Read Quran translation in Hindi with verse-by-verse meaning and time-relevant explanations for deeper understanding.

कुरआन की आयत 5:2 की पूर्ण व्याख्या

 

﴿يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تُحِلُّوا شَعَائِرَ اللَّهِ وَلَا الشَّهْرَ الْحَرَامَ وَلَا الْهَدْيَ وَلَا الْقَلَائِدَ وَلَا آمِّينَ الْبَيْتَ الْحَرَامَ يَبْتَغُونَ فَضْلًا مِّن رَّبِّهِمْ وَرِضْوَانًا ۚ وَإِذَا حَلَلْتُمْ فَاصْطَادُوا ۚ وَلَا يَجْرِمَنَّكُمْ شَنَآنُ قَوْمٍ أَن صَدُّوكُمْ عَنِ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ أَن تَعْتَدُوا ۚ وَتَعَاوَنُوا عَلَى الْبِرِّ وَالتَّقْوَىٰ ۖ وَلَا تَعَاوَنُوا عَلَى الْإِثْمِ وَالْعُدْوَانِ ۚ وَاتَّقُوا اللَّهَ ۖ إِنَّ اللَّهَ شَدِيدُ الْعِقَابِ﴾

(सूरह अल-माइदा, आयत नंबर 2)


अरबी शब्दों के अर्थ (Word-by-Word Meaning)

  • يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا: हे ईमान वालो!

  • لَا تُحِلُّوا: हलाल न समझो (अवैध न ठहराओ)।

  • شَعَائِرَ اللَّهِ: अल्लाह की निशानियों (पवित्र प्रतीकों/समारोहों) को।

  • وَلَا الشَّهْرَ الْحَرَامَ: और न हराम (पवित्र) महीने को।

  • وَلَا الْهَدْيَ: और न कुरबानी के जानवर को।

  • وَلَا الْقَلَائِدَ: और न गले में पट्टे (इहराम के निशान) वाले जानवरों को।

  • وَلَا آمِّينَ: और न (उन लोगों को) जो इरादा करते हैं।

  • الْبَيْتَ الْحَرَامَ: बैतुल्लाह (काबा) का।

  • يَبْتَغُونَ: वे चाहते हैं/तलाश करते हैं।

  • فَضْلًا: फज़्ल (अनुग्रह, रोज़ी)।

  • مِّن رَّبِّهِمْ: अपने पालनहार से।

  • وَرِضْوَانًا: और उसकी रज़ा।

  • وَإِذَا حَلَلْتُمْ: और जब तुम इहराम से निकल जाओ (हलाल हो जाओ)।

  • فَاصْطَادُوا: तो शिकार करो।

  • وَلَا يَجْرِمَنَّكُمْ: और तुमसे किसी बात न करा दे (बहकाए नहीं)।

  • شَنَآنُ قَوْمٍ: किसी कौम की दुश्मनी।

  • أَن صَدُّوكُمْ: (इस बात ने) कि उन्होंने तुम्हें रोका।

  • عَنِ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ: मस्जिदे हराम से।

  • أَن تَعْتَدُوا: कि तुम हद से आगे बढ़ जाओ (ज्यादती करो)।

  • وَتَعَاوَنُوا: और सहयोग करो।

  • عَلَى الْبِرِّ: नेकी (भलाई) पर।

  • وَالتَّقْوَىٰ: और परहेज़गारी (अल्लाह का डर) पर।

  • وَلَا تَعَاوَنُوا: और सहयोग न करो।

  • عَلَى الْإِثْمِ: गुनाह (पाप) पर।

  • وَالْعُدْوَانِ: और ज़ुल्म (दुश्मनी/अत्याचार) पर।

  • وَاتَّقُوا اللَّهَ: और अल्लाह से डरो।

  • إِنَّ اللَّهَ: बेशक अल्लाह।

  • شَدِيدُ الْعِقَاب: सख्त सज़ा देने वाला है।


पूरी आयत का अर्थ (Full Translation in Hindi)

"हे ईमान वालो! अल्लाह की पवित्र निशानियों (शआइर) का अपमान न करो, न हराम महीने (की पवित्रता) को, न कुरबानी के जानवरों को, न उन जानवरों को जिनके गले में पट्टा (क़लाइद) बंधा हो, और न उन लोगों को रोको जो अपने पालनहार के अनुग्रह और प्रसन्नता की खोज में बैतुल्लाह (काबा) का इरादा करते हैं। और जब तुम इहराम से मुक्त हो जाओ तो शिकार कर सकते हो। और तुम्हें किसी कौम की दुश्मनी इस बात पर उकसाए कि तुम हद से गुज़र जाओ (अत्याचार करो)। नेकी और परहेज़गारी के कामों में एक-दूसरे की सहायता करो, और गुनाह ज़्यादती के कामों में सहायता न करो। और अल्लाह से डरो, निश्चय ही अल्लाह सख्त सज़ा देने वाला है।"


विस्तृत व्याख्या (Full Explanation in Hindi)

यह आयत पिछली आयत के सिद्धांतों को आगे बढ़ाते हुए एक व्यापक सामाजिक और नैतिक संहिता प्रस्तुत करती है।

  1. पवित्र चीज़ों का सम्मान (Respect for Sacred Symbols):

    • आयत मुसलमानों को अल्लाह की "शआइर" (निशानियों) का सम्मान करने का आदेश देती है। इसमें हज के सभी संस्कार (जैसे सफा-मरवा की सई, जमरों पर कंकरी मारना), पवित्र स्थान (काबा, मस्जिदे हराम), पवित्र महीने (जिनमें युद्ध वर्जित था), और कुरबानी के जानवर शामिल हैं। इनकी पवित्रता को नष्ट नहीं किया जाना चाहिए।

  2. हज के लिए स्वतंत्रता (Freedom for Pilgrimage):

    • इस्लाम से पहले, कबीले अक्सर एक-दूसरे के लोगों को हज करने से रोकते थे। यह आयत एक सार्वभौमिक सिद्धांत स्थापित करती है कि काबा का घर सभी के लिए है। कोई भी व्यक्ति जो शांति और ईमान के साथ हज का इरादा रखता हो, उसे रोका नहीं जाना चाहिए, भले ही वह गैर-मुस्लिम हो। यह अभिव्यक्ति और धार्मिक आज़ादी का एक मूलभूत सिद्धांत है।

  3. न्याय और निष्पक्षता (Justice and Fairness):

    • आयत एक गहन मनोवैज्ञानिक सच्चाई को उजागर करती है। यह चेतावनी देती है कि किसी समूह की दुश्मनी आपको अन्याय (अत्याचार) करने के लिए प्रेरित न करे। भले ही दुश्मन ने आपको पवित्र स्थल से रोका हो, आपको उसके बदले में सभी हदें पार करने, निर्दोष लोगों को निशाना बनाने या ज़ुल्म करने का अधिकार नहीं है। न्याय और प्रतिक्रिया का सिद्धांत आनुपातिक होना चाहिए।

  4. सहयोग का सिद्धांत (The Principle of Cooperation):

    • यह आयत का सबसे प्रसिद्ध और सार्वभौमिक हिस्सा है। यह मानव सहयोग के लिए एक स्पष्ट मार्गदर्शन प्रदान करती है:

      • सकारात्मक सहयोग (न करें): "अल-बिर्र" (हर प्रकार की भलाई) और "अत-तक्वा" (अल्लाह का भय, सभी नेक काम) पर सहयोग करो।

      • नकारात्मक सहयोग (न करें): "अल-इस्म" (पाप) और "अल-उद्वान" (अत्याचार, दुश्मनी) पर कभी सहयोग न करो।


सीख और शिक्षा (Lesson and Moral)

  1. सार्वभौमिक सम्मान: एक मुसलमान को सभी धर्मों की पवित्र चीज़ों का सम्मान करना चाहिए। यह सहिष्णुता और शांतिपूुष सहअस्तित्व की नींव है।

  2. भावनाओं पर नियंत्रण: व्यक्तिगत दुश्मनी या क्रोध को न्याय और नैतिकता पर हावी नहीं होने देना चाहिए। इस्लाम न्याय की सख्त शिक्षा देता है, भले ही वह दुश्मन के खिलाफ ही क्यों न हो।

  3. सकारात्मक सहयोग की संस्कृति: समाज की उन्नति तभी संभव है जब लोग अच्छाई, सच्चाई और नेकी के कामों में एक-दूसरे की मदद करें।

  4. स्पष्ट नैतिक सीमाएँ: एक मुसलमान के लिए गलत और ज़ालिम कामों में किसी की मदद करना, चाहे वह दोस्त हो या रिश्तेदार, सख्त वर्जित है। यह ईमान की जिम्मेदारी है।


प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevancy: Past, Contemporary Present and Future)

1. अतीत में प्रासंगिकता (Relevancy in the Past):

  • जाहिलिय्याह की प्रथाएँ: अरब में इस्लाम के आने से पहले, पवित्र महीनों में युद्ध होते थे, हज यात्रियों को लूटा जाता था, और कबीलों के बीच अनंत बदले की भावना चलती रहती थी। इस आयत ने इन बुराइयों का स्पष्ट रूप से खंडन किया और एक सभ्य समाज की नींव रखी।

  • हुदैबिया की संधि: जब मक्का के काफिरों ने मुसलमानों को हज से रोका, तो पैगंबर (सल्ल.) ने आयत के सिद्धांत का पालन करते हुए शांति संधि की, भले ही शर्तें कठिन थीं। यह "शत्रुता से अत्याचार न करने" के सिद्धांत का एक व्यावहारिक उदाहरण था।

2. वर्तमान समय में प्रासंगिकता (Relevancy in the Contemporary Present):

  • धार्मिक सहिष्णुता: आज दुनिया में सांप्रदायिक तनाव बहुत है। यह आयत मुसलमानों को याद दिलाती है कि दूसरे धर्मों के मंदिरों, चर्चों और धार्मिक समारोहों का सम्मान करना उनका धार्मिक कर्तव्य है।

  • सोशल मीडिया और अभिव्यक्ति: "शआइरुल्लाह" के सम्मान का सिद्धांत सोशल मीडिया पर दूसरे धर्मों की पवित्र चीजों का मजाक उड़ाने या उनका अपमान करने से रोकता है।

  • सामाजिक कार्य और एक्टिविज्म: "भलाई और परहेज़गारी में सहयोग" का सिद्धांत आज सभी सामाजिक सेवा क्षेत्रों (एनजीओ), आपदा राहत, शिक्षा, गरीबी उन्मूलन और पर्यावरण संरक्षण के काम में मार्गदर्शन करता है।

  • कॉर्पोरेट और राजनीतिक दुनिया: यह आयत भ्रष्टाचार, धोखाधड़ी, अन्यायपूर्ण युद्ध, या पर्यावरण का शोषण करने वाले प्रोजेक्ट्स में सहयोग न करने का आदेश देती है।

3. भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy in the Future):

  • वैश्विक चुनौतियाँ: भविष्य की चुनौतियाँ जैसे जलवायु परिवर्तन, महामारियाँ, और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का नैतिक उपयोग, "भलाई और परहेज़गारी में सहयोग" के सिद्धांत को और भी महत्वपूर्ण बना देगा। मानवता को इन चुनौतियों से निपटने के लिए एक साथ काम करना होगा।

  • अंतर-सभ्यता संवाद: जैसे-जैसे दुनिया और जुड़ती जाएगी, विभिन्न संस्कृतियों और धर्मों के बीच आदर और सम्मान बनाए रखना अस्तित्व के लिए आवश्यक होगा। यह आयत इसी की नींव रखती है।

  • नैतिक ढांचा: भविष्य की तकनीकी प्रगति (जैसे AI, जीन एडिटिंग) के लिए एक मजबूत नैतिक ढांचे की आवश्यकता होगी। इस आयत का सहयोग का सिद्धांत यह सुनिश्चित करेगा कि तकनीक का उपयोग मानवता के लिए भलाई ("अल-बिर्र") के लिए हो न कि अत्याचार ("अल-उद्वान") के लिए।

निष्कर्ष: सूरह अल-माइदा की यह आयत केवल कुछ विशिष्ट नियम नहीं बल्कि एक सार्वभौमिक जीवन दर्शन प्रस्तुत करती है। यह सम्मान, न्याय, सहयोग और नैतिक साहस के सिद्धांतों को स्थापित करती है जो हर युग में, हर समाज के लिए मार्गदर्शक का काम करते हैं।