उन्होंने एक विशेष अवसर खो दिया, लेकिन अगर वह सच्चे मोमिन हैं तो अल्लाह की दया और माफी उनपर बनी रहेगी।
एकता को बढ़ावा: इसने समुदाय में फूट को रोका। इसने यह सुनिश्चित किया कि जो लड़ रहे हैं और जो पीछे हैं, उनके बीच कोई कटुता पैदा न हो। सबको यकीन दिलाया कि अल्लाह सबको अपनी रहमत से नवाजेगा।
वर्तमान और भविष्य के लिए प्रासंगिकता (Contemporary & Future Relevance):
एक आधुनिक दर्शक के लिए, यह आयत गहरी मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक सुकून देती है:
1. आध्यात्मिक शांति और आशा:
गलतियों के बाद नई शुरुआत: आज का इंसान अक्सर गलतियों, चूक गए अवसरों, या अपनी कमजोरियों के कारण हताशा और अपराधबोध महसूस करता है। यह आयत संदेश देती है कि अल्लाह की दया का दरवाज़ा हमेशा खुला है। कोई भी व्यक्ति कभी भी तौबा और ईमानदार कोशिश के जरिए अल्लाह की माफी और रहमत हासिल कर सकता है।
तनाव मुक्ति: प्रतिस्पर्धा के इस दौर में, लोग हमेशा दूसरों से पीछे रह जाने के डर से जीते हैं। यह आयत याद दिलाती है कि जबकि कोशिश जरूरी है, अंतिम परिणाम अल्लाह की दया पर छोड़ देना चाहिए। इससे एक स्वस्थ मानसिकता विकसित होती है।
2. सामाजिक सद्भाव:
दया और सहनशीलता का पाठ: यह आयत मुसलमानों को सिखाती है कि जिस तरह अल्लाह अपने बंदों पर दया और माफी दिखाता है, उसी तरह उन्हें भी दूसरों के प्रति सहनशील और दयालु होना चाहिए। यह समाज में सहिष्णुता और भाईचारे को बढ़ावा देती है।
3. भविष्य के लिए आधार:
एक लचीला समुदाय: भविष्य की पीढ़ियों के लिए, यह आयत एक ऐसे समुदाय के निर्माण का आधार रखती है जो न्याय और पुरस्कार के सिद्धांत पर चलते हुए भी, दया और क्षमा को कभी नहीं भूलता। यह समुदाय को नैतिक रूप से मजबूत बनाता है और निराशा में घिरने से बचाता है।
निष्कर्ष:
आयत 4:96 (या 4:95 का समापन भाग) अल्लाह की गफूर और रहीम होने की विशेषता पर प्रकाश डालती है। यह हमें सिखाती है कि जीवन की दौड़ में कोशिश और प्रयास सबसे जरूरी हैं, लेकिन अगर कोई चूक भी जाए तो निराश नहीं होना चाहिए, क्योंकि अल्लाह की दया और माफी सबके लिए है। यह आयत ईमान की दुनिया में आशा और सुकून का स्त्रोत है।
वालहमदु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन (और सारी प्रशंसा अल्लाह के लिए है, जो सारे जहानों का पालनहार है)।