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कुरआन की आयत 5:16 की पूर्ण व्याख्या

 

﴿يَهْدِي بِهِ اللَّهُ مَنِ اتَّبَعَ رِضْوَانَهُ سُبُلَ السَّلَامِ وَيُخْرِجُهُم مِّنَ الظُّلُمَاتِ إِلَى النُّورِ بِإِذْنِهِ وَيَهْدِيهِمْ إِلَىٰ صِرَاطٍ مُّسْتَقِيمٍ﴾

(सूरह अल-माइदा, आयत नंबर 16)


अरबी शब्दों के अर्थ (Word-by-Word Meaning)

  • يَهْدِي: मार्गदर्शन करता है।

  • بِهِ: इसके द्वारा (कुरआन द्वारा)।

  • اللَّهُ: अल्लाह।

  • مَنِ: जिसने।

  • اتَّبَعَ: पालन किया।

  • رِضْوَانَهُ: उसकी प्रसन्नता (रज़ा) का।

  • سُبُلَ: रास्तों।

  • السَّلَامِ: शांति के।

  • وَيُخْرِجُهُم: और निकालता है उन्हें।

  • مِّنَ: से।

  • الظُّلُمَاتِ: अंधेरों।

  • إِلَى: की ओर।

  • النُّورِ: उजाले।

  • بِإِذْنِهِ: अपने आदेश (इजाज़त) से।

  • وَيَهْدِيهِمْ: और मार्गदर्शन करता है उन्हें।

  • إِلَىٰ: की ओर।

  • صِرَاطٍ: रास्ते।

  • مُّسْتَقِيمٍ: सीधे।


पूरी आयत का अर्थ (Full Translation in Hindi)

"अल्लाह इस (कुरआन) के द्वारा उस व्यक्ति का मार्गदर्शन करता है, जो उसकी प्रसन्नता का अनुसरण करता है, शांति के मार्गों की ओर। और वह उन्हें अंधकारों से निकालकर प्रकाश की ओर ले जाता है, अपने आदेश से, और उन्हें सीधे मार्ग की ओर मार्गदर्शन करता है।"


विस्तृत व्याख्या (Full Explanation in Hindi)

यह आयत पिछली आयत (5:15) में वर्णित "नूर" (प्रकाश) और "किताबुम मुबीन" (स्पष्ट किताब) के प्रभाव और उद्देश्य का वर्णन करती है। यह बताती है कि कुरआन किसे और किस लक्ष्य की ओर मार्गदर्शन करता है।

1. मार्गदर्शन की शर्त: "मनित्तबा रिज़्वानहु"

  • अल्लाह का मार्गदर्शन स्वचालित या जबरदस्ती नहीं है। यह एक शर्त के साथ आता है: "जिसने उसकी प्रसन्नता (रज़ा) का अनुसरण किया।"

  • इसका अर्थ है कि व्यक्ति का मुख्य उद्देश्य और इरादा केवल और केवल अल्लाह की खुशी हासिल करना होना चाहिए। उसकी नीयत शुद्ध होनी चाहिए। वह दुनियावी लाभ, प्रशंसा, या किसी और चीज के लिए नहीं, बल्कि सिर्फ अल्लाह के लिए अमल करे।

2. मार्गदर्शन का लक्ष्य: "सुबुलस्सलाम"

  • कुरआन मनुष्य को "शांति के मार्गों" की ओर ले जाता है। "सलाम" शब्द बहुत व्यापक है। इसके तीन मुख्य पहलू हैं:

    • अल्लाह के साथ शांति: अल्लाह की आज्ञा मानकर और उस पर विश्वास करके, इंसान के दिल को अल्लाह के साथ शांति और सुरक्षा का एहसास होता है।

    • स्वयं के साथ शांति: एक ईमानदार और नेक जीवन व्यतीत करने से इंसान को आंतरिक शांति, संतुष्टि और तसल्ली मिलती है।

    • समाज के साथ शांति: कुरआन के नियम (न्याय, दया, ईमानदारी) का पालन करने से पूरे समाज में शांति, सद्भाव और सुरक्षा कायम होती है।

3. मार्गदर्शन की प्रक्रिया: "युख़रीजुहुम मिनज़ ज़ुलुमाति इलन्नूर"

  • यह मार्गदर्शन की प्रक्रिया को दर्शाता है। यह एक परिवर्तन है:

    • "अंधकारों से": यह बहुवचन में है, जो दर्शाता है कि गुमराही और पाप कई प्रकार के होते हैं - अज्ञानता का अंधकार, शक का अंधकार, पाप का अंधकार, निराशा का अंधकार।

    • "प्रकाश की ओर": यह एकवचन में है, जो दर्शाता है कि सत्य और मार्गदर्शन एक ही है - अल्लाह का मार्ग।

4. मार्गदर्शन का स्रोत और अंतिम लक्ष्य:

  • "बि-इज़निही" (अपने आदेश से): यह याद दिलाता है कि मार्गदर्शन का स्रोत केवल अल्लाह है। वही इसका अधिकार रखता है।

  • "सिरातिम मुस्तक़ीम" (सीधे मार्ग की ओर): यह मार्गदर्शन का अंतिम लक्ष्य है - इस्लाम का स्पष्ट और सीधा मार्ग, जो सीधे जन्नत की ओर ले जाता है।


सीख और शिक्षा (Lesson and Moral)

  1. इरादे की शुद्धता: सब कुछ इरादे (नीयत) पर निर्भर करता है। अल्लाह की रज़ा हासिल करने का इरादा ही सच्चे मार्गदर्शन की कुंजी है।

  2. शांति का स्रोत: सच्ची शांति (दिल की, दिमाग की और समाज की) केवल अल्लाह के मार्गदर्शन का पालन करने से ही मिल सकती है।

  3. कुरआन एक मार्गदर्शक: कुरआन केवल पढ़ने की किताब नहीं है; यह एक सक्रिय मार्गदर्शक है जो जीवन के हर पहलू में हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है।

  4. अल्लाह की दया: मार्गदर्शन अल्लाह की सबसे बड़ी दया है। इसके लिए हमें हमेशा अल्लाह का शुक्र अदा करते रहना चाहिए।


प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevancy: Past, Contemporary Present and Future)

1. अतीत में प्रासंगिकता (Relevancy in the Past):

  • अहले-किताब के लिए आमंत्रण: यह आयत पैगंबर (सल्ल.) के समय के यहूदियों और ईसाइयों को आमंत्रित करती थी कि वे अपने धर्मों में फैले झूठ और अंधकार (जैसे त्रित्व का सिद्धांत) को छोड़कर कुरआन के प्रकाश और सीधे मार्ग की ओर आ जाएँ।

  • नए मुसलमानों के लिए प्रोत्साहन: यह उन नए मुसलमानों के लिए एक सांत्वना और प्रोत्साहन थी जिन्होंने इस्लाम स्वीकार करके अज्ञानता के अंधकार को छोड़ दिया था।

2. वर्तमान समय में प्रासंगिकता (Relevancy in the Contemporary Present):

  • आध्यात्मिक शून्यता का समाधान: आज का मनुष्य भौतिकवाद और अर्थहीनता के अंधकार में भटक रहा है। तनाव, अवसाद और चिंता आम बीमारियाँ हैं। यह आयत घोषणा करती है कि कुरआन ही वह मार्गदर्शन है जो "अंधकार से प्रकाश की ओर" ले जाकर उसे आंतरिक "शांति" प्रदान कर सकता है।

  • कुरआन की ओर वापसी का आह्वान: यह आयत आज के मुसलमानों को याद दिलाती है कि यदि वे व्यक्तिगत या सामाजिक समस्याओं (अशांति, भ्रष्टाचार, झूठ) के अंधकार में फंसे हैं, तो उनका समाधान कुरआन के "सीधे मार्ग" पर वापस लौटने में है।

  • जीवन का लक्ष्य: यह आयत हर इंसान से एक सवाल करती है: क्या आपका जीवन का लक्ष्य अल्लाह की "रज़ा" (प्रसन्नता) हासिल करना है, या फिर दुनिया की किसी और चीज का?

3. भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy in the Future):

  • तकनीकी अंधकार में प्रकाश: भविष्य की तकनीकी रूप से उन्नत लेकिन आध्यात्मिक रूप से खोखली दुनिया में, कुरआन "नूर" (प्रकाश) के रूप में और भी चमकेगा। जब Artificial Intelligence और Virtual Reality मनुष्य को वास्तविकता से और दूर ले जाएंगे, कुरआन उसे "सिराते मुस्तक़ीम" (सीधे मार्ग) पर लौटाएगा।

  • शांति का एकमात्र सूत्र: भविष्य की वैश्विक चुनौतियाँ (जलवायु परिवर्तन, संसाधनों की कमी) मनुष्यों के बीच संघर्ष को बढ़ा सकती हैं। इस आयत का "सुबुलस्सलाम" (शांति के मार्ग) का सिद्धांत ही एकमात्र ऐसा मार्गदर्शन प्रदान करेगा जो टिकाऊ वैश्विक शांति स्थापित कर सकता है।

  • एक स्थायी आशा: चाहे दुनिया कितनी भी बदल जाए, यह आयत मानवता को यह आशा देती रहेगी कि अंधकार से निकलने का रास्ता मौजूद है। यह रास्ता अल्लाह की प्रसन्नता का अनुसरण करते हुए, उसके भेजे हुए प्रकाश (कुरआन) पर चलना है।

निष्कर्ष: यह आयत कुरआन के मार्गदर्शन का सार प्रस्तुत करती है। यह एक दिव्य रोडमैप है जो बताता है कि मार्गदर्शन किसे मिलेगा (अल्लाह की रज़ा चाहने वालों को), वह कहाँ ले जाएगा (शांति के रास्तों पर), और उसकी यात्रा कैसी होगी (अंधकार से प्रकाश की ओर)। यह संदेश न केवल अतीत में बल्कि वर्तमान और भविष्य की हर मानवीय आवश्यकता का उत्तर है।