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कुरआन की आयत 5:14 की पूर्ण व्याख्या

 

﴿وَمِنَ الَّذِينَ قَالُوا إِنَّا نَصَارَىٰ أَخَذْنَا مِيثَاقَهُمْ فَنَسُوا حَظًّا مِّمَّا ذُكِّرُوا بِهِ فَأَغْرَيْنَا بَيْنَهُمُ الْعَدَاوَةَ وَالْبَغْضَاءَ إِلَىٰ يَوْمِ الْقِيَامَةِ ۚ وَسَوْفَ يُنَبِّئُهُمُ اللَّهُ بِمَا كَانُوا يَصْنَعُونَ﴾

(सूरह अल-माइदा, आयत नंबर 14)


अरबी शब्दों के अर्थ (Word-by-Word Meaning)

  • وَمِنَ: और (उनमें) से।

  • الَّذِينَ: जिन लोगों ने।

  • قَالُوا: कहा।

  • إِنَّا: निश्चय ही हम।

  • نَصَارَىٰ: नसारा (ईसाई) हैं।

  • أَخَذْنَا: हमने लिया।

  • مِيثَاقَهُمْ: उनका अहद (वचन)।

  • فَنَسُوا: तो वे भूल गए।

  • حَظًّا: एक हिस्सा।

  • مِّمَّा: उसमें से।

  • ذُكِّرُوا: उन्हें याद दिलाया गया था।

  • بِهِ: उससे।

  • فَأَغْرَيْنَا: तो हमने भड़का दी।

  • بَيْنَهُم: उनके बीच।

  • الْعَدَاوَةَ: दुश्मनी।

  • وَالْبَغْضَاءَ: और घृणा।

  • إِلَىٰ: तक।

  • يَوْمِ: दिन।

  • الْقِيَامَةِ: क़यामत के।

  • وَسَوْفَ: और शीघ्र ही।

  • يُنَبِّئُهُم: उन्हें सूचित करेगा।

  • اللَّهُ: अल्लाह।

  • بِمَا: उसके बारे में।

  • كَانُوا: वे करते थे।

  • يَصْنَعُونَ: जो कुछ बनाते (करते) थे।


पूरी आयत का अर्थ (Full Translation in Hindi)

"और उन लोगों में से जिन्होंने कहा कि हम नसारा (ईसाई) हैं, हमने उनसे भी उनका वचन लिया, तो वे भी उस (शिक्षा) के एक बड़े हिस्से को भूल गए, जिसकी उन्हें याद दिलाई गई थी। तो हमने उनके बीच क़यामत के दिन तक के लिए दुश्मनी और घृणा भड़का दी। और शीघ्र ही अल्लाह उन्हें बता देगा जो कुछ वे करते रहे थे।"


विस्तृत व्याख्या (Full Explanation in Hindi)

यह आयत पिछली आयतों में बनी इस्राईल (यहूदियों) के बाद अब ईसाइयों के साथ अल्लाह के अनुबंध और उसके टूटने के परिणामों का वर्णन करती है। यह दर्शाती है कि यह एक सार्वभौमिक नियम है जो किसी भी समुदाय पर लागू होता है जो अल्लाह के मार्गदर्शन को प्राप्त करने के बाद उससे विमुख हो जाता है।

1. ईसाइयों का अनुबंध:

  • पिछले पैगंबर हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) के माध्यम से ईसाइयों से भी अल्लाह ने एक वचन (मीसाक) लिया था। इस वचन में तौहीद (एकेश्वरवाद), इबादत और नैतिकता के वही मूल सिद्धांत शामिल थे जो हर धर्म का आधार हैं।

2. अनुबंध भंग का कारण: "भूल जाना"

  • आयत में फिर से "फनसिउ हिज्जम" (तो वे एक हिस्सा भूल गए) वाक्यांश का उपयोग किया गया है। यहूदियों की तरह, ईसाइयों ने भी अपने धर्म के मूल सिद्धांतों को "भुला" दिया।

  • ईसाइयों की "भूल": उनकी सबसे बड़ी भूल थी तौहीद (एकेश्वरवाद) को छोड़कर त्रित्व (Trinity) और हज़रत ईसा को अल्लाह का पुत्र मान लेना। उन्होंने हज़रत ईसा के मूल संदेश को बदल डाला।

3. अनुबंध भंग का परिणाम:

  • आपसी फूट और घृणा: अल्लाह का दंड यह नहीं है कि उसने उन पर कोई प्राकृतिक आपदा भेजी, बल्कि यह है कि उन्हें उनके अपने ही कर्मों का परिणाम भुगतने दिया गया। "फअग़रैना बैनहुमुल अदावता वल बग़ज़ा" – "तो हमने उनके बीच दुश्मनी और घृणा भड़का दी।"

  • स्थायी फूट: यह फूट और घृणा "इला यौमिल क़ियामह" (क़यामत के दिन तक) के लिए है। यह ऐतिहासिक रूप से सत्य है। ईसाई धर्म सैकड़ों सम्प्रदायों और मतभेदों में बंट गया है (कैथोलिक, प्रोटेस्टेंट, ऑर्थोडॉक्स आदि), जिनके बीच ऐतिहासिक रूप से गहरी दुश्मनी और यहाँ तक कि युद्ध भी हुए हैं।

4. अंतिम चेतावनी: पूर्ण जवाबदेही

  • आयत का अंत उसी सिद्धांत के साथ होता है जो पिछली आयतों में आया: "व सौफा युनब्बिउहुमुल्लाहु बिमा कानू यसनऊन" – "और शीघ्र ही अल्लाह उन्हें बता देगा जो कुछ वे करते रहे थे।"

  • इस संसार में फूट और घृणा उनकी पहली सजा है, लेकिन अंतिम हिसाब-किताब क़यामत के दिन होगा, जहाँ अल्लाह उनके सभी कर्मों (मूल संदेश को बदलने, फूट फैलाने आदि) से उन्हें अवगत कराएगा और पूरा बदला देगा।


सीख और शिक्षा (Lesson and Moral)

  1. मूल सिद्धांतों की रक्षा: किसी भी धर्म का सबसे बड़ा खतरा उसके मूल सिद्धांतों (विशेष रूप से तौहीद) को भुला देना या बदल देना है।

  2. फूट एक दैवीय दंड है: आपसी मतभेद, फूट और घृणा केवल एक सामाजिक समस्या नहीं है, बल्कि अल्लाह के मार्गदर्शन से दूर होने का एक लक्षण और दंड भी है।

  3. सामूहिक जिम्मेदारी: एक समुदाय के रूप में अल्लाह के वचन को तोड़ने के परिणाम पूरे समुदाय को भुगतने पड़ते हैं, भले ही उसमें कुछ अच्छे लोग हों।

  4. अंतिम जवाबदेही: दुनिया में मिलने वाला दंड (जैसे फूट) अंतिम नहीं है। क़यामत का दिन वह दिन है जब हर किसी को उसके कर्मों का पूरा हिसाब दिया जाएगा।


प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevancy: Past, Contemporary Present and Future)

1. अतीत में प्रासंगिकता (Relevancy in the Past):

  • ईसाईयों के लिए चेतावनी: यह आयत पैगंबर मुहम्मद (सल्ल.) के समय के ईसाइयों, विशेष रूप से नजरान के ईसाइयों के लिए एक चेतावनी थी, जो त्रित्व के गलत सिद्धांत पर अड़े हुए थे।

  • ऐतिहासिक सत्यता: ईसाई धर्म का इतिहास आपसी फूट, धार्मिक युद्धों (Crusades), और सम्प्रदायों के बीच गहरी दुश्मनी से भरा पड़ा है, जो इस आयत की सच्चाई को साबित करता है।

2. वर्तमान समय में प्रासंगिकता (Relevancy in the Contemporary Present):

  • मुसलमानों के लिए दर्पण: यह आयत आज के मुस्लिम समुदाय के लिए एक शक्तिशाली दर्पण है। कहीं हम भी तो अपने मूल सिद्धांत (तौहीद, न्याय, एकता) को नहीं भूल रहे? कहीं हमारे बीच भी तो फूट, गुटबाजी और आपसी घृणा नहीं फैल रही? क्या यह हमारे अपने कर्मों का परिणाम है?

  • अंतर-ईसाई मतभेद: आज भी ईसाई समुदाय विभिन्न सम्प्रदायों में बंटा हुआ है और उनके बीच मतभेद बने हुए हैं, जो इस आयत की भविष्यवाणी की पुष्टि करते हैं।

  • वैश्विक संदर्भ: पूरी दुनिया में राष्ट्रवाद, जातिवाद और सम्प्रदायवाद के आधार पर फैलने वाली "अदावत और बग़ज़ा" (दुश्मनी और घृणा) इस आयत में बताए गए सिद्धांत का एक व्यापक रूप है।

3. भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy in the Future):

  • मुस्लिम एकता के लिए चेतावनी: भविष्य में, यदि मुस्लिम समुदाय कुरआन के मार्गदर्शन को भूलकर आपसी फूट और घृणा का शिकार होता है, तो यह आयत उन्हें बताएगी कि यह उनके अपने कर्मों का परिणाम और अल्लाह की एक सजा है।

  • धार्मिक एकता का आधार: यह आयत भविष्य के अंतर-धार्मिक संवाद के लिए एक आधार प्रस्तुत करती है। यह ईसाइयों और यहूदियों को उनके मूल अनुबंध की ओर लौटने का आह्वान करती है – एक ईश्वर में विश्वास और नैतिक जीवन – जो इस्लाम का भी केंद्रीय संदेश है।

  • एक स्थायी सामाजिक नियम: यह आयत एक स्थायी सामाजिक-धार्मिक नियम स्थापित करती है: जब कोई समुदाय सत्य को भूल जाता है या बदल देता है, तो उसकी सजा उसके अपने बीच फूट और विद्वेष के रूप में होती है। यह नियम तब तक लागू रहेगा जब तक मनुष्य का अस्तित्व है।

निष्कर्ष: यह आयत केवल ईसाइयों की आलोचना नहीं है। यह एक शाश्वत चेतावनी है कि अल्लाह का मार्गदर्शन एक जिम्मेदारी है। इसे भुलाने या बदलने का परिणाम सामाजिक पतन और आध्यात्मिक विनाश है। यह मुसलमानों के लिए एक चेतावनी है कि वे अपने ऊपर इतिहास को दोहराने न दें और सत्य पर अडिग रहकर एकता और भाईचारे को मजबूत करें।