Read Quran translation in Hindi with verse-by-verse meaning and time-relevant explanations for deeper understanding.

कुरआन की आयत 5:15 की पूर्ण व्याख्या

 

﴿يَا أَهْلَ الْكِتَابِ قَدْ جَاءَكُمْ رَسُولُنَا يُبَيِّنُ لَكُمْ كَثِيرًا مِّمَّا كُنتُمْ تُخْفُونَ مِنَ الْكِتَابِ وَيَعْفُو عَن كَثِيرٍ ۚ قَدْ جَاءَكُم مِّنَ اللَّهِ نُورٌ وَكِتَابٌ مُّبِينٌ﴾

(सूरह अल-माइदा, आयत नंबर 15)


अरबी शब्दों के अर्थ (Word-by-Word Meaning)

  • يَا أَهْلَ: हे लोगों।

  • الْكِتَابِ: किताब (ईहले-किताब)।

  • قَدْ: निश्चय ही।

  • جَاءَكُمْ: आ गया है तुम्हारे पास।

  • رَسُولُنَا: हमारा रसूल।

  • يُبَيِّنُ: स्पष्ट कर देता है।

  • لَكُمْ: तुम्हारे लिए।

  • كَثِيرًا: बहुत सी बातें।

  • مِّمَّا: उनमें से।

  • كُنتُمْ: तुम होते थे।

  • تُخْفُونَ: छिपाते।

  • مِنَ: से।

  • الْكِتَابِ: किताब (तौरात, इंजील)।

  • وَيَعْفُو: और माफ कर देता है (छोड़ देता है)।

  • عَن كَثِيرٍ: बहुत सी बातों से।

  • قَدْ: निश्चय ही।

  • جَاءَكُم: आ गया है तुम्हारे पास।

  • مِّنَ اللَّهِ: अल्लाह की तरफ से।

  • نُورٌ: एक उजाला।

  • وَكِتَابٌ: और एक किताब।

  • مُّبِينٌ: स्पष्ट।


पूरी आयत का अर्थ (Full Translation in Hindi)

"हे ईहले-किताब! निश्चय ही तुम्हारे पास हमारा रसूल आ गया है, जो तुम्हारे लिए उस किताब की बहुत-सी बातों को स्पष्ट कर देता है, जिन्हें तुम छिपाया करते थे और बहुत-सी (बातों) से (माफ करके) हट जाता है। निश्चय ही तुम्हारे पास अल्लाह की ओर से एक उजाला (नूर) और एक स्पष्ट किताब (कुरआन) आ गई है।"


विस्तृत व्याख्या (Full Explanation in Hindi)

यह आयत पिछली आयतों में दी गई चेतावनियों के बाद एक सकारात्मक और दयालु पुकार है। यह अहले-किताब (यहूदियों और ईसाइयों) को अंतिम मार्गदर्शन स्वीकार करने का आह्वान करती है।

1. पैगंबर की भूमिका: एक प्रकटीकरण (Revealer of Truth)

  • "युबय्यिनु लकुम कसीरम मिम्मा कुंतुम तुख्फूना मिनल किताब" – "वह तुम्हारे लिए उस किताब की बहुत-सी बातों को स्पष्ट कर देता है, जिन्हें तुम छिपाया करते थे।"

  • यहाँ दो बातों की ओर इशारा है:

    • जानबूझकर छिपाना: अहले-किताब अपनी किताबों (तौरात और इंजील) में से पैगंबर मुहम्मद (सल्ल.) के आगमन की भविष्यवाणियों और कुछ धार्मिक आदेशों को जनता से छिपाते थे, ताकि उनकी धार्मिक नेतागिरी और दुनियावी फायदे बने रहें।

    • सत्य का प्रकटीकरण: पैगंबर मुहम्मद (सल्ल.) और कुरआन के माध्यम से अल्लाह ने उन छुपाई गई सच्चाइयों को दुनिया के सामने खोल दिया। उदाहरण के लिए, कुरआन ने स्पष्ट किया कि हज़रत ईसा अल्लाह के पैगंबर थे, न कि उसका पुत्र।

2. पैगंबर की भूमिका: एक क्षमाशील (One who Overlooks)

  • "व यअफू अन कसीर" – "और बहुत-सी (बातों) से (माफ करके) हट जाता है।"

  • यह अल्लाह और उसके पैगंबर की दया और उदारता को दर्शाता है। इसका अर्थ यह है कि पैगंबर उनकी पिछली गलतियों, विरोध और षड्यंत्रों को अनदेखा करते हुए, उन्हें एक नई शुरुआत का मौका दे रहे हैं। वह उन सभी पिछली बातों को माफ करके सिर्फ मुख्य सत्य (तौहीद) को स्वीकार करने पर जोर दे रहे हैं।

3. कुरआन की पहचान: प्रकाश और स्पष्ट किताब

  • "कद जाआकुम मिनल्लाही नूरुव व किताबुम मुबीन" – "निश्चय ही तुम्हारे पास अल्लाह की ओर से एक उजाला और एक स्पष्ट किताब आ गई है।"

  • यह कुरआन की दो महान विशेषताएँ बताता है:

    • नूर (प्रकाश): कुरआन अंधकार में उजाला है। यह अज्ञानता, संदेह और गुमराही के अंधकार को दूर करने वाला है।

    • किताबुम मुबीन (स्पष्ट किताब): कुरआन की शिक्षाएँ स्पष्ट और सुबूतों पर आधारित हैं। इसमें कोई अस्पष्टता या विरोधाभास नहीं है। यह हर उस चीज़ को साफ-साफ बता देती है जो मनुष्य के लिए उसके दुनियावी और आखिरती जीवन के लिए ज़रूरी है।


सीख और शिक्षा (Lesson and Moral)

  1. सत्य छिपाने का पाप: धार्मिक ज्ञान को छिपाना या तोड़-मरोड़कर पेश करना एक बहुत बड़ा पाप है, क्योंकि इससे लोग गुमराही में पड़ जाते हैं।

  2. इस्लाम का उदार स्वभाव: इस्लाम का आह्वान दंड या भय का नहीं, बल्कि प्रकाश और स्पष्टता का आह्वान है। यह पिछली गलतियों को माफ करके एक नई शुरुआत का अवसर देता है।

  3. कुरआन की श्रेष्ठता: कुरआन अल्लाह का अंतिम और संपूर्ण मार्गदर्शन है, जो पिछली किताबों में छुपी हुई सच्चाइयों को स्पष्ट कर देता है।

  4. जिम्मेदारी: जब सत्य स्पष्ट रूप से आ जाए, तो उसे स्वीकार न करने की कोई गुंजाइश नहीं रह जाती। अब चुनाव की जिम्मेदारी स्वयं व्यक्ति पर है।


प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevancy: Past, Contemporary Present and Future)

1. अतीत में प्रासंगिकता (Relevancy in the Past):

  • अहले-किताब के लिए अंतिम पुकार: यह आयत पैगंबर मुहम्मद (सल्ल.) के समय के यहूदियों और ईसाइयों के लिए एक सीधा और अंतिम संदेश थी। यह उन्हें उनकी किताबों में छुपाई गई भविष्यवाणियों (जैसे पैगंबर मुहम्मद के आगमन) का सामना कराती थी और उन्हें इस्लाम कबूल करने का आमंत्रण देती थी।

  • सत्य का प्रमाण: यह मुसलमानों के लिए एक तर्क के रूप में काम करती थी कि पैगंबर मुहम्मद (सल्ल.) का आगमन पिछली किताबों में भी बताया गया था, भले ही उसे छिपाया गया हो।

2. वर्तमान समय में प्रासंगिकता (Relevancy in the Contemporary Present):

  • अंतर-धार्मिक संवाद का आधार: आज, यह आयत मुसलमानों और अहले-किताब (ईसाइयों और यहूदियों) के बीच संवाद का एक मजबूत आधार प्रदान करती है। मुसलमान इस आयत के आधार पर कह सकते हैं कि हम आपकी किताबों का सम्मान करते हैं और मानते हैं कि उनमें सत्य था, लेकिन कुरआन उस सत्य को और अधिक स्पष्ट और पूर्ण रूप में लेकर आया है।

  • धार्मिक पाखंड का पर्दाफाश: यह आयत आज भी उन धार्मिक नेताओं के लिए एक चुनौती है जो धार्मिक शिक्षाओं को तोड़-मरोड़कर या छिपाकर लोगों को गुमराह करते हैं।

  • आध्यात्मिक खोज में मार्गदर्शन: आज के इंसान, जो भ्रम और अर्थहीनता में भटक रहा है, के लिए कुरआन "नूर" (प्रकाश) और "किताबुम मुबीन" (स्पष्ट किताब) का दावा करता है। यह उसे जीवन के मूल प्रश्नों का स्पष्ट उत्तर देती है।

3. भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy in the Future):

  • सत्य का स्थायी स्रोत: भविष्य की एक जटिल और भ्रमित दुनिया में, कुरआन "नूर" (प्रकाश) के रूप में और भी अधिक प्रासंगिक हो जाएगा। जब नैतिकता के पारंपरिक ढाँचे टूटेंगे, तो कुरआन का स्पष्ट और अटल मार्गदर्शन ही एकमात्र आश्रय स्थल होगा।

  • धर्म का शुद्ध रूप: भविष्य में, जब लोग धर्म के विकृत और संशोधित रूपों से ऊब जाएंगे, यह आयत उन्हें धर्म के मूल, शुद्ध और स्पष्ट रूप – इस्लाम – की ओर आकर्षित करेगी।

  • मानवता के लिए संदेश: यह आयत हमेशा मानवता को यह संदेश देती रहेगी कि अल्लाह ने उस पर कोई कसर नहीं छोड़ी है। उसने स्पष्ट मार्गदर्शन भेज दिया है। अब मनुष्य का कर्तव्य है कि वह अहंकार और पूर्वाग्रह को छोड़कर उसे स्वीकार करे।

निष्कर्ष: यह आयत अहले-किताब के लिए एक दयालु लेकिन दृढ़ पुकार है। यह उनके सामने सत्य को प्रकट करती है, उनकी पिछली गलतियों को माफ करती है, और उन्हें अल्लाह के अंतिम प्रकाश (कुरआन) की ओर आमंत्रित करती है। यह इस्लाम के सार को दर्शाती है – जो स्पष्टता, दया और सार्वभौमिक मार्गदर्शन का धर्म है। यह संदेश हर युग में उतना ही शक्तिशाली और प्रासंगिक है।