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कुरआन की आयत 5:11 की पूर्ण व्याख्या

 

﴿يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اذْكُرُوا نِعْمَةَ اللَّهِ عَلَيْكُمْ إِذْ هَمَّ قَوْمٌ أَن يَبْسُطُوا إِلَيْكُمْ أَيْدِيَهُمْ فَكَفَّ أَيْدِيَهُمْ عَنكُمْ ۖ وَاتَّقُوا اللَّهَ ۚ وَعَلَى اللَّهِ فَلْيَتَوَكَّلِ الْمُؤْمِنُونَ﴾

(सूरह अल-माइदा, आयत नंबर 11)


अरबी शब्दों के अर्थ (Word-by-Word Meaning)

  • يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا: हे ईमान वालो!

  • اذْكُرُوا: याद करो (स्मरण करो)।

  • نِعْمَةَ: नेमत (अनुग्रह)।

  • اللَّهِ: अल्लाह की।

  • عَلَيْكُمْ: तुम पर।

  • إِذ: जब।

  • هَمَّ: इरादा किया।

  • قَوْمٌ: एक समुदाय ने।

  • أَن يَبْسُطُوا: कि बढ़ाएँ (फैलाएँ)।

  • إِلَيْكُمْ: तुम पर।

  • أَيْدِيَهُمْ: अपने हाथ।

  • فَكَفَّ: तो रोक दिया।

  • أَيْدِيَهُمْ: उनके हाथों को।

  • عَنكُمْ: तुमसे।

  • وَاتَّقُوا اللَّهَ: और अल्लाह से डरो।

  • وَعَلَى اللَّهِ: और अल्लाह पर।

  • فَلْيَتَوَكَّلِ: तो भरोसा रखे।

  • الْمُؤْمِنُونَ: ईमान वाले।


पूरी आयत का अर्थ (Full Translation in Hindi)

"हे ईमान वालो! अल्लाह की उस नेमत को याद करो जो उसने तुम पर की, जब एक समुदाय ने तुम पर हाथ उठाने का इरादा किया, तो अल्लाह ने उनके हाथ तुमसे रोक लिए। और अल्लाह से डरते रहो। और ईमान वालों को अल्लाह ही पर भरोसा रखना चाहिए।"


विस्तृत व्याख्या (Full Explanation in Hindi)

यह आयत मुसलमानों को एक ऐतिहासिक घटना की याद दिलाती है जहाँ अल्लाह ने उन्हे शत्रु के षड्यंत्र से सीधे तौर पर बचाया था। यह केवल एक इतिहास का पाठ नहीं, बल्कि एक गहन आध्यात्मिक शिक्षा है।

1. ऐतिहासिक संदर्भ:
यह आयत मदीना के यहूदी कबीले बनू क़ैनुक़ा या बनू नज़ीर के एक षड्यंत्र की ओर इशारा करती है। इन यहूदियों ने मुसलमानों के खिलाफ एक गंभीर हमले की योजना बनाई थी, जिसमें एक प्रमुख मुसलमान व्यक्ति (कुछ व्याख्याओं के अनुसार पैगंबर सल्ल. स्वयं) को ऊँचाई से एक पत्थर गिराकर मारने की साजिश थी। अल्लाह ने अपने पैगंबर को इस षड्यंत्र की जानकारी दे दी, जिससे वह बच गए और यह हमला विफल हो गया।

2. आयत के प्रमुख बिंदु:

  • अल्लाह की नेमत का स्मरण ("इज़कुरू ने'मतल्लाह"): आयत का केंद्रीय विषय कृतज्ञता है। अल्लाह चाहता है कि मुसलमान उसकी दैनिक और असाधारण कृपाओं को भूलें नहीं। यह बचाव एक ऐसी ही असाधारण कृपा थी।

  • बचाव का चमत्कार ("फकफ्फा ऐदीहिम अनकुम"): आयत जोर देकर कहती है कि शत्रुओं के हाथ रोकना अल्लाह का काम था। यह दर्शाता है कि अल्लाह अपने बंदों की सुरक्षा के लिए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से हस्तक्षेप करता है।

  • तक्वा का आह्वान ("वत्तकुल्लाह"): इस ऐतिहासिक कृपा को याद दिलाने के बाद, आयत तुरंत "अल्लाह से डरने" का आदेश देती है। इसका संदेश स्पष्ट है: जिस अल्लाह ने तुम्हें बाहरी दुश्मन से बचाया, उसी की अवज्ञा करके आंतरिक पाप (गुनाह) के खतरे में मत पड़ो। सच्ची सुरक्षा तक्वा (ईश्वर-चेतना) में है।

  • भरोसे का सिद्धांत ("व अलल्लाहि फलयतवक्कलिल मु'मिनून"): आयत का अंत एक सार्वभौमिक सिद्धांत के साथ होता है: ईमान वालों को अल्लाह पर ही भरोसा करना चाहिए। अतीत में अल्लाह ने बचाया, तो भविष्य में भी वही एकमात्र सहारा और रक्षक है। यह भरोसा (तवक्कुल) निष्क्रियता नहीं है, बल्कि अपनी पूरी कोशिश करने के बाद परिणाम को अल्लाह पर छोड़ देना है।


सीख और शिक्षा (Lesson and Moral)

  1. कृतज्ञता का महत्व: एक मुसलमान का जीवन अल्लाह की नेमतों के स्मरण और उसके प्रति शुक्र अदा करने से भरा होना चाहिए।

  2. अल्लाह की सुरक्षा पर विश्वास: मुसलमान को यह दृढ़ विश्वास रखना चाहिए कि उसकी हिफाजत का असली स्रोत अल्लाह है, न कि उसकी अपनी ताकत या साधन।

  3. तवक्कुल (अल्लाह पर भरोसा): हर कठिनाई और हर डर के समय, अंतिम भरोसा केवल अल्लाह पर होना चाहिए। यह भरोसा दिल को शक्ति और स्थिरता प्रदान करता है।

  4. सतर्कता और जिम्मेदारी: अल्लाह पर भरोसा करने का मतलब यह नहीं है कि व्यक्ति सावधानी और उचित कार्रवाई छोड़ दे। पैगंबर (सल्ल.) ने षड्यंत्र का पता चलने पर उचित कदम उठाए। भरोसा करने से पहले अपनी तरफ से पूरी कोशिश (असबाब) अपनाना जरूरी है।


प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevancy: Past, Contemporary Present and Future)

1. अतीत में प्रासंगिकता (Relevancy in the Past):

  • प्रारंभिक मुस्लिम समुदाय के लिए मजबूती: यह आयत मदीना में नवगठित मुस्लिम समुदाय के लिए एक शक्तिशाली प्रोत्साहन थी, जो चारों ओर से शत्रुओं से घिरा हुआ था। यह उनके विश्वास को मजबूत करती थी कि अल्लाह उनकी रक्षा करेगा।

  • यहूदी गठजोड़ के खतरे का खुलासा: इसने मुसलमानों को उनके आसपास रहने वाले कुछ यहूदी कबीलों के दोगले व्यवहार और खतरे से अवगत कराया, जिससे वे सतर्क रहें।

2. वर्तमान समय में प्रासंगिकता (Relevancy in the Contemporary Present):

  • व्यक्तिगत संकटों में आशा: आज, कोई भी मुसलमान जो किसी संकट, षड्यंत्र, या नुकसान के खतरे का सामना कर रहा है, इस आयत से आशा और सांत्वना ले सकता है। यह याद दिलाती है कि अल्लाह देख रहा है और वह अदृश्य रूप से हस्तक्षेप कर सकता है।

  • सामूहिक सुरक्षा का पाठ: मुस्लिम देश और समुदाय अक्सर बाहरी और आंतरिक षड्यंत्रों का शिकार होते हैं। यह आयत उन्हें सिखाती है कि सुरक्षा की रणनीति केवल भौतिक तैयारी तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि उसे अल्लाह पर भरोसा (तवक्कुल) और उससे डरने (तक्वा) के साथ जोड़ना चाहिए।

  • मानसिक शांति: अनिश्चितता और खतरे के इस युग में, यह आयत मन की शांति प्रदान करती है। यह सिखाती है कि अल्लाह पर पूर्ण भरोसा रखने से डर और चिंता दूर होती है।

3. भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy in the Future):

  • बढ़ते संघर्षों में मार्गदर्शन: भविष्य में संसाधनों, प्रौद्योगिकी और विचारधाराओं के संघर्ष और भी जटिल होंगे। मुसलमानों को षड्यंत्रों और हमलों का सामना करना पड़ सकता है। यह आयत भविष्य के मुसलमानों के लिए एक स्थायी मार्गदर्शक के रूप में काम करेगी, जो उन्हें सतर्क, कृतज्ञ और अल्लाह पर भरोसा रखने वाला बनाएगी।

  • तकनीकी निर्भरता बनाम ईश्वरीय सहायता: एक तकनीकी रूप से उन्नत भविष्य में, मनुष्य सुरक्षा के लिए पूरी तरह से तकनीक पर निर्भर हो सकता है। यह आयत यह सबक सिखाती रहेगी कि अंतिम रक्षक अल्लाह है, तकनीक नहीं।

  • आस्था का स्थायी स्तंभ: चाहे दुनिया कितनी भी बदल जाए, मनुष्य की डर और अनिश्चितता की भावनाएं बनी रहेंगी। यह आयत हर युग के मुसलमान को यह आस्था देती रहेगी कि उसका रब उसकी रक्षा करने में सक्षम है और उसे हर हाल में उसी पर भरोसा करना चाहिए।

निष्कर्ष: सूरह अल-माइदा की यह आयत अतीत की एक विशिष्ट घटना से शुरू होकर एक शाश्वत सत्य तक पहुँचती है। यह मुसलमानों को सिखाती है कि अल्लाह की कृपाओं को याद रखो, उसकी अवज्ञा से डरो, और हर हाल में उसी पर भरोसा करो। यह संदेश हर युग में प्रासंगिक बना रहेगा, चाहे चुनौतियाँ कैसी भी हों।