Read Quran translation in Hindi with verse-by-verse meaning and time-relevant explanations for deeper understanding.

कुरआन की आयत 5:1 की पूर्ण व्याख्या

 

﴿يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا أَوْفُوا بِالْعُقُودِ ۚ أُحِلَّتْ لَكُم بَهِيمَةُ الْأَنْعَامِ إِلَّا مَا يُتْلَىٰ عَلَيْكُمْ غَيْرَ مُحِلِّي الصَّيْدِ وَأَنتُمْ حُرُمٌ ۗ إِنَّ اللَّهَ يَحْكُمُ مَا يُرِيدُ﴾

(सूरत अल-माइदा, आयत नंबर 1)


अरबी शब्दों के अर्थ (Word-by-Word Meaning)

  • يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا: हे ईमान वालो!

  • أَوْفُوا: पूरा करो, निभाओ (अच्छी तरह से पूरा करो)।

  • بِالْعُقُودِ: समझौतों, करारों, वादों, प्रतिज्ञाओं को।

  • أُحِلَّتْ: हलाल (वैध) किया गया है।

  • لَكُم: तुम्हारे लिए।

  • بَهِيمَةُ الْأَنْعَام: चौपाये जानवर (जैसे ऊंट, गाय, भेड़, बकरी)।

  • إِلَّا मَا يُتْلَىٰ عَلَيْكُمْ: सिवाय उन (चीजों) के जो तुम पर पढ़कर सुनाई जाएंगी (यानी जो हराम घोषित हैं)।

  • غَيْرَ مُحِلِّي: हालांकि तुम्हें इजाजत नहीं है।

  • الصَّيْد: शिकार करने की।

  • وَأَنتُمْ حُرُمٌ: और तुम इहराम की हालत में हो (हज या उमरा के लिए)।

  • إِنَّ اللَّهَ: बेशक अल्लाह।

  • يَحْكُم: फैसला करता है।

  • مَا يُرِيد: जो चाहता है।


पूरी आयत का अर्थ (Full Translation in Hindi)

"हे ईमान वालो! अपने सभी समझौतों (वादों, करारों, प्रतिज्ञाओं) को पूरा करो। तुम्हारे लिए चौपाये जानवर हलाल किए गए हैं, सिवाय उनके जिन्हें (हराम होने की घोषणा) अभी तुमसे की जाएगी। और इहराम की हालत में शिकार को हलाल न समझो। निस्संदेह अल्लाह जो चाहता है, उसका फैसला (हुक्म) देता है।"


विस्तृत व्याख्या (Full Explanation in Hindi)

यह आयत सूरह अल-माइदा की पहली आयत है और इस्लामी कानून (शरीयत) के कुछ बुनियादी सिद्धांतों को स्थापित करती है।

  1. मूल आदेश: "अक़्द" (समझौतों) को पूरा करो:
    आयत का सबसे महत्वपूर्ण और व्यापक संदेश यह है कि ईमान वालों को अपने सभी "उक़ूद" (बहुवचन: अक़्द) का पालन करना चाहिए। "अक़्द" एक बहुत ही व्यापक शब्द है जिसमें शामिल हैं:

    • अल्लाह के साथ समझौता: ईमान लाना, इस्लाम को अपनाना, अल्लाह के आदेशों का पालन करने का वादा। यह सबसे बड़ा "अक़्द" है।

    • इंसानों के साथ समझौते: व्यापारिक अनुबंध, कर्ज का समझौता, वैवाहिक बंधन (निकाह), पड़ोसियों के अधिकार, शांति समझौते, यहाँ तक कि वादे और बातचीत भी इसमें शामिल हैं।

    • सामाजिक समझौते: समाज के सदस्य के रूप में देश के कानूनों का पालन करना (जब तक वे अल्लाह के कानून के विरुद्ध न हों)।

  2. विशिष्ट नियम:
    इसके बाद आयत दो विशिष्ट मामलों को उदाहरण के तौर पर स्पष्ट करती है:

    • जानवरों का हलाल होना: आम तौर पर चौपाये जानवरों का मांस खाना हलाल है, लेकिन कुछ अपवाद हैं (जैसे बिना अल्लाह का नाम लिए जानवर ज़बह करना, सुअर का मांस, मरा हुआ जानवर आदि) जिनका उल्लेख कुरान की दूसरी आयतों में किया गया है।

    • इहराम की हालत में शिकार की मनाही: जब कोई व्यक्ति हज या उमरा के लिए इहराम बांधता है, तो उसके लिए शिकार करना सख्त वर्जित है। यह इबादत की विशेष अवस्था है जिसमें कुछ चीजें मना हो जाती हैं।

  3. अंतिम अधिकार अल्लाह का: आयत इस बात पर जोर देकर समाप्त होती है कि अंतिम फैसला और कानून बनाने का अधिकार केवल अल्लाह का है ("इन्नल्लाहा यहकुमु मा युरीद")। वही हलाल और हराम का निर्धारण करता है और मनुष्य का कर्तव्य है कि वह उसके आदेशों का पालन करे।


सीख और शिक्षा (Lesson and Moral)

  1. ईमान और ईमानदारी का अटूट रिश्ता: सच्चा ईमान सिर्फ रीति-रिवाजों तक सीमित नहीं है, बल्कि उसकी सबसे बड़ी निशानी इंसानों के साथ ईमानदारी और वादे का पालन है।

  2. विश्वसनीयता (अमानतदारी): एक मुसलमान को अपने हर वादे, चाहे वह छोटा हो या बड़ा, को पूरा करने का प्रयास करना चाहिए। यह उसकी धार्मिक और सामाजिक पहचान है।

  3. जिम्मेदार नागरिक: यह आयत मुसलमानों को एक जिम्मेदार और कानून का पालन करने वाले नागरिक के रूप में रहने की शिक्षा देती है।

  4. सीमाओं का पालन: अल्लाह ने जीवन के लिए कुछ सीमाएं (हुदूद) निर्धारित की हैं। इन सीमाओं का सम्मान करना और उनका पालन करना ही मुसलमान की सफलता है।


प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevancy: Past, Contemporary Present and Future)

1. अतीत में प्रासंगिकता (Relevancy in the Past):

  • जाहिलिय्याह काल: अरब में इस्लाम के आने से पहले, समझौते तोड़ना आम बात थी। कमजोर कबीलों के साथ समझौने तोड़ दिए जाते थे। इस आयत ने एक नई सामाजिक व्यवस्था की नींव रखी, जहां वचनबद्धता सर्वोच्च मूल्य बन गया।

  • मदीना की स्थापना: पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने मदीना पहुंचकर विभिन्न कबीलों (मुसलमानों, यहूदियों, अन्य जातियों) के बीच एक लिखित संविधान (मीथाक-ए-मदीना) तैयार किया। यह आयत उस संविधान और उस जैसे सभी समझौतों की पवित्रता को स्थापित करती थी।

2. वर्तमान समय में प्रासंगिकता (Relevancy in the Contemporary Present):

  • व्यापार और अर्थव्यवस्था: आज का युग अनुबंधों (कॉन्ट्रैक्ट्स) का युग है। चाहे नौकरी का अनुबंध हो, व्यापार का सौदा हो, या बैंक से लिया गया लोन, इस आयत का सिद्धांत हर मुसलमान को इन्हें ईमानदारी से पूरा करने का आदेश देता है। धोखाधड़ी, जालसाजी और वादाखिलाफी से बचने की प्रेरणा देता है।

  • सामाजिक जीवन: पारिवारिक जिम्मेदारियाँ (पति-पत्नी, माता-पिता और बच्चों के अधिकार), पड़ोसियों के साथ अच्छा व्यवहार, दोस्ती के वादे - ये सभी "अक़्द" के दायरे में आते हैं।

  • राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर: एक मुसलमान नागरिक का देश के संविधान और कानूनों का पालन करना (जब तक वह इस्लाम के विरुद्ध न हो) भी इस आयत की भावना के अनुरूप है। अंतरराष्ट्रीय संधियों और समझौतों का सम्मान करना भी इस्लामी शिक्षा का हिस्सा है।

3. भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy in the Future):

  • डिजिटल युग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI): भविष्य में, डिजिटल अनुबंध, ऑनलाइन लेन-देन, डेटा प्राइवेसी से जुड़े समझौते और AI के साथ इंटरैक्शन और भी जटिल हो जाएंगे। इस आयत का सिद्धांत एक स्थायी मार्गदर्शक के रूप में काम करेगा, जो यह सुनिश्चित करेगा कि तकनीकी प्रगति मानवीय ईमानदारी और नैतिकता के सिद्धांतों से अलग न हो।

  • वैश्विक समुदाय: जैसे-जैसे दुनिया एक "ग्लोबल विलेज" बनती जा रही है, विभिन्न संस्कृतियों, धर्मों और राष्ट्रों के बीच विश्वास और वचनबद्धता की आवश्यकता और भी बढ़ जाएगी। "अक़्द" की इस्लामी अवधारणा विश्व शांति और सहयोग के लिए एक मजबूत नैतिक आधार प्रदान करती रहेगी।

निष्कर्ष: कुरआन की यह आयत केवल एक धार्मिक आदेश नहीं है, बल्कि यह एक सार्वभौमिक और कालातीत जीवन-शैली का सिद्धांत है। यह हर युग में मनुष्य को ईमानदार, विश्वसनीय और जिम्मेदार बनने का मार्गदर्शन देती है, चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी बदल क्यों न जाएं।