﴿قَالَ رَجُلَانِ مِنَ الَّذِينَ يَخَافُونَ أَنْعَمَ اللَّهُ عَلَيْهِمَا ادْخُلُوا عَلَيْهِمُ الْبَابَ فَإِذَا دَخَلْتُمُوهُ فَإِنَّكُمْ غَالِبُونَ ۚ وَعَلَى اللَّهِ فَتَوَكَّلُوا إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ﴾
(सूरह अल-माइदा, आयत नंबर 23)
अरबी शब्दों के अर्थ (Word-by-Word Meaning)
قَالَ: कहा।
رَجُلَانِ: दो आदमियों ने।
مِنَ: में से।
الَّذِينَ: जो।
يَخَافُونَ: डरते थे।
أَنْعَمَ: एहसान किया।
اللَّهُ: अल्लाह ने।
عَلَيْهِمَا: उन दोनों पर।
ادْخُلُوا: प्रवेश करो।
عَلَيْهِمُ: उन पर (दुश्मन पर)।
الْبَابَ: दरवाज़े से।
فَإِذَا: तो जब।
دَخَلْتُمُوهُ: तुम प्रवेश कर लो उसे।
فَإِنَّكُمْ: तो निश्चय ही तुम।
غَالِبُونَ: विजयी होगे।
وَعَلَى اللَّهِ: और अल्लाह पर।
فَتَوَكَّلُوا: तो भरोसा करो।
إِن كُنتُم: यदि तुम हो।
مُّؤْمِنِينَ: ईमान वाले।
पूरी आयत का अर्थ (Full Translation in Hindi)
"उन लोगों में से दो आदमियों ने, जो (अल्लाह से) डरते थे और अल्लाह ने उन पर एहसान किया था, कहा: 'उन (दुश्मनों) पर दरवाज़े से प्रवेश करो। फिर जब तुम उसमें प्रवेश कर जाओगे, तो निश्चय ही तुम विजयी होगे। और अल्लाह पर भरोसा रखो, यदि तुम ईमान वाले हो।'"
विस्तृत व्याख्या (Full Explanation in Hindi)
यह आयत पिछली आयत में वर्णित बनी इस्राईल की कायरता के बीच आशा और साहस की एक किरण पेश करती है। यह दर्शाती है कि हर कौम में कुछ ऐसे विश्वासी लोग होते हैं जो अल्लाह पर पूरा भरोसा रखते हैं।
1. दो विशेष व्यक्ति: "रजुलानि मिनल्लजीना यखाफूना"
ये दो व्यक्ति थे हज़रत युशा बिन नून (जो हज़रत मूसा के उत्तराधिकारी बने) और हज़रत कालिब बिन युफन्ना।
इनकी विशेषताएँ:
"यखाफूना" (डरते थे): यहाँ डर, दुश्मन का नहीं, बल्कि अल्लाह का डर (तक्वा) था। वह अल्लाह की नाराजगी से डरते थे, इसलिए उसके आदेश का पालन करना चाहते थे।
"अनअमल्लाहु अलैहिमा" (अल्लाह ने उन पर एहसान किया): अल्लाह ने उन्हें दृढ़ विश्वास, साहस और सच्ची समझ की नेमत से सम्मानित किया था।
2. साहसिक आह्वान: "उदखुलू अलैहिमुल बाब"
उन्होंने पूरी कौम को एक स्पष्ट और सीधा निर्देश दिया: शहर के मुख्य दरवाजे से सीधे और बिना डरे प्रवेश करो।
यह एक सैन्य रणनीति भी थी और आस्था का प्रतीक भी। सीधे दरवाजे से प्रवेश करना दृढ़ संकल्प और छिपने या भागने से इनकार को दर्शाता है।
3. विश्वास और विजय का वादा: "फइज़ा दखलतुमूहु फइन्नकुम गालिबून"
उन्होंने केवल आदेश ही नहीं दिया, बल्कि विश्वास दिलाया कि "तुम विजयी होगे।"
यह वादा उनकी अपनी भविष्यवाणी नहीं थी, बल्कि अल्लाह के वादे पर उनके दृढ़ विश्वास की अभिव्यक्ति थी। उन्हें पूरा यकीन था कि जो अल्लाह ने वादा किया है, उसे वह पूरा करेगा।
4. सफलता की कुंजी: "व अलल्लाहि फतवक्कलू इन कुंतुम मु'मिनीन"
उन्होंने सफलता की एकमात्र शर्त बताई: "और अल्लाह पर भरोसा रखो।"
फिर उन्होंने एक चुनौतीपूर्ण प्रश्न किया: "यदि तुम सच्चे ईमान वाले हो।"
यह वाक्य बहुत गहरा है। इसका अर्थ है कि "तवक्कुल" (अल्लाह पर भरोसा) ईमान की असली पहचान और अनिवार्य अंग है। जिसका ईमान सच्चा है, वह अल्लाह पर भरोसा किए बिना नहीं रह सकता।
सीख और शिक्षा (Lesson and Moral)
अल्लाह पर भरोसा (तवक्कुल) ईमान का हिस्सा है: सच्चा ईमान केवल जुबान से कलमा पढ़ने का नाम नहीं है, बल्कि मुश्किल समय में अल्लाह पर पूरा भरोसा करना है।
अल्पसंख्यक होकर भी सत्य बोलना: सही बात कहने के लिए बहुमत का इंतजार नहीं करना चाहिए। दो लोग भी पूरी कौम को बदल सकते हैं।
अल्लाह का डर सबसे बड़ा डर: जिसे अल्लाह का डर होता है, उसे किसी और चीज का डर नहीं होता।
नेक लोगों की पहचान: अल्लाह हमेशा नेक और सच्चे लोगों को उठाता है और उनके माध्यम से समाज को मार्गदर्शन देता है।
प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevancy: Past, Contemporary Present and Future)
1. अतीत में प्रासंगिकता (Relevancy in the Past):
बनी इस्राईल के लिए आखिरी मौका: यह आयत बनी इस्राईल को दिया गया अंतिम मौका था। दुर्भाग्य से, उन्होंने इन दोनों की बात नहीं मानी और उन पर अल्लाह का फैसला आ गया।
मुसलमानों के लिए प्रेरणा: यह मुसलमानों को सिखाती थी कि अल्लाह पर भरोसा रखने वाले थोड़े से लोग भी बहुमत के डर और कायरता के खिलाफ खड़े हो सकते हैं।
2. वर्तमान समय में प्रासंगिकता (Relevancy in the Contemporary Present):
व्यक्तिगत संघर्ष में तवक्कुल: आज, हर मुसलमान अपने जीवन में किसी न किसी "जब्बार" (बड़ी मुसीबत) का सामना कर रहा है - बीमारी, आर्थिक तंगी, सामाजिक दबाव। यह आयत हमें याद दिलाती है कि हल केवल "उदखुलूल बाब" (सीधे सामना करने) और "अलल्लाहि तवक्कुल" (अल्लाह पर भरोसा) में है।
सामूहिक संघर्ष में नेतृत्व: मुस्लिम समुदाय आज जिन चुनौतियों (अत्याचार, इस्लामोफोबिया) से जूझ रहा है, उसमें इस आयत का संदेश और भी प्रासंगिक है। हमें ऐसे ही "रजुलान" (नेताओं और आम लोगों) की जरूरत है जो डर का सामना करने और अल्लाह पर भरोसा करने का साहस दिखाएँ, न कि हार मान लें।
फिलिस्तीन का प्रतीक: फिलिस्तीन का संघर्ष इस आयत का एक जीवंत उदाहरण बन गया है। एक छोटा सा समूह अपने ऊपर हो रहे अत्याचार के खिलाफ "अलल्लाहि तवक्कुल" (अल्लाह पर भरोसा) करके डटा हुआ है।
3. भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy in the Future):
भविष्य की चुनौतियों का सामना: भविष्य में मुसलमानों को और भी बड़े "जब्बार" (तकनीकी हमले, नैतिक पतन, पहचान का संकट) का सामना करना पड़ेगा। यह आयत भविष्य के मुसलमानों को सिखाएगी कि इन सभी चुनौतियों से लड़ने की ताकत "तवक्कुल" से आती है।
एक स्थायी मनोवैज्ञानिक सूत्र: यह आयत मानवीय संघर्ष के लिए एक शाश्वत सूत्र देती है: "साहसिक कार्रवाई + अल्लाह पर पूर्ण भरोसा = सफलता।" यह सूत्र हर युग में काम करेगा।
ईमान की कसौटी: "इन कुंतुम मु'मिनीन" (यदि तुम ईमान वाले हो) का यह प्रश्न कयामत तक हर मुसलमान के सामने आता रहेगा। जब भी कोई मुसीबत आएगी, यह आयत उससे पूछेगी: क्या तुम्हारा ईमान इतना मजबूत है कि तुम अल्लाह पर भरोसा कर सको?
निष्कर्ष: यह आयत निराशा के समय में आशा का संदेश है। यह हमें सिखाती है कि अल्लाह पर सच्चा भरोसा ही वह हथियार है जो हर डर और हर दुश्मन पर जीत दिला सकता है। बनी इस्राईल के उन दो लोगों का उदाहरण हमें यह प्रेरणा देता है कि हम अल्पसंख्यक होने के बावजूद सत्य और न्याय के मार्ग पर डटे रहें और अल्लाह पर पूरा भरोसा रखें, क्योंकि अंततः जीत उन्हीं की होती है जिनका ईमान मजबूत होता है।