﴿يَا قَوْمِ ادْخُلُوا الْأَرْضَ الْمُقَدَّسَةَ الَّتِي كَتَبَ اللَّهُ لَكُمْ وَلَا تَرْتَدُّوا عَلَىٰ أَدْبَارِكُمْ فَتَنقَلِبُوا خَاسِرِينَ﴾
(सूरह अल-माइदा, आयत नंबर 21)
अरबी शब्दों के अर्थ (Word-by-Word Meaning)
يَا قَوْمِ: हे मेरी कौम।
ادْخُلُوا: प्रवेश करो।
الْأَرْضَ: भूमि।
الْمُقَدَّسَةَ: पवित्र।
الَّتِي: जो।
كَتَبَ: लिख दिया/नियत कर दिया।
اللَّهُ: अल्लाह ने।
لَكُمْ: तुम्हारे लिए।
وَلَا: और न।
تَرْتَدُّوا: पीछे लौट जाओ।
عَلَىٰ: पर।
أَدْبَارِكُمْ: अपनी एड़ियों के (पीछे की ओर)।
فَتَنقَلِبُوا: तो तुम बदल जाओगे।
خَاسِرِينَ: घाटा उठाने वाले।
पूरी आयत का अर्थ (Full Translation in Hindi)
"(मूसा ने कहा) हे मेरी कौम! उस पवित्र भूमि में प्रवेश करो, जिसे अल्लाह ने तुम्हारे लिए लिख दिया है (नियत कर दी है) और अपनी एड़ियों के बल पीछे न मुड़ो, नहीं तो तुम घाटा उठाने वाले बन जाओगे।"
विस्तृत व्याख्या (Full Explanation in Hindi)
यह आयत हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम) के उस ऐतिहासिक आदेश को बयान करती है जब वह बनी इस्राईल को मिस्र से निकालकर 'अर्द-ए-मुक़द्दस' (पवित्र भूमि - फिलिस्तीन) की ओर ले जा रहे थे। यह आयत एक निर्णायक क्षण को दर्शाती है।
1. "अल-अर्द़ अल-मुक़द्दस" (पवित्र भूमि):
यह भूमि फिलिस्तीन की है, विशेष रूप से वह क्षेत्र जहाँ बैतुल मुक़द्दस (येरुशलम) स्थित है।
इसे 'पवित्र' इसलिए कहा गया क्योंकि अल्लाह ने इसे पैगंबरों की धरती बनाया और यहाँ कई पैगंबर रहे और उन पर वह्य (ईश्वरीय प्रकाशना) उतरी।
2. "कतबल्लाहु लकुम" (अल्लाह ने तुम्हारे लिए लिख दिया है):
यह एक गहन अर्थ रखता है। अल्लाह ने अपनी दिव्य योजना में यह निर्धारित कर दिया था कि यह भूमि बनी इस्राईल का केंद्र बनेगी, बशर्ते वे अल्लाह के आदेशों का पालन करें और उस पर ईमान लाएँ।
यह केवल एक भौगोलिक भूमि का टुकड़ा नहीं, बल्कि एक "दैवीय नियति" (Divine Decree) थी।
3. चेतावनी: "व ला तर्तद्दू अला अदबारिकुम" (और अपनी एड़ियों के बल पीछे न मुड़ो):
यह एक मुहावरा है जिसका अर्थ है "पीछे हटना, भागना, या आज्ञा का उल्लंघन करना।"
हज़रत मूसा ने उन्हें चेतावनी दी कि अल्लाह के इस स्पष्ट आदेश के बाद यदि तुमने पीछे हटने का प्रयास किया, तो यह सीधे-सीधे अवज्ञा होगी।
4. परिणाम: "फतनक़लीबू खासिरीन" (तो तुम घाटा उठाने वाले बन जाओगे):
यहाँ 'घाटा' सिर्फ दुनियावी हार नहीं है। यह एक "पूर्ण और आध्यात्मिक घाटा" है।
इस घाटे में शामिल है:
अल्लाह की नाराज़गी।
दुनिया में अपमान और बेकार की भटकन।
आखिरत में सजा।
सीख और शिक्षा (Lesson and Moral)
अल्लाह पर भरोसा (तवक्कुल): अल्लाह ने जो कुछ नियत किया है, उसे पूरा करने के लिए हमें आगे बढ़ना चाहिए, भले ही रास्ते में डर और चुनौतियाँ हों।
आज्ञापालन में दृढ़ता: एक बार अल्लाह का मार्ग स्पष्ट हो जाने के बाद, उस पर डटे रहना चाहिए। पीछे हटना विफलता और हानि की ओर ले जाता है।
दैवीय योजना में विश्वास: अल्लाह की योजना हमेशा हमारे लिए बेहतर होती है। हमें उस पर विश्वास करके आगे बढ़ना चाहिए।
नैतिक साहस: शारीरिक रूप से मजबूत होना काफी नहीं है। अल्लाह के आदेशों का पालन करने के लिए नैतिक साहस की आवश्यकता होती है।
प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevancy: Past, Contemporary Present and Future)
1. अतीत में प्रासंगिकता (Relevancy in the Past):
बनी इस्राईल की परीक्षा: यह आयत बनी इस्राईल के लिए एक बड़ी परीक्षा का क्षण था। दुर्भाग्य से, उन्होंने अगली आयत में वर्णित कायरता दिखाई और पीछे हट गए, जिसके भयानक परिणाम हुए।
मुसलमानों के लिए सबक: यह मुसलमानों को सिखाती थी कि अल्लाह के आदेश के सामने कायरता और अवज्ञा कितनी महंगी पड़ सकती है।
2. वर्तमान समय में प्रासंगिकता (Relevancy in the Contemporary Present):
व्यक्तिगत जीवन में संघर्ष: आज, हर मुसलमान का जीवन एक 'अर्द-ए-मुक़द्दस' (पवित्र लक्ष्य) की ओर यात्रा है - जैसे ईमान को मजबूत करना, नेक जीवन बिताना, बुराइयों से लड़ना। शैतान और हमारी नफ्स (इच्छाएँ) हमें डराते हैं और कहते हैं कि "यह बहुत मुश्किल है, पीछे हट जाओ।" यह आयत हमें उसी चेतावनी को दोहराती है: अल्लाह ने तुम्हारे लिए जन्नत लिख दी है, आगे बढ़ो, पीछे मत हटो।
सामूहिक संघर्ष: फिलिस्तीन का वर्तमान संघर्ष इस आयत का एक शक्तिशाली और मार्मिक संदर्भ बन गया है। यह उसी 'पवित्र भूमि' का हिस्सा है। यह आयत मुसलमानों को याद दिलाती है कि न्याय और अल्लाह के मार्ग पर डटे रहने का साहस ही सच्ची सफलता है।
धार्मिक पहचान: एक धर्मनिरपेक्ष दुनिया में, मुसलमानों को अक्सर अपने धर्म के अनुसार जीने में डर लगता है। यह आयत हिम्मत देती है कि अल्लाह के बताए मार्ग पर चलते रहो, समझौता मत करो।
3. भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy in the Future):
चुनौतियों का सामना: भविष्य की चुनौतियाँ (नैतिक, तकनीकी, सामाजिक) और भी जटिल होंगी। यह आयत हर युग के मुसलमान के लिए एक मार्गदर्शक सिद्धांत देगी: जब अल्लाह का मार्ग स्पष्ट हो जाए, तो उस पर दृढ़ता से चलो, भले ही पूरी दुनिया विरोध में क्यों न खड़ी हो जाए।
एक स्थायी प्रेरणा: "पीछे मत हटो" का यह संदेश हर उस इंसान के लिए एक स्थायी प्रेरणा है जो सत्य और न्याय के मार्ग पर चलना चाहता है। यह हार मानने की मानसिकता को खत्म करता है।
आध्यात्मिक यात्रा का प्रतीक: यह आयत हमेशा याद दिलाती रहेगी कि मानव जीवन एक आध्यात्मिक यात्रा है, जिसका लक्ष्य 'अर्द-ए-मुक़द्दस' (अल्लाह की प्रसन्नता और जन्नत) है। इस यात्रा में हमें कभी पीछे नहीं हटना चाहिए।
निष्कर्ष: यह आयत केवल एक ऐतिहासिक घटना का बयान नहीं है। यह हर इंसान के लिए एक शाश्वत जीवन-सूत्र है। यह हमें सिखाती है कि अल्लाह पर भरोसा रखो, उसके आदेश पर आगे बढ़ो, और कभी पीछे मत हटो। पीछे हटना हार है, और आगे बढ़ना - भले ही उसमें कठिनाइयाँ हों - ही सच्ची सफलता और जीत है। यह संदेश किसी भी युग में कभी पुराना नहीं होगा।