﴿قَالُوا يَا مُوسَىٰ إِنَّ فِيهَا قَوْمًا جَبَّارِينَ وَإِنَّا لَن نَّدْخُلَهَا حَتَّىٰ يَخْرُجُوا مِنْهَا فَإِن يَخْرُجُوا مِنْهَا فَإِنَّا دَاخِلُونَ﴾
(सूरह अल-माइदा, आयत नंबर 22)
अरबी शब्दों के अर्थ (Word-by-Word Meaning)
قَالُوا: उन्होंने कहा।
يَا مُوسَىٰ: हे मूसा!
إِنَّ: निश्चय ही।
فِيهَا: उसमें (उस भूमि में)।
قَوْمًا: एक कौम।
جَبَّارِينَ: जब्बार (बहुत शक्तिशाली/अत्याचारी)।
وَإِنَّا: और निश्चय ही हम।
لَن نَّدْخُلَهَا: कदापि प्रवेश नहीं करेंगे उसमें।
حَتَّىٰ: जब तक कि।
يَخْرُجُوا: वे निकल जाएँ।
مِنْهَا: उससे (उस भूमि से)।
فَإِن: तो यदि।
يَخْرُجُوا: वे निकल जाएँ।
مِنْهَا: उससे।
فَإِنَّا: तो निश्चय ही हम।
دَاخِلُونَ: प्रवेश करने वाले हैं।
पूरी आयत का अर्थ (Full Translation in Hindi)
"उन (बनी इस्राईल) ने कहा: 'हे मूसा! निश्चय ही उस (भूमि) में बहुत शक्तिशाली (जब्बार) लोग रहते हैं और हम तब तक कदापि उसमें प्रवेश नहीं करेंगे, जब तक कि वे उसमें से निकल न जाएँ। यदि वे उसमें से निकल जाएँ, तो निश्चय ही हम प्रवेश करने वाले हैं।'"
विस्तृत व्याख्या (Full Explanation in Hindi)
यह आयत पिछली आयत में हज़रत मूसा के आदेश के प्रति बनी इस्राईल की शर्मनाक और अविश्वसनीय प्रतिक्रिया को दर्शाती है। यह मनोवैज्ञानिक कायरता और अल्लाह के वादे में कमजोर ईमान का चित्रण है।
1. बनी इस्राईल का डर: "इन्ना फीहा कौमन जब्बारीन"
"जब्बार" शब्द बहुत ही शक्तिशाली है। इसका अर्थ है अत्याचारी, ताकतवर, घमंडी और बहुत ही मजबूत कद-काठी वाले लोग।
बनी इस्राईल ने उस कौम (जो कि अमालिका कबीला था) की शारीरिक शक्ति और सैन्य ताकत को इतना बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया कि वह खुद ही डर गए। उनकी नजर में दुश्मन इतना बड़ा हो गया कि अल्लाह की मदद और वादा छोटा पड़ गया।
2. स्पष्ट इनकार: "व इन्ना लन नदखुलहा"
उन्होंने हज़रत मूसा के आदेश का सीधा और स्पष्ट रूप से इनकार कर दिया। "लन" शब्द अरबी में बहुत दृढ़ इनकार को दर्शाता है, जैसे कह रहे हों "हम किसी हालत में अंदर नहीं जाएँगे।"
यह अल्लाह के आदेश और उसके पैगंबर के निर्देश के खिलाफ एक सामूहिक अवज्ञा थी।
3. एक शर्तिया बहाना: "हत्ता यखरुजू मिन्हा"
उन्होंने अपनी कायरता को एक "शर्त" के पीछे छिपाया। उन्होंने कहा कि हम तभी अंदर जाएँगे जब दुश्मन खुद बाहर निकल जाएगा।
यह एक हास्यास्पद और अव्यावहारिक शर्त थी, क्योंकि कोई भी शक्तिशाली दुश्मन अपनी भूमि अपने आप छोड़कर नहीं चला जाता। यह उनकी मानसिक हार और जिम्मेदारी से बचने का प्रयास था।
4. खोखला आत्मविश्वास: "फइन यखरुजू मिन्हा फइन्ना दाखिलून"
अंत में उन्होंने एक खोखला आत्मविश्वास दिखाया। यह कहना कि "अगर वे निकल गए तो हम अंदर जाएँगे" बिल्कुल बेमानी था। यह उस साहसिकता का झूठा दिखावा था जो उनमें था ही नहीं।
इस वाक्य से उनकी कायरता और मनोबल की कमी पूरी तरह उजागर हो गई।
सीख और शिक्षा (Lesson and Moral)
डर पर विश्वास की जीत: जब इंसान अपनी समस्या (दुश्मन) को बड़ा और अल्लाह की मदद को छोटा देखने लगता है, तो वह हार जाता है, भले ही वह शारीरिक रूप से मजबूत क्यों न हो।
अल्लाह के वादे पर विश्वास: अल्लाह का वादा सच्चा है। यदि वह किसी चीज का वादा करता है, तो उसे पूरा करने की शक्ति भी रखता है, भले ही रास्ते में कितनी भी बड़ी बाधाएँ क्यों न हों।
कायरता धर्म के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा: शारीरिक कमजोरी से ज्यादा खतरनाक मनोवैज्ञानिक कायरता और हिम्मत की कमी है।
बहानेबाजी का अंत: अल्लाह के आदेश के सामने कोई बहाना स्वीकार्य नहीं है। बहाने बनाना ईमान की कमजोरी का संकेत है।
प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevancy: Past, Contemporary Present and Future)
1. अतीत में प्रासंगिकता (Relevancy in the Past):
बनी इस्राईल की ऐतिहासिक विफलता: यह आयत बनी इस्राईल की उस ऐतिहासिक विफलता को चिह्नित करती है जब उन्होंने अल्लाह के स्पष्ट आदेश के बावजूद पवित्र भूमि में प्रवेश करने से इनकार कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें 40 साल तक बेकार की भटकन भुगतनी पड़ी।
मुसलमानों के लिए चेतावनी: यह मुसलमानों के लिए एक चेतावनी थी कि अल्लाह के मार्ग में कायरता और अवज्ञा का यही परिणाम होता है।
2. वर्तमान समय में प्रासंगिकता (Relevancy in the Contemporary Present):
व्यक्तिगत संघर्ष में कायरता: आज, हर मुसलमान अपने जीवन में "जब्बार" (बड़ी चुनौतियों) का सामना करता है - जैसे बुराइयों का विरोध करना, ईमान की रक्षा करना, इस्लामी पहचान बनाए रखना। कई बार हम बहाने बनाते हैं: "समाज बहुत भ्रष्ट है," "मैं अकेला हूँ," "यह बहुत मुश्किल है।" यह आयत हमें याद दिलाती है कि यह वही कायरता है जिसने बनी इस्राईल को विफल कर दिया।
सामूहिक कायरता: मुस्लिम समुदाय आज कई मोर्चों पर "जब्बार" शक्तियों (अत्याचारी शासन, आर्थिक प्रतिबंध, मीडिया का हमला) का सामना कर रहा है। कई बार हम हार मान लेते हैं और कहते हैं कि "जब तक हालात नहीं बदलते, हम कुछ नहीं कर सकते।" यह आयत इसी मानसिकता की आलोचना करती है।
फिलिस्तीन का संदर्भ: आज फिलिस्तीन में जो कुछ हो रहा है, वह इस आयत का एक जीवंत और दर्दनाक संदर्भ है। यह आयत मुसलमानों से पूछती है कि क्या हम उन "जब्बारीन" के सामने घुटने टेक देंगे या अल्लाह पर भरोसा करके न्याय के लिए खड़े होंगे?
3. भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy in the Future):
भविष्य की चुनौतियों का सामना: भविष्य में मुसलमानों को और भी बड़े "जब्बार" (AI का दुरुपयोग, नैतिकता का पतन, ग्लोबलाइजेशन का दबाव) का सामना करना पड़ेगा। यह आयत भविष्य के मुसलमानों को सिखाएगी कि अल्लाह के वादे और मार्गदर्शन पर भरोसा करके ही इन चुनौतियों का सामना किया जा सकता है, न कि कायरता और पलायन से।
एक स्थायी मनोवैज्ञानिक सिद्धांत: "डर → बहाने → इनकार → विफलता" का यह चक्र हर युग में मानव व्यवहार का हिस्सा रहा है। यह आयत हमेशा मनुष्य को इस चक्र को तोड़ने और "विश्वास → साहस → आज्ञापालन → सफलता" के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देगी।
ईमान की असली परीक्षा: यह आयत यह सिद्धांत स्थापित करती है कि ईमान की असली परीक्षा तब होती है जब इंसान को अल्लाह के आदेश और दुनियावी डर के बीच चयन करना पड़ता है। यह परीक्षा क़यामत तक जारी रहेगी।
निष्कर्ष: यह आयत मानवीय कमजोरी का एक शक्तिशाली चित्रण है। यह हमें सिखाती है कि अल्लाह के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा बाहरी दुश्मन नहीं, बल्कि हमारे अपने अंदर का डर और अविश्वास है। बनी इस्राईल का यह उदाहरण हमें चेतावनी देता है कि अल्लाह के वादे और आदेश के सामने कायरता और बहानेबाजी का अंत बहुत बुरा होता है। यह सबक हर युग के हर इंसान और समुदाय के लिए समान रूप से प्रासंगिक है।